सूरत में बाहरी राज्यों की स्लीपर बसों से करोड़ों का टैक्स नुकसान: कांग्रेस नेता ने की जांच की मांग

दर्शन नायक ने मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन, अरुणाचल-नागालैंड पासिंग बसों से हो रहा है गुजरात को भारी वित्तीय घाटा

सूरत में बाहरी राज्यों की स्लीपर बसों से करोड़ों का टैक्स नुकसान: कांग्रेस नेता ने की जांच की मांग

सूरत। सूरत शहर और जिले में बाहरी राज्यों से पंजीकृत यात्री परिवहन स्लीपर बसों के संचालन को लेकर कांग्रेस नेता दर्शन नायक ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री, गृह राज्य मंत्री और परिवहन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को एक ज्ञापन सौंपकर इन बसों के संचालन में सरकारी नियमों और नीतियों के उल्लंघन की निष्पक्ष जांच की मांग की है।

ज्ञापन में कहा गया है कि वर्तमान में बड़ी संख्या में अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड पासिंग स्लीपर बसें सूरत में संचालित हो रही हैं, जिससे गुजरात सरकार को करोड़ों रुपये के टैक्स का नुकसान हो रहा है।

टैक्स दरों में भारी अंतर ज्ञापन में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, गुजरात में 36+1 सीटों वाली यात्री बस पर ₹39,600 मासिक कर वसूला जाता है।
जबकि अरुणाचल प्रदेश में इसी क्षमता की बस पर मात्र ₹18,000 वार्षिक कर लिया जाता है। इस बड़े अंतर का लाभ उठाते हुए स्लीपर बसों के मालिक बसों को अरुणाचल और नागालैंड में पंजीकृत करा लेते हैं और उन्हें गुजरात में चलाते हैं। इससे गुजरात सरकार को हर महीने बड़े पैमाने पर राजस्व की हानि होती है।

राष्ट्रीय परमिट प्राप्त बसें सामान्यतः केवल अनुबंधित यात्रा के लिए वैध होती हैं  जैसे एक समूह को एक साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना। लेकिन सूरत में ये बसें नियमित यात्रियों से खुले तौर पर किराया वसूलकर चल रही हैं, जो परमिट की शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन है।

दर्शन नायक ने यह भी आरोप लगाया कि आरटीओ और परिवहन विभाग के अधिकारी जानबूझकर इन बसों की अनदेखी कर रहे हैं, जिससे नियमों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हो रहा है।ज्ञापन में यह भी चेताया गया है कि इन नियमों का उल्लंघन यात्रियों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। यदि यात्रा के दौरान कोई दुर्घटना होती है, तो बीमा कंपनियां क्लेम देने से इनकार कर सकती हैं, क्योंकि बस का संचालन नियमों के विरुद्ध किया गया है।

दर्शन नायक ने जनहित में मांग की है कि सूरत शहर और जिले में वर्तमान में चल रही सभी स्लीपर बसों का निरीक्षण किया जाए। गुजरात के बाहर रजिस्टर्ड और राष्ट्रीय परमिट प्राप्त बसों की जांच कर नियमों के उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की जाए। जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए, ताकि गुजरात सरकार को कर राजस्व की हानि से बचाया जा सके और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

यह मामला न केवल वित्तीय हानि का है, बल्कि यात्री परिवहन के वैध और सुरक्षित ढांचे की प्रतिष्ठा पर भी सवाल खड़े करता है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेती है।

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