वडोदरा : चार साल बाद तैराकी में लौटीं ईश्वा देसाई, गोवा ओपन सी स्पर्धा में रजत पदक जीतकर रचा इतिहास
प्रतिभाशाली तैराक और पोषण विशेषज्ञ ईश्वा देसाई ने प्रतिस्पर्धात्मक तैराकी में शानदार वापसी करते हुए दिखाया कि जुनून कभी हार नहीं मानता
चार साल के लंबे अंतराल के बाद प्रतिस्पर्धी तैराकी में वापसी करने वाली ईश्वा देसाई ने गोवा में आयोजित 2 किमी ओपन सी तैराकी प्रतियोगिता में रजत पदक जीतकर एक बार फिर साबित किया है कि सच्चा जुनून कभी फीका नहीं पड़ता। ईश्वा की यह वापसी केवल एक पदक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी लगन, अनुशासन और प्रेरणा की मिसाल बन गई है।
वडोदरा में जन्मी ईश्वा ने मात्र सात वर्ष की उम्र में तैराकी शुरू कर दी थी। उनकी प्रेरणा बनीं उनकी चाची अर्चना देसाई, जो वडोदरा नगर निगम में तैराकी प्रशिक्षक थीं। वहीं, उनके चाचा आनंद देसाई रोज सुबह 3:30 बजे उठकर उन्हें अभ्यास के लिए ले जाते थे, जिससे उन्हें कभी अकेला महसूस न हो। माता-पिता प्रेरक और हेना देसाई ने भी हर मोड़ पर बेटी का साथ दिया और उसके सपनों को उड़ान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ईश्वा ने 12 वर्ष की उम्र में राज्य स्तर पर प्रतिस्पर्धा करके अपनी पहचान बनाना शुरू किया। गुजरात खेल प्राधिकरण और बाद में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में प्रशिक्षण प्राप्त करते हुए उन्होंने तैराकी को एक समर्पित खिलाड़ी की तरह अपनाया।
जब वे दसवीं कक्षा में थीं, तभी उनके पिता का आकस्मिक निधन हुआ। इस जीवन-परिवर्तनकारी घटना ने उन्हें खिलाड़ियों के लिए पोषण की अहमियत समझाई। उनकी चाची अंजू, जो परिवार की देखभाल करती थीं, ने उन्हें प्रेरित किया कि शरीर की देखभाल जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है उसे सही पोषण देना।
ईश्वा ने एम.एस. यूनिवर्सिटी, वडोदरा से स्नातक और सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, पुणे से पोषण और मधुमेह में एम.एससी. की डिग्री पूरी की। अपने मास्टर्स के दौरान, उन्होंने एक शोध पत्र प्रकाशित किया, जो "पुणे शहर के आईटी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के बीच जीवनशैली से संबंधित निर्धारकों का आकलन" विषय पर आधारित था और इसे इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन में स्थान मिला जो एक स्कोपस-इंडेक्स्ड, सहकर्मी-समीक्षित जर्नल है।
ईश्वा देसाई की यह वापसी सिर्फ खेल में नहीं, बल्कि जीवन में जीतने की कहानी है। उनकी यात्रा यह सिखाती है कि अगर आत्मविश्वास, परिवार का समर्थन और अनुशासन हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। खेल और शिक्षा, दोनों क्षेत्रों में उनकी उपलब्धियाँ नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।