ड्रोन, अंतरिक्ष, साइबरस्पेस सैन्य संघर्षों में नए प्रतिमान जोड़ते हैं: पूर्व डीजीएमओ अनिल भट्ट

ड्रोन, अंतरिक्ष, साइबरस्पेस सैन्य संघर्षों में नए प्रतिमान जोड़ते हैं: पूर्व डीजीएमओ अनिल भट्ट

नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) देश के एक पूर्व सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) ने कहा है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने आधुनिक युग के युद्ध में ड्रोन के महत्व को स्पष्ट रूप से सामने ला दिया है जो अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र के साथ मिलकर भविष्य के सैन्य संघर्षों में नए प्रतिमान जोड़ेगा।

लेफ्टिनेंट जनरल अनिल कुमार भट्ट (सेवानिवृत्त) ने ‘पीटीआई वीडियो’ के साथ बृहस्पतिवार को साक्षात्कार में यह बात कही। पूर्व डीजीएमओ ने डोकलाम संघर्ष के वक्त अभियान का संचालन किया था।

उन्होंने सोशल मीडिया पर युद्ध के संबंध में की जा रही बातों के प्रति भी अप्रसन्नता व्यक्त की। बहुत से सोशल मीडिया उपयोगकर्ता सैन्य संघर्ष के चार दिन में समाप्त हो जाने से नाखुश दिखे और उनका मानना ​​था कि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को पुनः प्राप्त करने का एक अवसर था।

लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ने कहा कि युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए और युद्ध नहीं छेड़ा जाना चाहिए क्योंकि भारत ने अपने रणनीतिक लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।

जून 2020 में सेवानिवृत्त हो जाने के बाद देश में निजी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास का मार्गदर्शन कर रहे भट्ट ने कहा, ‘‘मैं आपको बता दूं कि युद्ध करना या पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को वापस लेना ये सब निर्णय हमे अच्छी तरह सोच समझ कर लेने चाहिए। इस बार ऐसी कोई योजना नहीं थी। हां, अगर आगे चलकर आपको वहां तक ​​पहुंचना पड़ा तो भारतीय सेना इसके लिए तैयार थी।’’

डीजीएमओ के रूप में भट्ट सैन्य पदानुक्रम में सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों में से एक थे, जिनका काम यह सुनिश्चित करना था कि सशस्त्र बल हर समय परिचालन के लिए तैयार रहें।

सेना प्रमुख को सीधे रिपोर्ट करते हुए, डीजीएमओ तत्काल और दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीति बनाने में प्रभावी रूप से शामिल होते हैं, साथ ही वह अन्य दोनों सेनाओं एवं नागरिक तथा अर्धसैनिक सुरक्षा बलों के साथ समन्वय भी करते हैं।

संकट और बढ़ते तनाव के समय में अपने समकक्ष से संवाद करने की जिम्मेदारी डीजीएमओ की होती है। वर्तमान में डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई हैं।

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के सिक्किम सेक्टर के पास डोकलाम ट्राई-जंक्शन में 2017 में जब भारत की चीन के साथ 73 दिन तक सैन्य गतिरोध की स्थिति बनी थी, उस दौरान भट्ट डीजीएमओ थे।

सेना में 38 साल बिताने वाले भट्ट ने कहा, ‘‘इसलिए मैं अपने सभी देशवासियों से यही कहूंगा कि युद्ध एक बहुत ही गंभीर मामला है और एक राष्ट्र तब युद्ध के लिए तैयार होता है जब सभी संभावित विकल्प खत्म हो जाते हैं। हमारे पास युद्ध के अतिरिक्त अन्य विकल्प थे (मौजूदा संकट के समय) और हमने उन्हें प्राथमिकता दी।’’

यह पूछे जाने पर कि नवीनतम संघर्ष में ड्रोन कितने महत्वपूर्ण थे, उन्होंने कहा कि मानवरहित हवाई यानों ने युद्ध में पूरी तरह से एक नया प्रतिमान स्थापित किया है और दुनिया की सेनाओं ने इस पर तब ध्यान केंद्रित करना शुरू किया जब अजरबैजान को सशस्त्र आर्मेनिया के खिलाफ जीत हासिल करने में ड्रोन ने शानदार सफलता दिलाई।

ये ड्रोन तुर्किए निर्मित थे। तुर्किए ने पाकिस्तान को भी ड्रोन मुहैया कराए थे जिसने कुछ को निगरानी के लिए भारतीय वायु क्षेत्र में भेजा था।

भट्ट इस बात से सहमत थे कि दो लाख रुपये तक की लागत वाले अपेक्षाकृत सस्ते ड्रोन 2017 और 2020 में अजरबैजान-आर्मेनिया के युद्धों में 20-30 करोड़ रुपये के बख्तरबंद टैंकों को तबाह करने में सक्षम थे।

उन्होंने कहा कि दो और नए तत्व इसमें शामिल हुए हैं, जो हैं-अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र।

भट्ट ने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र भविष्य के युद्ध के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मिसाइलों और विमानों को उनके लक्षित लक्ष्यों तक पहुंचाने के अलावा उपग्रह खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत के पास निगरानी उद्देश्यों के लिए नौ या 10 सैन्य उपग्रह हैं और अंतरिक्ष आधारित निगरानी के लिए 52 उपग्रहों का एक समूह स्थापित करने की योजना है।

भट्ट ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान को भारतीय धरती पर होने वाले हर आतंकवादी कृत्य का कड़ा जवाब देने की चेतावनी देकर उसके साथ निपटने के लिए एक नयी सीमा रेखा खींच दी है।