निगरानी का डर प्रेस पर हमले के समान: मद्रास उच्च न्यायालय
चेन्नई, छह फरवरी (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता व निजता एवं गोपनीयता एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और निगरानी का डर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया पर एक प्रकार का हमला है।
न्यायमूर्ति जीके इलांथिरायन ने हाल में एक आदेश में यह टिप्पणी की और कहा कि जांच की आड़ में याचिकाकर्ताओं (रिपोर्टर) के मोबाइल फोन जब्त करना, उन्हें अपने निजी व व्यक्तिगत जानकारी मुहैया कराने के लिए मजबूर करना, प्रेस पर हमला एवं निगरानी के डर से उन पर अत्याचार करने के समान है।
न्यायाधीश ने चेन्नई प्रेस क्लब और तीन पत्रकारों द्वारा दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिका में पुलिस के विशेष जांच दल (एसआईटी) को अन्ना विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न मामले में प्राथमिकी लीक किये जाने की जांच की आड़ में उन्हें परेशान करने से रोकने का अनुरोध किया गया था।
न्यायाधीश ने कहा कि समाचार एजेंसी की खबर का स्रोत प्रेस परिषद अधिनियम की धारा 15 (दो) के अनुसार विशेषाधिकार प्राप्त संचार के दायरे में आता है इसलिए उपकरणों की जब्ती से सूचना के स्रोत का खुलासा हो सकता है।
न्यायाधीश ने प्रेस परिषद अधिनियम की धारा 15 (दो) का हवाला देते हुए कहा कि इसके बाद भी जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं का फोन जब्त कर लिया।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कभी भी प्राथमिकी अपलोड नहीं की और न ही इसे सोशल मीडिया पर प्रसारित किया, इसलिए जांच अधिकारी को याचिकाकर्ताओं से फोन जब्त नहीं करना चाहिए था।
न्यायाधीश ने कहा कि यह प्रेस परिषद अधिनियम की धारा 15 (दो) का स्पष्ट उल्लंघन है।