देश के असली नायकों की दुर्दशा, देश के लिए खेल चुके खिलाड़ी जीवनयापन के लिए मछली बेचने और जूते सिलने को मजबूर

देश के असली नायकों की दुर्दशा, देश के लिए खेल चुके खिलाड़ी जीवनयापन के लिए मछली बेचने और जूते सिलने को मजबूर

देश के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे कई खिलाड़ियों की आज भी हो रही है अनदेखी

देश के दिग्गज हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लई के साथ खेल चुके विश्वजीत मेहरा फ़िलहाल एक दयनीय जिंदगी जी रहे हैं। आज के समय सरकार से लेकर जनता सबने उनकी उपेक्षा की है। फ़िलहाल दोनों भाई मछली बेचने को मजबूर हैं। वहीं राज्य के अन्य हॉकी खिलाड़ी, हॉकी में 8 बार नेशनल खेल चुके सुभाष चंद आज खेल महासंघ की लापरवाही से जूते सी कर गुजारा कर रहे हैं।
एक तरफ जहाँ भारतीय खेलों के प्रशंसकों के लिए यह एक शानदार दिन रहा जब पुरुष और महिला हॉकी टीमों ने टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रचा दिया वहीं देश के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे कई खिलाड़ियों की आज भी अनदेखी की गई है। भारतीय पुरुष टीम करीब 49 साल बाद सेमीफाइनल में पहुंची है, तो वहीं महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार सेमीफाइनल में जगह बनाई है। यह देश के लिए गर्व का समय है, लेकिन ऐसा समय ऐसे बड़े खिलाडियों का निरादर बड़े दुःख की कहानी बयां करती है।
एक प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार देश के दिग्गज हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लई के साथ खेल चुके हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के विश्वजीत मेहरा बेरोजगारी में जीवन बता रहे हैं। वहीं उनके भाई संजीव मेहरा भी नेशनल प्लेयर रह चुके हैं। पूर्व राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी विश्वजीत मेहरा ने कहा कि वह 5 बार राष्ट्रीय टीम में रहे हैं। उन्होंने कहा, "धनराज पिल्लई और परगट सिंह के साथ खेलना मेरे लिए सबसे अच्छा पल था।"
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य स्तरीय चैम्पियन रह चुके मेहरा ने कहा कि वह टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखकर अपनी खुशी जाहिर नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने कहा कि 1983 में खेले गए मैच में दिल्ली की टीम के खिलाफ ऐसा उत्साह देखने को मिला था। इस मैच में उनकी टीम ने दिल्ली को हराया था। मेहरा ने कहा कि पहला हॉकी छात्रावास 1986-87 में चंबा में खोला गया था। वह 1988 में राष्ट्रीय टीम में थे। हालांकि, वे अभी भी मछली बेचकर जीवन यापन कर रहे हैं।
केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के हमीरपुर जिले के एक अन्य हॉकी खिलाड़ी सुभाष चंद हैं, जो आठ बार राष्ट्रीय हॉकी खेल चुके हैं। सुभाष चंद के मुताबिक वह 90 के दशक में नेशनल में कई कैटेगरी में आठ बार खेल चुके हैं। हालांकि आज वह एक- एक रुपए के लिए मोहताज हैं और उन्हें अपने परिवार का पेट पालने के लिए जूते बनाने पड़ते हैं। हाल ही में केंद्रीय खेल मंत्री बने अनुराग ठाकुर से सुभाष चंद को काफी उम्मीदें हैं।
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