आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का 'स्व' लौटकर आया है : मोहन भागवत

सम्पूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला नया भारत खड़ा होकर रहेगा, इसका प्रतीक आज है

अयोध्या, 22 जनवरी (हि.स.)। श्रीरामलला की प्राणप्रतिष्ठा के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने सोमवार को कहा कि आज आनंद का क्षण है। आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का 'स्व' लौटकर आया है। सम्पूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला नया भारत खड़ा होकर रहेगा, इसका प्रतीक आज है। इस आनंद का वर्णन कोई अपने शब्दों में नहीं कर सकता है। हमारे दूरदर्शन के माध्यम से इस कार्यक्रम को दूर दराज के लोग देखकर भावविभोर हो रहे हैं। दुनिया देख रही है।

मोहन भागवत ने कहा कि आज हमने सुना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कठोर व्रत किया। जितना कठोर कहा गया था, उससे ज्यादा कठोर व्रत किया है। उन्हें हम पहले से जानते हैं। वे कठोर व्रती हैं। वे अकेले व्रत करेंगे तो हम क्या करेंगे? राम बाहर क्यों गए थे। इस पर विचार कीजिए। अयोध्या में कभी कलह नहीं थी। कलह के कारण बन गए। 14 वर्षों तक बाहर रहकर दुनिया की कलह को समाप्त कर वापस आए थे। आज एक बार फिर राम जी वापस आए हैं। आज के दिन का इतिहास जो-जो सुनेगा वह राष्ट्र कार्य को समर्पित होगा और खुद का कल्याण करेगा। प्रधानमंत्री ने तप किया। अब हमें भी तप करना है।

मानस की चौपाइयों को सुनाते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि राम राज्य का जो वर्णन किया गया है। उस भारत माता की हम संतानें हैं। कलह को विदाई देनी होगी। छोटे-छोट कलह को छोड़कर हमें आगे बढ़ना होगा। भगवान राम के चरित्र को अपनाना होगा।

उन्होंने कहा कि कठिन भाषण बहुत हो सकता है। युगानुकूल आचरण देखना होगा। सत्य कहता है कि सब घट में राम हैं। हमें यह जानकार आपस में समन्वय करके चलना होगा। यह धर्म का पहला आचरण है। दूसरा कदम करुणा है। इसका मतलब सेवा और परोपकार करना है। सरकार करती है लेकिन हमें भी करना है। दोनों हाथों से कमाएं और अपने साथ-साथ दूसरों की सेवा करें। दान करें। इसके बाद खुद को संयम में रखने को कहा गया है। अनुशासन का पालन करना है। अपने समाज, कुटुम्ब, सामाजिक जीवन में अनुशासन का पालन करना है। भगिनी निवेदिता कहती हैं कि यही असली जीवन है।

उन्होंने कहा कि पांच सौ वर्षों तक अनेक तपस्वियों ने अपने प्राणों की आहुति तक दी। इसके बाद यह अवसर आया है। मुझे यहां बिठाया गया तो मैं सोचता हूं कि मैंने क्या किया। उन आत्माओं को समर्पित करते हुए इसे मैं इसे स्वीकार करता हूं। मुझे राम के आदर्शों को लेकर जाना है। मंदिर निर्माण के साथ ही विश्व गुरु का सपना भी पूरा हो जाएगा।

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