अहमदाबाद : जब बहू ने अपने ससुर को लीवर का किया दान

अहमदाबाद : जब बहू ने अपने ससुर को लीवर का किया दान

लीवर के कैंसर से पीड़ित थे गरिमा के ससुर, परिवार वालों को मना कर किया अपने लीवर का ट्रांसप्लांट

कहते है की बेटियाँ अपने पिता की आंखो का तारा होती है। हालांकि जिनके पास बेटियों का सुख नहीं होता यदि वह अपनी बहु को ही अपनी बेटी मान ले तो संसार में काफी परिवर्तन आ सकता है। इसी तरह यदि बहू भी अपने ससुराल को अपना ही घर मान ले तो खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहेगा। किसी भी तरह के दुख का दोनों का परिवार काफी आसानी से सामना कर सकता है। कुछ ऐसी ही कहानी है अहमदाबाद में रहने वाली गरिमा अग्रवाल की, जिसे ससुराल के तौर पर एक दूसरा घर मिल गया। 
ससुराल आने के पहले ही दिन गरिमा के ससुर ने कह दिया था कि इसे वह अपना ही घर समझे। ससुराल के प्रेमभरे माहौल में दिन काफी अच्छी तरह से गुजरने लगे। पर एक दिन अचानक ही परिवार के ऊपर एक बड़ा संकट आ गया। गरिमा के ससुर को साल 2016 में लीवर सिरोसिस कि बीमारी हुई। सभी सदस्य बुरी तरह से डर गए। हालांकि कुछ इलाज के बाद स्थिति के बिगड़ने से पहले ही उनका इलाज करवाया गया और वह ठीक भी हो गए। 
जैसे ही फिर से सब कुछ सामान्य हुआ एक बार फिर गरिमा के ससुर को लीवर कैंसर हो गया। यदि तुरंत ही लीवर ट्रांसप्लांट ना किया जाता तो अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता था। गरिमा ने अपने ससुर को अपनी किडनी देने की इच्छा जाहीर की। पर परिवार के अन्य सदस्यों ने मना कर दिया। समय निकला जा रहा था। डॉक्टर ने सभी को मृत व्यक्ति के डोनेशन देने का इंतजार ना करने की सलाह द। जिसके चलते परिवार के अन्य कई सदस्यों ने लीवर देने के लिए अपना परीक्षण करवाया। पर इसमें भी गरिमा का लीवर ही डोनेशन के योग्य निकला। अब गरिमा ने जिद पकड़ ली। भारी मन से गरिमा के लीवर का ट्रांसप्लांट करने के लिए परिवार वालों ने परिवार वालों ने अनुमति दी। 
सभी की अनुमति मिलने के बाद गरिमा ने अपने ससुर को लीवर का डोनेशन दिया। डोनेशन देने के बाद भी गरिमा और उसके ससुर दोनों पूरी तरह से स्वस्थ है। ट्रांसप्लांट के कुछ ही समय के बाद दोनों आम जीवन जीने लगे है। फिलहाल दोनों पूरी तरह से चुस्त और तंदूरस्त है। 
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