आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने बनाया नैनो सेंसर, सूजन और जलन संबंधित बायोमार्कर को पहचानने में मिलेगी मदद

इसका उपयोग बीमारियों के निदान और प्रगति की निगरानी के लिए किया जाता है

आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने बनाया नैनो सेंसर, सूजन और जलन संबंधित बायोमार्कर को पहचानने में मिलेगी मदद

जोधपुर, 08 अप्रैल (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने एक नैनो सेंसर विकसित किया है, जो विभिन्न कोशिकाओं को नियंत्रित करने वाले प्रोटीन के एक समूह साइटोकिन्स का शीघ्र पता लगाने में मदद करता है। इस विकास का उद्देश्य तुरंत निदान और रोग के प्रारंभिक चरण में पता ना लग पाने के कारण होने वाली मृत्यु दर को कम करना है। इसके अलावा इस प्रौद्योगिकी में स्वास्थ्य निगरानी, रोग निदान और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ट्रैकिंग के लिए एक तीव्र और पॉइंट-ऑफ़-केयर तकनीक के रूप में उपयोग करने की अपार संभावनाएं हैं। यह शोध बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग की अकिलैंडेश्वरी बी, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के सरवर सिंह, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. अजय अग्रवाल और बायोसाइंस और बायो इंजीनियरिंग की प्रोफेसर डॉ. सुष्मिता झा द्वारा किया गया है जो 2023 आईईईई एप्लाइड सेंसिंग कॉन्फ्रेंस में आईआईटी जोधपुर में प्रकाशित किया गया।

डॉ. अजय अग्रवाल ने बताया कि साइटोकिन्स एक बायोमार्कर हैं जो सूजन और जलन के कई मापकों में शामिल होता है। इसका उपयोग बीमारियों के निदान और प्रगति की निगरानी के लिए किया जाता है। ये कोशिका नुकसान की मरम्मत, कैंसर के विकास और प्रगति, साथ ही प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी कारण वे ऑन्कोलॉजी, संक्रामक रोग, और रुमेटोलॉजिकल बीमारियों जैसी विभिन्न स्थितियों के लिए सटीक दवा और लक्षित चिकित्सा विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने बताया कि ये साइटोकिन्स उत्तेजक, सूजन और जलन कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न होते हैं। अभी तक परीक्षण नियंत्रित नमूनों के लिए किया जाता है, लेकिन टीम का लक्ष्य जल्द ही प्रौद्योगिकी को नैदानिक परीक्षणों में ले जाना है। टीम इस तकनीक का उपयोग सेप्सिस और फंगल संक्रमण के प्रारंभिक चरण और त्वरित निदान के लिए पहचान प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए भी कर रही है।

सिर्फ तीस मिनट में होगी जांच

यह नया सेंसर कम सांद्रता पर भी एनालिटिक्स का पता लगाने के लिए सरफेस एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करता है। यह सेमीकंडक्टर प्रक्रिया प्रौद्योगिकी पर आधारित है और सरफेस एन्हांस्ड रमन स्कैटरिंग के सिद्धांत पर काम करता है। इसलिए यह इस तकनीक को उच्च सटीकता, परिशुद्धता और चयनात्मकता के साथ ट्रेस-स्तरीय अणुओं का पता लगाने में शक्तिशाली और सक्षम बनाता है। साइटोकिन का पता लगाने के लिए वर्तमान में सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली तकनीकें एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट परख और पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन हैं लेकिन ये विधियां बहुत समय लेती हैं और महंगी होती हैं। हालांकि आईआईटी जोधपुर द्वारा विकसित सेंसर इसकी तुलना में केवल 30 मिनट का समय लेता है और लागत भी कम है। किसी व्यक्ति की ऑटोइम्यून बीमारियों और जीवाणु संक्रमण का तेज़ और अधिक मजबूत निदान प्राप्त करके यह सेंसर रोगी के चिकित्सा उपचार को बदलने की क्षमता रखता है। इस तरह किसी मरीज की बीमारी का निदान किया जा सकता है और भविष्य में उसके इलाज के लिए मार्गदर्शन करने के लिए तुरंत ट्रैक किया जा सकता है।

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