कमाल के संगठक, हर परिस्थिति में संघर्ष के लिए तैयार रहते थे 'जोलू बाबू'
जानें कौन हैं पद्म भूषण से सम्मानित होने वाले सत्यव्रत मुखर्जी
कोलकाता, 27 जनवरी (हि.स.)। पूर्व केंद्रीय मंत्री और पश्चिम बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सत्यव्रत मुखर्जी को मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। एक समय देश की राजनीति में सत्यव्रत मुखर्जी जाना-माना नाम थे और बंगाल में उन्हें लोग जोलू बाबू के नाम से ज्यादा जानते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्य मंत्री रहे और बंगाल में भाजपा के संगठन को ऐसे समय में खड़ा किया जब पार्टी का पूर्वी भारत में नामोनिशान नहीं था। 90 साल की उम्र में सत्यव्रत मुखर्जी का मार्च 2023 में कोलकाता में निधन हो गया था।
देश के जाने-माने विधि विशेषज्ञों में शुमार सत्यव्रत मुखर्जी का जन्म 8 मई 1932 को सिलहट (अब बांग्लादेश) में हुआ था। उनकी शिक्षा कलकत्ता यूनिवर्सिटी में हुई थी। इसके अलावा उन्होंने द ऑनरेबल सोसाइटी ऑफ लिंकन इन से बार-एट-लॉ की पढ़ाई की थी। वहीं आगे की पढ़ाई लंदन में रीजेंट स्ट्रीट पॉलिटेक्निक से की। सत्यव्रत मुखर्जी 1999 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर सीट से सांसद चुने गए। इससे पहले वह भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल थे।
बंगाल भाजपा के वटवृक्ष थे जोलू बाबू
उनके साथ काम कर चुके बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने बताया कि वह बंगाल में भाजपा के लिए वटवृक्ष थे। जब राज्य में कोई पार्टी का झंडा उठाने को तैयार नहीं था तब उन्होंने न केवल संगठन के विस्तार की जिम्मेदारी संभाली बल्कि इसे धीरे-धीरे बड़ा किया। सिन्हा कहते हैं कि वाम मोर्चा के जमाने में भाजपा का नाम लेना भी डर का पर्याय था लेकिन जोलू बाबू इतने संघर्षशील थे कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी। कभी डरे नहीं। तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद उन्होंने राज्य भर का दौरा किया और पार्टी के संगठन को न केवल खड़ा किया बल्कि इतना मजबूत किया कि आज राज्य में हम मुख्य विपक्षी दल के तौर पर खड़े हैं। सिन्हा का कहना है कि जिस तरह आज भाजपा पूरी दुनिया में सबसे बड़ी पार्टी है, उसे इतना मजबूत बनाने में देशभर में जिन दिग्गजों ने खुद को समर्पित कर दिया, उनमें जोलू बाबू भी थे।
वकालत के पेशे में सत्यव्रत मुखर्जी के निकट सहयोगी रह चुके सनातन सोआइन 33 साल पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहते हैं कि पहली बार जब उन्हें देखा तो उनके व्यक्तित्व और संबोधन से इतना प्रभावित हुआ कि मैं हमेशा के लिए उनके साथ हो लिया। सनातन कहते हैं कि जोलू दा का एकमात्र मकसद संगठन को मजबूत करना था। उन्होंने बताया कि 2019 में भी कृष्णा नगर लोकसभा सीट से उन्हीं को उम्मीदवार बनाने की कवायद में बंगाल भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष दिलीप घोष, मुकुल रॉय वगैरह लगे थे। भाजपा में 70 साल से अधिक उम्र के नेताओं को अघोषित तौर पर मुख्यधारा में नहीं रखा जाता। तब जोलू बाबू ने उदाहरण पेश करते हुए खुद सामने आकर कहा कि नई पीढ़ी को मौका मिलना चाहिए। उन्होंने कल्याण चौबे को टिकट दिए जाने का समर्थन किया और कहा कि वह खुद उनके लिए प्रचार करेंगे। तब जोलू बाबू की उम्र 86 साल थी। यहां उन्हीं के नाम पर प्रचार होता रहा और कल्याण चौबे जीतकर सांसद बने।
सत्यव्रत मुखर्जी के समय एक साथ थी भाजपा-तृणमूल
बंगाल भाजपा में सत्यव्रत मुखर्जी 1999 में ऐसे समय में सांसद चुने गए थे जब बंगाल में भाजपा का कोई जनाधार नहीं था। हालांकि उस समय भाजपा तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन में थी। वहीं सांसद बनने के बाद वह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्यमंत्री बनाए गए थे। वे अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी माने जाते थे।
सत्यव्रत मुखर्जी जुझारू नेता थे। बंगाल में अपनी पार्टी के कठिन दौर में भी उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई। वह 2008 तक प्रदेश अध्यक्ष रहे। राजनीतिज्ञ के साथ-साथ वे जाने माने वकील थे। वह केंद्र सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी रहे थे।