न्यायमूर्ति बी आर गवई ने भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली
नयी दिल्ली, 14 मई (भाषा) न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। वह अनुच्छेद 370 समाप्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखने समेत कई अहम फैसले देने वाली पीठों में शामिल रहे हैं।
न्यायमूर्ति गवई (64) को राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। उन्होंने हिंदी में शपथ ली।
उन्होंने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली है जो 65 वर्ष की आयु होने पर मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए।
न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उनका कार्यकाल छह महीने से अधिक समय का होगा और वह 23 नवंबर तक पद पर रहेंगे।
शपथ लेने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति गवई ने अपनी मां कमल ताई गवई के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय मंत्रियों और पूर्व न्यायाधीशों ने उन्हें बधाई दी।
शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ ही केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, अमित शाह, जे पी नड्डा और अर्जुन राम मेघवाल भी शामिल हुए।
महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर, 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर, 2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। वह 12 नवंबर, 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने।
न्यायमूर्ति गवई उच्चतम न्यायालय में कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं।
वह पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था।
पांच न्यायाधीशों वाली एक अन्य संविधान पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति गवई भी शामिल थे, ने ‘राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड’ योजना को रद्द कर दिया था।
वह पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने 4:1 के बहुमत से 1,000 और 500 रुपये के नोट अमान्य करने के केंद्र के 2016 के फैसले को मंजूरी दी थी।
न्यायमूर्ति गवई सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने 6:1 के बहुमत से माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से उनमें अधिक पिछड़ी हैं।
न्यायमूर्ति गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश तय किए और कहा कि पूर्व में कारण बताओ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
वह वन, वन्यजीव और वृक्षों की सुरक्षा से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ के भी प्रमुख हैं।
वह 16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए थे और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील थे।
न्यायमूर्ति गवई को अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था। उन्हें 17 जनवरी, 2000 को नागपुर पीठ के लिए सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था।