बुद्ध की शिक्षाएं अतीत के अवशेष नहीं, हमारे भविष्य के लिए दिशा-निर्देश हैं : उपराष्ट्रपति
गौतम बुद्ध का शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व का संदेश नफरत और आतंक की ताकतों के खिलाफ खड़ा है
नई दिल्ली, 17 जनवरी (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि बुद्ध की शिक्षाएं अतीत के अवशेष नहीं बल्कि हमारे भविष्य के लिए एक दिशा-निर्देश हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गौतम बुद्ध का शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व का संदेश नफरत और आतंक की ताकतों के खिलाफ खड़ा है।
उपराष्ट्रपति नई दिल्ली में एशियन बौद्ध कॉन्फ्रेंस फॉर पीस (एबीसीपी) की 12वीं महासभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नैतिक अनिश्चितता के युग में बुद्ध की शिक्षाएं सभी जीवन के लिए स्थिरता, सादगी, संयम और श्रद्धा का मार्ग प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा कि उनके चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग हमें आंतरिक शांति, करुणा और अहिंसा की ओर ले जाते हैं।
धनखड़ ने भारत के सेवा-संचालित शासन के दृष्टिकोण पर बुद्ध की शिक्षाओं के गहरे प्रभाव पर जोर दिया। उन्होंने रेखांकित किया कि कैसे ये सिद्धांत नागरिक कल्याण, समावेशिता और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देने की देश की प्रतिबद्धता में एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में काम करते हैं। बुद्ध के कालातीत ज्ञान पर विचार करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि जीवित प्राणियों के लिए भी शांति का एक शक्तिशाली, सामंजस्यपूर्ण, संपूर्ण और निर्बाध मार्ग प्रदान करता है।
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन, संघर्ष, आतंकवाद और गरीबी जैसी समकालीन चुनौतियों से निपटने में बुद्ध के सिद्धांतों की सार्वभौमिक प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया। उन्होंने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को आशा की किरण के रूप में उजागर करते हुए इन अस्तित्वगत खतरों को दूर करने के लिए एक सहयोगात्मक और सामूहिक दृष्टिकोण का आह्वान किया। पांच दशकों के बाद भारत में आयोजित हो रहे इस कार्यक्रम में एबीसीपी के अध्यक्ष, मोस्ट वेन गैबजी डेम्बरेल चोइजामट्स और केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू भी उपस्थित थे।