अहमदाबाद : मणिपुर का कचोरी वाला- वीडियो हुआ वायरल तो मदद के लिए आगे आए लोग, अब हर रोज कम पड़ जाते है समोसे-कचौरी

अहमदाबाद : मणिपुर का कचोरी वाला- वीडियो हुआ वायरल तो मदद के लिए आगे आए लोग, अब हर रोज कम पड़ जाते है समोसे-कचौरी

बीते 8 साल से संघर्ष कर रहा ये परिवार, पिता के साथ 14 साल का बच्चा बेचता है कचौरी

आपको बाबा का ढाबा तो याद ही होगा। एक बार फिर सोशल मीडिया की ताकत साबित हुई है। दरअसल गोर के कुएं के पास रहने वाले और कक्षा 8 में पढ़ने वाले एक 14 साल के बच्चे का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जो मणिनगर रेलवे स्टेशन के पास अपने पिता के साथ समोसा कचौरी बेचकर पैसे कमाता है। सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद  इस परिवार को भी उतना ही प्यार और सहयोग मिल रहा जो कभी बाबा के ढाबा को मिला था। इस वीडियो के सामने आने के बाद अग्रवाल परिवार जितना ही समोसे बनाता है वो सब ख़त्म हो जाता है।
आपको बता दें कि यह कहानी है मणिनगर गोरे में कुएं के पास मनोरकुंज सोसायटी में किराए के मकान में रहने वाले अग्रवाल परिवार की। जो वर्तमान में समोसा कचौरी बनाते हैं, उसे बेचकर जीविकोपार्जन करते हैं। अग्रवाल परिवार में दिलीप भाई, उनकी पत्नी, मां और दो बेटियां और एक बेटा शामिल हैं। जो सभी एक ही काम करते हैं। 14 साल का बेटा तन्मय आठवीं में पढ़ रहा है, जबकि 15 साल की हीराल 10वीं कक्षा में पढ़ रही है। पत्नी श्वेता हाउस वाइफ हैं। बच्चों के पढ़ने के बाद पूरा परिवार मिल कर समोसा की कचौरी बनाता है। शाम के साढ़े पांच बजे पिता-पुत्र एक्टिवा लेकर मणिनगर रेलवे स्टेशन पहुंच जाते हैं और इसे बेचकर घर चलाने के लिए धनोपार्जन करते हैं।
किराए के मकान में रहने वाले अग्रवाल परिवार की माली हालत फिलहाल गंभीर बनी हुई है। वे जिस घर में रहते है उसका 13 हजार किराया हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई और घर चलाने में कई तरह की दिक्कतें आती हैं। ऐसे में अब जब इनका वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ उनके द्वारा बनाये जा रहे कचोरी-समोसे कम पड़ जा रहे है। लोग इस तरह से उनकी मदद के लिए आगे आए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि परिवार की आर्थिक स्थिति शुरू से ही खराब नहीं है। अग्रवाल परिवार सुखरामनगर में अपने घर में रहता था और उसके पास संतोषी नामक एक दुकान भी थी। हालांकि पारिवारिक समस्याओं के चलते दिलीप अग्रवाल 8 साल के लिए परिवार से अलग हो गए और बाद में किराए के घर में रहने लगे और समोसा- कचौरी बनाकर उसे एक्टिवा पर बेचकर गुजारा करने लगे।
ऐसे में एक-दो नहीं बल्कि पिछले आठ साल से पिता और उनका परिवार संघर्ष कर रहा है। पिछले दो साल में उनके बेटे तन्मय भी उनके स्ट्रगल पार्टनर हैं। इस बच्चे का संघर्ष लोगों के लिए एक मिसाल के तौर पर माना जा सकता है। लोग अब इस अग्रवाल परिवार की मदद के लिए आगे आए हैं। फिर अगर इस अग्रवाल परिवार और उनके जैसे अन्य परिवारों की मदद से अन्य लोग आगे आते हैं, तो ऐसे परिवार को भी सहारा मिलेगा और ऐसा परिवार भी अपनी मेहनत की कमाई से जीविकोपार्जन करके आराम से जीवन जी सकते है।