चावल-मांस हाइब्रिड: प्रयोगशाला में बना मांस कोशिका से युक्त चावल
बन सकता है भविष्य का भोजन
चेन्नई, 17 फरवरी (हि.स.)। वैज्ञानिकों ने चावल के दाने में मांस कोशिका विकसित करने की तकनीक बनाने का दावा किया है। वैज्ञानिकों की मानें तो इस तरह उत्पादित चावल, मांस की तुलना में किसी भी मामले में कम नहीं है। दुनिया भर में पशुपालन पर लगने वाले संसाधन और मांस उत्पादन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए प्रयोगशाला में बनाए गए मांस या मांस जनित अनाज से प्राप्त होने वाला प्रोटीन कम खर्चीला और न्यूनतम कार्बन फुटप्रिंट पैदा करेगा। यह कुपोषण से लड़ने में काफी मददगार और प्रोटीन का किफायती विकल्प बन सकता है।
प्रख्यात वैज्ञानिक अनुसंधान पत्रिका सेल-मैटर में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि समूचे विश्व में फूड साइंटिस्ट इस समय बढ़ती हुई आबादी और पर्यावरण की चुनौतियों से सामना करने के लिए भोजन के नए संसाधन जुटाने की कोशिशों में लगे हुए हैं। इस मामले में लैब मीट अर्थात प्रयोगशाला में तैयार किया जाने वाले मांस पर नए-नए अनुसंधान हो रहे हैं।
मांस के बनावट की नकल कर वैज्ञानिकों ने जानवरों की कोशिकाओं को चावल के साथ मिला दिया है जिससे चावल तथा मांस दोनों की संरचना एवं गुणवत्ता समान हो गई है। दक्षिण कोरिया के सियोल में योनसेई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जिन्की होंग और उनके सहयोगी चावल के दानों और पशु कोशिकाओं को एक साथ मिला कर नया चावल बनाया है। चावल को उसके असाधारण पोषण मूल्य के कारण मुख्य भोजन के रूप में चुना गया, जिसमें कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन के साथ-साथ अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं।
इस तकनीक के लिए काम कर रहे हैं वैज्ञानिकों के मुताबिक पहले चावल के दानों को मछली जिलेटिन से लेपित किया ताकि जानवर की मांसपेशियों की कोशिकाएं उनसे चिपक सकें, फिर कोशिकाओं को लगभग पांच से सात दिनों तक चावल के दानों में बढ़ने दिया। इसके बाद, चावल को एक ऐसे माध्यम में रखा गया जिससे अनाज के अंदर जानवर की कोशिकाओं को बढ़ने के लिए प्रतिकूल वातावरण मिले। इस प्रकार वैज्ञानिकों ने मांस-चावल का हाइब्रिड चावल तैयार किया। जो सामान्य चावल की तरह पानी में उबाला और भाप में पकाया जा सकता है। इस चावल की बनावट नियमित चावल की तुलना में सख्त, भंगुर और कम चिपचिपी होती है।
वैज्ञानिकों ने इस हाइब्रिड चावल को पौष्टिक और स्वादिष्ट हाइब्रिड भोजन का नाम दिया है। इसमें नियमित चावल की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक वसा और 8 प्रतिशत अधिक प्रोटीन होता है। इसकी उत्पादन लागत लगभग 2.23 डॉलर प्रति किलोग्राम से लेकर 14.88 डॉलर प्रति किलोग्राम तक हो सकती है।
इस अनुसंधान का दूसरा फायदा यह बताया जा रहा है कि लैब मीट के प्रति यूनिट उत्पादन की तुलना में सीधे पशुपालन पद्धति से पशु मांस के उत्पादन में 8 गुना अधिक कार्बन पैदा होता है अर्थात लैब मीट तकनीक से उत्पादित मीट में 8 गुना कम ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है।