सूरत :  लोकतंत्र एवं समाजवाद के प्रथम प्रणेता थे महाराजा अग्रसेन : राजेश भारूका              

सभी अग्रवंशियों को भगवान अग्रसेन जी 5148वीं जन्म जयंती की हार्दिक बधाइयां "एक रुपया एक ईंट, अग्रसेनजी की यही रीत

सूरत :  लोकतंत्र एवं समाजवाद के प्रथम प्रणेता थे महाराजा अग्रसेन : राजेश भारूका              

  लोकतंत्र अहिंसा एवं समाजवाद के प्रथम प्रणेता अग्रकुल प्रवर्तक भगवान अग्रसेन की 5148वीं जन्म जयंती महोत्सव पर सभी देशवासियों को महाराजा अग्रसेन जयंती की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। महाराजा अग्रसेन केवल अग्रवाल समाज के संस्थापक ही नहीं थे, बल्कि एक युगपुरुष थे, जिन्होंने संपूर्ण राष्ट्र के लिए काम किया, पूरी मानवता के लिए काम किया ऐसे महापुरुष अग्रदूत महाराजा अग्रसेन जी को इस जन्म जयंती पर्व पर कोटि-कोटि नमन। महाराजा अग्रसेन महाराजा अग्रसेन अग्रवाल गणराज्य के राजा थे। उन्होंने अपने राज्य में बहुत ही सुंदर एवं प्रमाणिक जनउपयोगी योजनाओं के माध्यम से राज करते थे। उन्होंने पूरी मानव जाति को समाजवाद का अनूठा संदेश दिया जिसके मिसाल दुनिया के इतिहास में मिलना बहुत ही मुश्किल है। 

हरियाणा राज्य में स्थित अग्रोहा गणराज्य के संस्थापक प्रजापालक और समाजसेवी राजा महाराजा अग्रसेन थे। इनके राज्य में हिंसा को कोई स्थान नहीं था। उन्होंने राज्य में पशु बलि का कार्य निषिद्ध था। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के सुख-दुख में समान रूप से सहभागी रहता था। राजस्थान और हरियाणा राज्य के बीच में एक नदी बहती थी सरस्वती, इसी सरस्वती नदी के किनारे एक राज्य प्रतापनगर था। वहां पर  धनपाल नाम से एक राजा हुए। राजा धनपाल ने ही प्रताप नगर बसाया था। राजा धनपाल के पुत्र महाराज वल्लभ के दो पुत्रों में एक अग्रसेन थे और दूसरे शूरसेन थे। युवावस्था में महाराजा 
अग्रसेन शासन व्यवस्था देखते थे और शूरसेन सैन्य व्यवस्था देखते थे। 

महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय ऋषि गर्ग ने कहा था कि अग्रसेनजी बड़े होकर बहुत बड़े और तेजस्वी राजा बनेंगे। यह एक नई शासन व्यवस्था का निर्माण करने में भी सक्षम होगा। अग्रसेन जी का विवाह नागराज कुमुद की पुत्री से हुआ इसके अलावा कोल्हापुर के राजा की पुत्री से भी उनका विवाह किया गया था। अग्रसेन जी द्वारा दो नागवंशी से संबंध स्थापित कर लेने के कारण उनका राज्य और भी ज्यादा समृद्ध और मजबूत हो गया था। उनकी प्रजा संतुष्टि थी। एक बार महाराजा अग्रसेन जी के निमंत्रण पर देवराज इन्द्र प्रतापनगर आए। इस अवसर पर प्रतापनगर को खूब सजाया गया एवम देवराज इंद्र की अगवानी भी बड़े सम्मान पूर्वक की गई। महाराजा अग्रसेन के पिता महाराजा बल्लभ का आसन, छत्र एवम् चंवर देवराज इंद्र के बराबर लगाया गया। अग्रवालों की शादी में छत्र का प्रयोग इसी परंपरा के अनुसार आज भी किया जाता है। महाराजा अग्रसेन के राज्य में हिंसा नीति के लिए कोई स्थान नहीं था।

 जब महाराजा अग्रसेन जी के संतान उत्पत्ति हुई तो उन्होंने महर्षि गर्ग के कहने पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। अश्वमेध यज्ञ में पशु बलि देने की परंपरा होने पर अग्रसेन जी को जब 18वें यज्ञ में पशु बलि से घृणा हो गई तो उन्होंने पशु बलि नहीं दी पशु बलि के स्थान पर उन्होंने श्रीफल नारियल को ही पशुबली की पूर्ति का साधन बनाया और अपने राज्य में कहीं भी होने वाली पशु बलि को उन्होंने रुका दिया। उनके राज्य में हर व्यक्ति एक दूसरे की मदद करने वाला था। बाहर से आने वाले व्यक्ति को एक मुद्रा और एक ईंट प्रत्येक नागरिक को देने का आदेश था। ताकि नवागंतुक परिवार का जीवन 
यापन आसानी से व्यतीत हो सके। बाद में अग्रसेन जी ने गणतंत्र की व्यवस्था के अंतर्गत अन्य जनपदों में भी जनप्रतिनिधियों की नई व्यवस्था को जन्म दिया। 

 भारत सरकार ने महाराजा अग्रसेन की अहिंसक लोकतंत्रात्मक एवं समानता की शासन व्यवस्था के कारण उनकी स्मृति में 24 सितंबर 1976 को 25 पैसे का डाक टिकट जारी किया एवं दिल्ली से अग्रोहा होकर पाकिस्तान सीमा तक जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 10 को महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया। 25 जनवरी 1995 को दक्षिण कोरिया से खरीदे गए एक लाख 10 हजार टन की क्षमता वाले तेल वाहक जलपोत का नाम महाराज अग्रसेन के नाम पर रखा गया। दिल्ली सरकार ने भी एक महाविद्यालय का नाम महाराजा अग्रसेन के नाम पर रखा एवं  हरियाणा सरकार ने हिसार एयरपोर्ट का नाम भी महाराज अग्रसेन के नाम से किया। दिल्ली से मुंबई बेंगलुरु होते हुए कन्याकुमारी तक जाने वाले हाईवे क्रमांक एक का नाम भी महाराज अग्रसेन के नाम पर रखा गया है। 

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