सूरत : श्रमिकों की कमी से लेबर कान्ट्रेक्टरों को छूट रहे पसीनें
प्रति दिन दोगुने से अधिक रुपये लेबरों को चुकानें पड़ रहे हैं : राजेन्द्र उपाध्याय
दीपावली के बाद कपड़ा मार्केट में कामकाज तकरीबन पूर्ववत होने लगे हैं, लेकिन श्रमिकों की कमी बनी हुई है। श्रमिकों की कमी से लेबल लेबर कांट्रैक्टरों की हालत पतली होती जा रही है। उन्हें प्रतिदिन कपड़ा मार्केट एवं मिलों में ग्रे फिनिश ताके की डिलीवरी के लिए श्रमयोगियों को प्रतिदिन रेगुलर से अधिक ही नहीं बल्कि दोगुनी से अधिक राशि यानी 1500 से 1600 प्रतिदिन चुकाने पड़ रहे हैं। ऐसे में हाल में लेबर कान्ट्रेक्टरों को अपने पाकिट से अधिक रुपये चुकानें पड़ रहे हैं।
ग्रे फीनिश डिलीवरी टेंपो कान्ट्रेक्टर वेलफेयर एसोसिएशन के प्रमुख राजेंद्र उपाध्याय ने बताया कि दीपावली से तकरीबन एक सप्ताह पूर्व ही लेबरों की कमी शुरू हो गई जो अभी तक बरकरार है। दीपावली और श्री छठ महा पर्व पर अपने वतन उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड गए हुए हजारों की संख्या में लेबर अब धीरे-धीरे सैकड़ो की संख्या में वापस कर्मभूमि की ओर लौट रहे हैं। हालांकि धीरे-धीरे और कम संख्या में आने से लेबरों की कमी झेलनी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि कुछ लेबर टान्ट्रेक्टरों के साथ रेगुलर जुड़े होते हैं और उनकी प्रतिदिन के हिसाब से रुपये तय होता है, लेकिन कुछ श्रमिक रिंग रोड पर पूनम मार्केट के सामने बैठे रहते हैं। जरुरत पड़ने पर जब ठेकेदार उनके पास जाते हैं तो वे रेगुलर से डेढ़ से दो गुना अधिक रुपये की मांग करते हैं और चुकाना भी पड़ता है।
उन्होंने कहा कि लेबरों की कमी इस कदर है कि कपड़ा मार्केट से ताके उठाने और मिलों में पहुंचाने तथा मिलों से फिनिश मॉल लेकर कपड़ा मार्केट में पहुंचाने के लिए लेबर मिलते ही नहीं हैं, जो रेगुलर लेबर हैं वह गांव गए हुए हैं और अब धीरे-धीरे आ रहे हैं। इसका फायदा टेक्सटाइल मार्केट में ब्रिज के नीचे बैठे रहने वाले श्रमिक उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ही ठेकेदार या उनके आदमी लेबर के लिए जाते हैं वह मनमाना रुपए की मांग हैं, कारण कि उन्हें पता है कि बिना लेबर के कपड़ा मार्केट में काम चलने वाला नहीं इसलिए वह 700-800 रुपए दैनिक की जगह 1500 से 1600 रुपए दैनिक लेते हैं।
क्या इस तरह की हालत मिलों में भी है का जवाब देते हुए राजेन्द्र उपाध्याय ने कहा कि मिलों में भी श्रमिकों की कमी है, लेकिन वहां की स्थिति अलग है जब कम लेबर है तो जो लेबर काम पर होते हैं उन्हें ही डबल करवा दिया जाता है। इसलिए वहां अधिक नहीं चुकाना पड़ता, लेकिन कपड़ा मार्केट के लेबरों की बात ही अलग है। उन्हें पता है कि ठेकेदारों को जरूरत है इसलिए मुंह मांगा पैसा लेते हैं तभी काम पर आते हैं।