गुस्सा मनुष्य का शत्रु, क्षमा और शांति का करें विकास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

-गढ़ी गांव में स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय ज्योतिचरण से बना पावन 

गुस्सा मनुष्य का शत्रु, क्षमा और शांति का करें विकास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

शांतिदूत आचार्यश्री ने लगभग दस किलोमीटर का किया मंगल विहार 

गढ़ी गांव, बीड (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र की विस्तारित यात्रा कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए अब औरंगाबाद की गतिमान हैं। यहां आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अक्षय तृतीया का महनीय कार्यक्रम समायोजित होना है। सोमवार को प्रातःकाल शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हीरापुर गांव से मंगल प्रस्थान किया। सायंकालीन विहार कर हीरापुर में आचार्यश्री के पदार्पण के उपरान्त देर रात वर्षा भी हुई थी। इस कारण आज प्रातःकाल का मौसम कुछ ठंडा था, किन्तु उमस से भरा हुआ था। मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक पवनचक्कियां नजर आ रही थीं। इस क्षेत्र में लगी पवनचक्कियों के माध्यम से बिजली उत्पादन किया जाता है। मार्ग के अनेक स्थानों पर श्रद्धा-भक्ति से युक्त ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन से लाभान्वित हो रहे थे। एक स्थान पर तो एक आदमी आचार्यश्री को प्रणाम करने के उपरान्त चाय की मनुहार की, किन्तु उसे जैन साधुचर्या की अवगति दी गई। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री गढ़ी गांव में स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय में पधारे।
 
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विद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालु जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी के भीतर कषाय के रूप में वृत्तियां होती हैं। आठ प्रकार की आत्माएं बताई गई हैं। इनमें एक द्रव्य आत्मा होती है। यह आत्मा सिद्ध हों, मनुष्य हो अन्यथा कोई भी संसारी जीव हो, द्रव्य आत्मा सभी में होती है। एक और आत्मा होती है- उपयोग आत्मा। यह आत्मा भी सभी जीवों में होती है। द्रव्य और उपयोग आत्मा दोनों का साहचर्य है। दर्शन आत्मा भी सभी जीव में होती हैं। इस प्रकार द्रव्य, उपयोग और दर्शन आत्माएं हर जीव में उपलब्ध होती हैं। शेष पांच आत्माएं किसी जीव में होती हैं तो किसी जीव में नहीं भी होती हैं। कषाय, योग, ज्ञान, चारित्र व वीर्य कुछ जीवों में होती हैं तो कुछ आत्माएं नहीं भी होती हैं।
 
आदमी के भीतर कषाय आत्मा कभी प्रकट रूप में तो कभी सुसुप्तावस्था में रहती है। इसमें एक कषाय है-गुस्सा। सामान्य आदमी में मानों कभी गुस्से का उफान आता है। उसमें आदमी मौखिक, शारीरिक हिंसा भी कर लेता है। गुस्से को आदमी की दुर्बलता भी कहा जाता है। यह स्वयं उस आदमी का भी नुक्सान करता है और दूसरे का भी नुक्सान करता है। आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि वह गुस्से को उपशांत रखने का प्रयास करना चाहिए। गुस्से रूपी कषाय को समाप्त करने के लिए आदमी के भीतर क्षमा भाव का विकास हो। कहा गया है कि जिस आदमी के पास क्षमा रूपी खड्ग हो तो दुर्जन उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। परिवार, समाज व राष्ट्र कहीं भी हो, गुस्सा काम का चीज नहीं होता। गुस्सा मनुष्य का शत्रु होता है। इसलिए आदमी को जितना संभव हो सके, शांति रखने की प्रयास करना चाहिए व गुस्से से यथोचित रूप में बचने का प्रयास करना चाहिए।
 
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने जवाहर नवोदय विद्यालय परिवार को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज यहां आना हुआ है। यहां भी जितना संभव हो सके, अच्छे संस्कारों का विकास होता रहे।