हमीरपुर में मर्दाे को गांव से भगाने के बाद औरतें खेलती है होली

रामजानकी मंदिर से महिलायें ढोल मजीरे के साथ निकालती है होली की फाग

हमीरपुर में मर्दाे को गांव से भगाने के बाद औरतें खेलती है होली

सैकड़ों साल पुरानी परम्परा में घूंघट वाली महिलायें भी उड़ाती है रंग, गुलाल

हमीरपुर, 23 मार्च (हि.स.)। बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में एक ऐसे गांव में महिलाओं की होली कोई भी मर्द नहीं देख सकता। सैकड़ों साल पुरानी परम्परा की महिलाओं की होली शुरू होने से पहले ही पूरे गांव के पुरुषों को घर छोड़कर खलिहान में डेरा डालना पड़ता है। बूढ़ी और घूंघट वाली महिलाएं होली पर ठुमके लगाकर पूरे गांव में धमाल मचाती है। महिलाओं की यह अनोखी होली सूर्यास्त होने के बाद खत्म होती है। तभी सभी पुरुष अपने घर लौटते हैं।

बुन्देलखंड के हर इलाके में कोई भी ऐसा गांव नहीं है जहां यह अनूठी परम्परा की होली खेली जाती है। वीरभूमि के हमीरपुर जिले में कुंडौरा ऐसा गांव है, जो इस परम्परा के लिए पूरे क्षेत्र में विख्यात है। यहां महिलाओं की टोली फाग निकालकर पूरे गांव में घूमती हैं।

महिलाओं की फाग में धमाल करने वाली देवरती कुशवाहा, पूर्व प्रधान उपदेश कुमारी, गिरिजा कुशवाहा, सुनीता, कमलेश कुमारी सहित सहित तमाम महिलाओं ने बताया कि जब से वह बाबुल का घर छोड़कर पिया के घर आई है तभी से ही इस होली की परम्परा का हिस्सा बन रही है।

हर साल धूमधाम के साथ फाग में हिस्सा लेकर गांव में महिलाओं की फाग सम्पन्न होती है। इन महिलाओं ने बताया कि होली की फाग का शुभारंभ गांव के ऐतिहासिक रामजानकी मंदिर से होता है। पूरे गांव के गली कूचों और मुहल्लों में होली की धमाल करने के बाद महिलाओं की फाग खेरापति बाबा के मंदिर परिसर में इस अनूठी परम्परा का समापन होता है।

ग्राम प्रधान प्रतिनिधि अरविन्द प्रताप सिंह ने बताया कि गांव में महिलाओं की होली का यह अनूठी परम्परा सैकड़ों साल पहले पूर्वजों ने शुरू की थी, जिसका आज भी निर्वहन बड़े ही शिद्दत के साथ किया जाता है। जिस समय महिलाओं की फाग गांव में घूमती है तो उस समय गांव के पुरुष गांव की गलियों से हटकर या तो घरों में कैद हो जाते हैं या फिर उन्हें खेल और खलिहान की ओर निकलना पड़ता है। पुरुष तभी गांव के अंदर वापस आएंगे जब महिलाओं की फाग और होली का समापन हो जाता है।

पूरे गांव में होली के रंग में घूंघट वाली महिलाएं करती है धमाल

कुंडौरा गांव के बुजुर्ग बंजारी कुशवाहा (90) ने बताया कि गांव में महिलाओं की होली का इतिहास कम से कम पांच सौ साल पुराना है। जिसमें गांव की बहुएं भी फाग निकलने के दौरान नृत्य करती है। इन्हें कोई भी गांव का पुरुष देख नहीं सकता है। यदि किसी ने देखने की हिम्मत भी की तो उन्हें लट्ठ लेकर गांव से ही खदेड़ दिया जाता है।

सत्तर वर्षीय गिरिजा कुशवाहा व देवरती कुशवाहा ने बताया कि महिलाओं की फाग निकालने की कोई पुरुष अथवा युवक भी फोटो कैमरे से नहीं ले सकता है। महिलाओं की होली की फोटो लेने पर भी प्रतिबंध है। यदि कोई इस अनूठी परम्परा का चोरी-छिपे फोटो लेते पकड़ा गया तो उस पर तगड़ा जुर्माना बोला जाता है। गांव की सरपंच सविता देवी ने बताया कि गांव के पुरुष और लड़के अनूठी परम्परा की होली की फाग निकलने से पहले ही घरों में कैद हो जाते है अथवा सभी को गांव छोड़कर बाहर जाना होता है।

बुजुर्ग महिलाएं ही होली की फाग में बजाती है ढोल और मजीरे

गांव की सरपंच सविता देवी ने बताया कि इस बार होली त्योहार के दूज के दिन पूरे गांव की महिलाएं रामजानकी मंदिर में एकत्र होती है फिर यहां से फाग निकाली जाती है। गाजे और बाजे के साथ महिलाओं की फाग गली कूचे और मुहल्लों से होते हुए एक जगह पर नाच गाना होता है। उन्होंने बताया कि हर घर से महिलाएं इस अनूठी परम्परा में शामिल होती है। और ढोल मजीरा बजाते हुए महिलाएं ठुमके भी लगाती है। यह आयोजन शाम तक चलता है। सभी महिलाएं एक दूसरे को गुलाल लगाकर सम्मान भी करती है।

गांव की बुजुर्ग देवरती कुशवाहा ने बताया कि बुन्देलखंड का यह अकेला गांव है जहां यह परम्परा आज भी कायम है। इस परम्परा की होली में बुजुर्ग महिलाओं के अलावा घूंघट वाली महिलाएं भी धमाल करती है। प्रधानपति अरविन्द प्रताप सिंह ने बताया कि अनूठी परम्परा की होली को लेकर महिलाओं ने तैयारी अभी से शुरू कर दी है।

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