समानता के मुद्दे पर भारत को किसी से उपदेश की जरूरत नहींः उपराष्ट्रपति

अन्य देशों में सुप्रीम कोर्ट ने बिना महिला जज के 200 साल पूरे कर लिये, लेकिन हमारे यहां है

समानता के मुद्दे पर भारत को  किसी से उपदेश की जरूरत नहींः उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली, 05 अप्रैल (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि भारत को समानता के मुद्दे पर इस ग्रह पर किसी से उपदेश की जरूरत नहीं है, क्योंकि हम हमेशा इसमें विश्वास करते हैं। देशों से अपने भीतर झांकने का आह्वान करते हुए उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कुछ देशों में अभी तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं है जबकि हमारे यहां ब्रिटेन से भी पहले एक महिला प्रधानमंत्री थी। अन्य देशों में सुप्रीम कोर्ट ने बिना महिला जज के 200 साल पूरे कर लिये, लेकिन हमारे यहां है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में फैलाई जा रही झूठी कहानी और गलत सूचना के प्रति आगाह करते हुए धनखड़ ने कहा कि सीएए न तो किसी भी भारतीय नागरिक को उसकी नागरिकता से वंचित करना चाहता है, न ही यह पहले की तरह किसी को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से रोकता है। यह उल्लेख करते हुए कि सीएए पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता के अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करता है, उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमारे पड़ोस में उनकी धार्मिक प्रतिबद्धता के कारण सताए गए लोगों को यह राहत, उपचारात्मक स्पर्श भेदभावपूर्ण कैसे हो सकता है?” यह देखते हुए कि सीएए उन लोगों पर लागू होता है, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आए थे, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह आमद का निमंत्रण नहीं है। उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि हमें इन आख्यानों को बेअसर करना होगा।

लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में उनके व्यावसायिक पाठ्यक्रम के चरण- I के समापन पर 2023 बैच के आईएएस अधिकारी प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने युवाओं से ऐसे तथ्यात्मक रूप से अस्थिर राष्ट्र-विरोधी आख्यानों के रणनीतिक आयोजन का खंडन करने का आह्वान किया।

यह कहते हुए कि हाल के वर्षों में शासन व्यवस्था बेहतर हुई है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली अब गलियों में सड़ रही है। यह कहते हुए कि कुछ विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली पहले सोचते थे कि वे कानूनी प्रक्रिया से प्रतिरक्षित हैं और कानून उन तक नहीं पहुंच सकता है, उपराष्ट्रपति ने सवाल किया, “हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में कोई दूसरों की तुलना में अधिक समान कैसे हो सकता है?” इस क्रांति में सिविल सेवकों के योगदान को मान्यता देते हुए उन्होंने युवा अधिकारियों से कहा कि कानून के समक्ष समानता जो लंबे समय से हमसे दूर थी और भ्रष्टाचार जो प्रशासन की नसों में खून की तरह बह रहा था, अब अतीत की बात है।

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