सात युवा आईएएस अधिकारियों की प्रेरणादायी कहानी बयां करती है ‘स्केलिंग माउंट यूपीएससी’

सात युवा आईएएस अधिकारियों की प्रेरणादायी कहानी बयां करती है ‘स्केलिंग माउंट यूपीएससी’

नई दिल्ली, 29 अप्रैल (वेब वार्ता)। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में सफलता हासिल करने वाले बिहार के सत्यम गांधी हों, दसवीं कक्षा में आंखों की रोशनी गंवा चुकी अंजलि हो या अनंतनाग के एक मधुमक्खी पालक के बेटे वसीम अहमद भट हों, ऐसी सात प्रतिभाओं की प्रेरणादायी कहानियों को किताब ‘स्केलिंग माउंट यूपीएससी’ की शक्ल दी गई है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी सज्जन यादव की लिखी पुस्तक का विमोचन सोमवार को किया गया।

अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश (एजीएमयूटी) कैडर के 1995 बैच के अधिकारी यादव ने कहा, ‘‘यह पुस्तक सात उल्लेखनीय व्यक्तियों की आकर्षक जीवन यात्रा बताती है, जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में आईएएस बनने के लिए कठिन ‘माउंट यूपीएससी’ की चढ़ाई की है। यह इन नायकों के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों और इस कठिन परीक्षा के प्रत्येक चरण को पार करने के लिए उनके द्वारा अपनाई गई कुशल रणनीतियों पर भी प्रकाश डालती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक कहानी कड़ी मेहनत, समर्पण और अटूट आत्मविश्वास की शक्ति का प्रमाण है।’’

पुस्तक का विमोचन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि नौकरशाहों की चुनौतियां केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही समाप्त नहीं होती हैं, बल्कि उन्हें प्रत्येक दिन समर्पण के साथ काम करना होता है और ईमानदारी बनाए रखनी होती है।

उन्होंने कहा, ‘‘पुस्तक में जो कहानियां हैं, वह उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगी जो साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं या जो अन्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।’’

पुस्तक की सात कहानियों में से एक केरल पुलिस में जूनियर क्लर्क मिन्नू पीएम की है, जिन्होंने परीक्षा पास करने के लिए पांच साल तक अथक संघर्ष किया।

लेखक ने कहा, ‘‘जब मिन्नू 12वीं कक्षा में थीं, तब उनके पिता का दुखद निधन हो गया, जिसके बाद उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कम उम्र में शादी हो जाने के कारण उन्हें दो साल के बच्चे, घर के कामों और एक कठिन नौकरी की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। पढ़ाई की दुनिया से सालों तक दूर रहने के कारण मिन्नू की यात्रा किसी वीरता से कम नहीं थी।’’

बिहार के समस्तीपुर जिले के एक गांव के 21 वर्षीय सत्यम गांधी ने विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर अपने पहले ही प्रयास में सफलता प्राप्त की।

लेखक ने कहा, ‘‘सत्यम ने यह जानते हुए कि उनके माता-पिता उनकी पढ़ाई के लिए भारी-भरकम ब्याज पर कर्ज ले रहे हैं, उन्होंने स्नातक के अंतिम वर्ष में अपनी तैयारी शुरू कर दी। खराब भोजन, आर्थिक तंगी, प्रोफेसरों के ताने, बीमारी और कोविड-19 को झेलते हुए, उन्होंने एक सुनियोजित अध्ययन योजना के अनुसार प्रतिदिन चौदह घंटे पढ़ाई की और सिविल सेवा परीक्षा-2020 में दसवीं रैंक हासिल की।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सिक्किम में एक फैक्टरी कर्मी की बेटी अंजलि शर्मा की जिंदगी उस समय अंधकार में डूब गई, जब वह 10वीं कक्षा में थी और उसकी आंखों की रोशनी चली गई। इसके बावजूद यूपीएससी के लिए उसका दृष्टिकोण एकदम साफ था। ’’

यादव ने कहा, ‘‘दृष्टिहीनों के लिए सहायक साधनों से अपरिचित अंजलि ने सभी बाधाओं का मुकाबला किया और स्नातक होने के तुरंत बाद ही परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। वह पूरी तरह से स्वाध्याय पर निर्भर रहीं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत ने अंजलि को अपने सपने को साकार करने में मदद की।’’

इसी तरह भरत सिंह का आईएएस अधिकारियों के कर्मचारी आवास से बाहर निकलकर खुद आईएएस बनने तक का सफर बेहद प्रेरणादायक है।

यादव के अनुसार, ‘‘उसका संघर्ष तब शुरू हुआ जब उसके माता-पिता ने छठी कक्षा में हिंदी-माध्यम के सरकारी स्कूल से अंग्रेजी-माध्यम के एक प्रतिष्ठित स्कूल में भेज दिया। उसने रोजाना छह घंटे की थका देने वाली यात्रा के साथ हीन भावना को दूर करते हुए आगे का सफर जारी रखा और मैकेनिकल इंजीनियर बना।’’

यादव ने कहा, ‘‘इसके बाद भरत ने टाटा मोटर्स में एक आकर्षक नौकरी छोड़ दी और आईएएस बनने के सपने को पूरा करने के लिए अपने पद और सम्मान को छोड़ दिया। चार साल तक कई असफलताओं, वित्तीय तनाव और मानसिक परीक्षाओं का सामना करते हुए वह विजयी हुए।’’