अबू धाबी में कृषि और मत्स्य पालन पर सहमति के बिना डब्ल्यूटीओ वार्ता समाप्त

कई विवादास्पद मुद्दों पर प्रगति हुई है

अबू धाबी में कृषि और मत्स्य पालन पर सहमति के बिना डब्ल्यूटीओ वार्ता समाप्त

अबू धाबी, 02 मार्च (हि.स.)। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का 13वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन बेनतीजा रहा। अबू धाबी में आयोजित डब्ल्यूटीओ सम्मेलन एक अतिरिक्त दिन की बातचीत और गहन प्रयासों के बावजूद कृषि और मत्स्य पालन जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति के बिना शुक्रवार देर रात संपन्न हो गया। हालांकि, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत ने अपने किसानों और मछुआरों के हितों को उच्चतम स्तर तक ले जाने के लिए अपनी पूरी नीति बरकरार रखी है।

संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में आयोजित डब्ल्यूटीओ के इस सम्मेलन में सार्वजनिक खाद्यान्न भंडार का स्थायी समाधान खोजने और मत्स्य पालन सब्सिडी पर अंकुश लगाने जैसे कई मुद्दों पर कोई निर्णय नहीं हुआ। भारत, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य सदस्य इन अहम मामलों पर आम सहमति बनाने में असमर्थ रहे, जिससे किसी सहमति के बिना ही इसे छोड़ दिया गया। हालांकि, सदस्य देश ई-कॉमर्स पर आयात शुल्क लगाने को लेकर लगी रोक दो साल और बढ़ाने पर सहमत हो गए।

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने सम्मेलन के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि यह अच्छा परिणाम है और हम पूरी तरह से संतुष्ट हैं। कई विवादास्पद मुद्दों पर प्रगति हुई है। इन मामलों में पिछले कई वर्षों से बातचीत जारी है, लेकिन आगे बढ़ना हमेशा निष्कर्ष पर पहुंचने का संकेत होता है। गोयल ने कहा कि भारत ने स्थायी समाधान के तहत खाद्य सब्सिडी सीमा की गणना के लिए फॉर्मूले में संशोधन जैसे उपाय करने को कहा है। उन्होंने कहा कि गरीबों के बीच वितरण के लिए नई दिल्ली में अनाज की खरीद निर्बाध और बिना किसी बाधा के जारी है।

उल्लेखनीय है कि चार दिनों की व्यस्त बातचीत को एक दिन के लिए और बढ़ाए जाने के बावजूद 166 सदस्यीय विश्व व्यापार संगठन खाद्य सुरक्षा जैसे मुद्दे हल करने के लिए एक आम सहमति पर नहीं पहुंच पाया। हालांकि, डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में कुछ और मामलों में परिणाम हासिल करने में सफलता मिली है। इसमें सेवाओं के लिए घरेलू विनियमन पर नई व्यवस्था, डब्ल्यूटीओ के नए सदस्यों के तौर पर कोमोरोस और तिमोर-लेस्ते का औपचारिक रूप से शामिल होना और कम विकसित देशों (एलडीसी) को इसके दर्जे से बाहर निकलने के तीन साल बाद भी एलडीसी का लाभ मिलते रहने की बात शामिल है।

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