गुरु गोविंद सिंह, बाबा वैष्णव दास ने जन्मभूमि के लिए किया अनवरत युद्ध

हिंदू कभी शांत बैठे ही नहीं, लगातार संघर्ष और युद्ध जारी रहा

गुरु गोविंद सिंह, बाबा वैष्णव दास ने जन्मभूमि के लिए किया अनवरत युद्ध

लखनऊ, 01 दिसम्बर (हि.स.)। फरिश्तों के उतरने की जगह श्रीराम जन्मभूमि पर मस्जिद तामीर होने के बाद बाबर के समय में ही चार बार भीषण युद्ध हिंदुओं ने किया। अयोध्या की धरती लाल हो उठी थी। यह संघर्ष थमा नहीं बाबर के बाद हूमायूं के समय भी हिंदू शांत नहीं बैठे। 1530 से लेकर 1556 तक दस बार हिंदुओं ने हमला किया और हुमायूं को दिल्ली की गद्दी पर चैन से नहीं बैठने दिया। हालांकि बाबर की तुलना में हूमायूं को शांत प्रकृति का कहा जाता है, वह युद्ध से घबराता था। यहां तक कि साम्राज्य विस्तार की उसकी इच्छाएं ना के बराबर थीं। कहा जाता है कि वह पुस्तकों का प्रेमी था और उसकी मौत भी पुस्तकालय की सीढ़ियों से फिसलने के कारण हो गई थी।

जन्मभूमि को पाने के लिए हिंदुओं ने किए 20 से अधिक हमले

अपने आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि को प्राप्त करने के लिए प्राणोत्सर्ग करना अब हिंदुओं के लिए मोक्ष से कम नहीं था। हिंदू कभी शांत बैठे ही नहीं, लगातार संघर्ष और युद्ध जारी रहा। तुर्क और मंगोल मां-बाप की औलाद बाबर में जो क्रूरता और साम्राज्य की सनक भरी थी, वह उसके बेटे हुमायूं में काफी कम थी। जबकि बाबर के नाती अकबर को तो इतिहासकारों ने सहिष्णु ही घोषित कर दिया। कमोबेश उसे माना भी जा सकता है। लेकिन अकबर के समय 1556 से 1605 तक 20 से अधिक बार हिंदुओं ने जन्मभूमि के लिए हमला बोला। इन युद्धों मेें स्वामी बलरामाचार्य निरंतर लड़ते रहे और आखिरकार वीरगति को प्राप्त किया।

युद्धों से आजिज आया अकबर

लगातार युद्ध, विद्रोह, असंतोष से अकबर तंग आ गया। अब क्या करें? एक तरफ उसे राजस्थान के मेवाड़ से लगातार चुनौती मिल रही थी। वह राजस्थान की बड़ी सेनाओं का सामना करें या अयोध्या में साधु संतों से लड़ाई पर अपनी सेना को न्योछावर करे। इन्हीं सवालों को लेकर उसने अपने मंत्रीमंडल की बैठक बुलाई। अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा शुरू कर दिया। अकबर के मंत्रियों ने सुझाव दिया कि अयोध्या का हिंदुओं के लिए बहुत अधिक महत्व है और वह शांत नहीं बैठेगें।

अबुल फजल ने लिखा

अकबर के जीवनी लेखक अबुल फजल ने आईन ए अकबरी में 1598 में लिखा कि 'हिंदुओं के लिए अयोध्या का बड़ा ही महत्व है और राम की पूजा उनके लिए परम श्रद्धा का विषय है। बादशाह अकबर ने हिंदुओं में श्रीराम के प्रति आस्था को देखते हुए राम और सीता की तश्वीर वाली मुहरें भी जारी किया था। यहां तक कि उसने तांबे के सिक्कों का टकसाल भी अयोध्या में बनवाया।'

बीरबल और टोडरमल का सुझाव मान लिया अकबर

अकबर के नौरत्नों में शामिल राजा बीरबल और राजा टोडरमल ने उसे सुझाव दिया कि श्रीराम जन्मभूमि पर हिंदुओं को पूजा करने देना ही एकमात्र समाधान है। इसके बाद अकबर ने फरमान जारी किया कि बाबरी मस्जिद के सामने चबूतरा बनाकर उस पर छोटा सा राममंदिर बनाया जाए। बाद में इस चबूतरे पर ही संगमरमर का राममंदिर बनकर तैयार हुआ और हिंदू पूजा-पाठ शुरू कर दिए। अकबर ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी तरह हिंदुओं को पूजापाठ में व्यवधान नहीं आना चाहिए।

हिंदुओं के साथ कोई रियायत न हो

अकीदा ए शहर के लेखक मिर्जा जान एक फारसी लेखक था। वह अपनी पुस्तक में लिखता है कि सन् 1707 में औरंगजेब की पौत्री ने अयोध्या के बारे में लिखा कि इस्लाम की जीत को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम बादशाहों को हिंदुओं के साथ कोई रियायत नहीं बरतनी चाहिए और उनसे जजिया कर वसूलना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार और सबके राम पुस्तक के लेखक फजले गुरफान अयोध्या का अर्थ और इतिहास की अपनी पुस्तकों में इन बातों का हवाल देते हैं। वह लिखते हैं कि 1735 में फैजाबाद के काजी के हस्ताक्षर वाले एक पत्र में लिखा है कि मुसलमानों के बीच बाबरी मस्जिद पर कब्जे को लेकर बड़ा दंगा हुआ था।

औरंगजेब के समय 30 बार हुए हमले

मुगल शासन का पतन औरंगजेब के समय ही शुरू हो चुका था। उसके पुत्रों में उत्तराधिकार की खूनी लड़ाई होने लगी थी। यूरोपियन शक्तियां भी मजबूत स्थिति में आती जा रही थी। इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब के समय में अयोध्या पर 30 से अधिक बार हमले हुए। जिसमें गुरु गोविंद सिंह, बाबा वैष्णवदास, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदंबा सिंह ने जमकर युद्ध किया। एकबार तो बाबरी मस्जिद हिंदुओं के कब्जे में ही आ गई थी लेकिन अगले ही दिन शाही फरमान के बाद उसे वापस ले लिया गया।

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