पिता-पुत्र की मेहनत ने रची सफलता की कहानी: एक्टिवा से शुरू हुआ सफर, आज “जय भवानी पान दुकान” बना पहचान

"नौकरी की तलाश में लोग वर्षों गंवा देते हैं, जबकि कोई भी छोटा-सा व्यवसाय व्यक्ति को आत्मनिर्भर बना सकता है। मेहनत, ईमानदारी और समय की पाबंदी ही सफलता की कुंजी है।"

पिता-पुत्र की मेहनत ने रची सफलता की कहानी: एक्टिवा से शुरू हुआ सफर, आज “जय भवानी पान दुकान” बना पहचान

सूरत, पीपलोद: सूरत के पीपलोद गांव स्थित कारगिल चौक के पास लेक्यू गार्डन के पीछे नाइट फूड्स बाजार के मुख्य कॉर्नर पर एक साधारण एक्टिवा गाड़ी से शुरू हुआ एक व्यापार, आज "जय भवानी पान दुकान" के रूप में लोगों के बीच एक पहचान बन चुका है। इस प्रेरणादायक सफलता की कहानी है मितेश राजूभाई राजपूत और उनके पिता की।

मूल रूप से गुजरात के मेहसाणा जिले के निवासी मितेश राजपूत ने बताया कि उनके पिता ने वर्ष 2012 में एक्टिवा पर पान और खाद्य सामग्री बेचकर इस व्यापार की नींव रखी थी। धीरे-धीरे एक छोटा केबिन लगाया गया और फिर वर्षों की मेहनत और दैनिक बचत से एक स्थायी दुकान का निर्माण किया गया।

दसवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले मितेश बताते हैं कि पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था, लेकिन पिता के संघर्ष ने उन्हें प्रेरित किया। उन्होंने पढ़ाई छोड़ कर पिता के साथ दुकान पर बैठना शुरू किया और दोनों की मेहनत रंग लाई। आज दुकान का संचालन मितेश करते हैं, जबकि उनके पिता ड्राइवरी का कार्य कर रहे हैं।

मितेश बताते हैं कि "दुकान का निर्माण कोई एक दिन में नहीं हुआ। हर दिन की कमाई में से कुछ राशि अलग रखकर धीरे-धीरे हमने अपनी दुकान खड़ी की।" यह सिर्फ एक दुकान नहीं, बल्कि मेहनत, त्याग और विश्वास की मिसाल है।

मितेश ने युवाओं को संदेश दिया कि किसी भी काम को छोटा या बड़ा समझना गलत है। उन्होंने कहा, "नौकरी की तलाश में लोग वर्षों गंवा देते हैं, जबकि कोई भी छोटा-सा व्यवसाय व्यक्ति को आत्मनिर्भर बना सकता है। मेहनत, ईमानदारी और समय की पाबंदी ही सफलता की कुंजी है।"

धूप, बारिश और कई मुसीबतों के बावजूद पिता-पुत्र ने हार नहीं मानी। आज "जय भवानी पान" दुकान न सिर्फ एक व्यापारिक स्थल है, बल्कि आत्मनिर्भरता और संघर्ष की एक जीती-जागती मिसाल बन चुका है।

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