जब कोर्ट ने दिया जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश

कारसेवा से कारसेवा’ तक पुस्तक के लेखक गोपाल शर्मा लिखते हैं कि 1966 से 1976 तक मामला लगभग ठंढा पड़ा रहा

जब कोर्ट ने दिया जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश

लखनऊ, 08 दिसंबर (हि.स.)। राजीव गांधी केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री थे और एक फरवरी 1986 को नई दिल्ली के पालम हवाई अड्डा (इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा) पर कैथोलिक इसाइयों के पोप जॉन पाल उतर रहे थे। हिंदू संगठन विरोध कर रहे थे क्योंकि सरकार ने उनको राजकीय अतिथि बनाया था। धर्मनिरपेक्ष देश में पोप को राजकीय अतिथि बनाए जाने पर हिंदू संगठन आपत्ति कर रहे थे।

‘कारसेवा से कारसेवा’ तक पुस्तक में गोपाल शर्मा लिखते हैं कि आंदोलन, विरोध, काला झंडा, मुर्दाबाद के बीच लाठी चार्ज और गिरफ्तारी का दौर भी जारी था। वहीं दूसरी तरफ फैजाबाद में इतिहास नया अध्याय लिख रहा था। ठीक इसी दिन 10 बजकर दो मिनट पर न्यायालय श्रीराम जन्म भूमि पर ताला खोलने का आदेश सुना रहा था।

हिंदूओं ने न्यायालय में साफ कह दिया था कि विवादित स्थल के एक भाग में दीवार बनाकर राम चबूतरा और रामलला विराजमान को अलग इसलिए किया गया है ताकि अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति जारी रहे। यह अंग्रेजों की चाल थी कि पीछे के भाग को मस्जिद बताकर मुसलमानों को नमाज अदा करने के लिए प्रेरित किया जाए। जबकि यह संभव नहीं है, क्यों कि बाहर की तरफ हम हिंदुओं का कब्जा है।

हिंदू पक्ष ने तर्क यह भी दिया गया कि यदि उक्त स्थल पर मस्जिद कभी रही होती तो उसकी देखभाल और प्रबंधन के लिए मुतबल्ली रहता। जब मुतबल्ली रहता तो क्षतिग्रस्त भाग को ठीक कराने के लिए सरकार को कष्ट क्यों उठाना पड़ता। हिंदूओं के अकाट्य तर्को के आगे न्यायालय में प्रतिवादी पक्ष की बोलती बंद हो गई। आखिरकार फैसला हिंदूओं के पक्ष में आया।

‘कारसेवा से कारसेवा’ तक पुस्तक के लेखक गोपाल शर्मा लिखते हैं कि 1966 से 1976 तक मामला लगभग ठंढा पड़ा रहा। लेकिन इस दौरान देश तीन प्रमुख घटनाओं से गुजर रहा थ। पहला तो देश में आपात काल लगा दिया गया। विपक्ष जेल में और अखबारों पर ताला लटका दिया गया। श्रीराम जन्मभूमि पर रिसीवर कौन बने यह बड़ा मुद्दा बना हुआ था। तीसरा निचली अदालत ने नया रिसीवर बना दिया और मामला हाईकोर्ट में चला गया।

राम की अयोध्या पुस्तक में सुदर्शन भाटिया लिखते हैं कि 25 जनवरी 1986 का दिन। फैजाबाद कोर्ट मेंं अधिवक्ता उमेश चंद्र पाण्डेय ने एक प्रार्थना पत्र मुंसिफ सदर कोर्ट में प्रस्तुत किया कि श्रीराम जन्मभूमि में ताला बंद है। जबकि अंदर पूजा-पाठ पिछले तीन दशकों से हो रहा है। ताला बंद होने से बाहरी श्रद्धालु अंदर नहीं जा पा रहे हैं और उनको उनकी आस्था और पूजा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसके लिए विद्वान अधिवक्ता ने गोपाल सिंह विशारद मामले का हवाला देते हुए न्यायालय को बताया कि उक्त मामले में न्यायालय ने निषेधाज्ञा दे रखी है। यह हिंदुओं के पक्ष में हैं कि उनको पूजा-पाठ के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। लेकिन न्यायालय ने यह कहा कि चार प्रकार के मुकदमों को संयुक्त किया गया है और उससे संबंधित समस्त कागजात हाईकोर्ट में है, इसलिए कोई आदेश पारित करना संभव नहीं है। उमेश चंद्र पाण्डेय ने इसके बाद मामला फैजाबाद के ही जिला जज एम. के. पाण्डेय की अदालत में दायर कर दिया था। जिसके बाद न्यायालय ने श्रीराम जन्मभूमि पर 35 सालों से बंद ताला खोलने का आदेश दिया।

देशभर के समाचार सुर्खियों में एक ही खबर थी

अयोध्या में 35 साल से बंद श्रीराम जन्मभूमि का ताला शनिवार की शाम को खुल गया। ताला खुलते ही समूचा वातावरण भगवान राम के जयकारों से गूंज उठा। पूरे अयोध्या कस्बे में धार्मिक स्थल का मुक्ति दिवस मनाया गया। जिला प्रशासन ने एहतियात के तौर पर अयोध्या और आसपास सशस्त्र पुलिस बल तैनात कर दिया है। फैसले के समय भी अदालत के बाहर भारी भीड़ जमा थी। जिला व सत्र न्यायाधीश कृष्ण मोहन पाण्डेय ने शनिवार को वकील उमेश चंद्र पाण्डेय की याचिका पर ताला खोलने का आदेश दिया। ताला खोलने की मांग को लेकर पिछले साल बिहार के सीतामढ़ी से लेकर दिल्ली तक रथयात्रा शुरू की गई थी। अनेक धार्मिक व सामाजिक संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक भी अदालत में हाजिर हुए थे। जिला मजिस्ट्रेट ने अदालत को कहीं भी ताला लगाने का उल्लेख नहीं है। पुलिस अधीक्षक ने कोर्ट से कहा कि बिना ताला लगाए भी उक्त स्थान की सुरक्षा हो सकती है।

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