मुगल सेना दिनभर बनाती दीवार और रात में गिर जाती तो मीर बांकी हुआ हैरान

बाबर के गुरु बने दोनों सिद्ध फकीरों की सिद्धाई हवा हो गई

मुगल सेना दिनभर बनाती दीवार और रात में गिर जाती तो मीर बांकी हुआ हैरान

लखनऊ, 29 नवंबर (हि.स.)। एक तरफ भीषण युद्ध जारी था तो दूसरी तरफ मंदिर के मलबे से ही मस्जिद का निर्माण भी जारी था। तमाम कोशिश के बाद दिनभर मस्जिद बनती और रात में वह गिर जाती। पता नहीं क्या होता कि रात में दीवार भरभराकर गिर जाती। शुरू में तो मुगल सेना इसे निर्माण की खामी समझती रही लेकिन बाद में हैरान हो गई। इसके बाद ताशकंदी मीर बांकी ने जन्मभूमि के आसपास मुगल सैनिकों का कड़ा पहरा लगा दिया। वहां चारों तरफ आधे मील तक किसी भी व्यक्ति के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बावजूद दीवार का गिरना बंद नहीं हुआ। बाबर के गुरु बने दोनों सिद्ध फकीरों की सिद्धाई हवा हो गई।

कोई आसमानी ताकत गिरा देती है दीवार

अब क्या करें। दिनरात कड़े पहरे के बावजूद जितनी दीवार बनती है, रात में गिर जाती है। मीर बांकी ने अपने मुगल सेना के अपने सिपहसालारों से राय मशविरा किया और तय हुआ कि जहांपनाह बाबर को इसकी खबर दे देनी चाहिए। पूरी खबर दिल्ली में बादशाह बाबर को भेजी गई कि मस्जिद निर्माण में कड़ा पहरा लगा देने के बाद भी दीवार गिर जाती है, यह किसी आसमानी ताकत का असर दिखाई देता है।

बाबर को जब यह खबर मिली कि अयोध्या में मुगल सेना रोज जो मस्जिद बना रही है वह अपने आप ही गिर जा रही है तो बाबर भी हैरान हुआ। उसने मीर बांकी को संदेश भेजा कि यदि ऐसा हो रहा है तो आप काम बंद कर दो और सेना लेकर वापस दिल्ली कूच करो। मीर बांकी गजब का तासुब्बी था, उसे यह बात गंवारा नहीं थी कि मस्जिद का निर्माण बंद किया जाए। दूसरी तरफ फकीर भी बाबर का आदेश सुनकर आपे से बाहर हो गए। उनको कत्तई मंजूर नहीं था कि मस्जिद निर्माण बंद किया जाए। पंडित रामगोपाल पाण्डेय शारद अपनी पुस्तक रामजन्म भूमि के रोमांचकारी इतिहास में लिखते हैं कि इसके बाद फकीर जलालशाह और फजल अब्बास ने आपस में सलाह किया और बाबर को संदेश भेजवाया कि अगर इस पाक सरजमीं पर मस्जिद तामीर हो गई तो हिंदुस्तान में तुम्हारी जड़ें मजबूत हो जाएंगी।

किसी कीमत पर निर्माण रोकना फकीरों को मंजूर न था

फकीरों को किसी कीमत पर निर्माण के काम को रोकना मंजूर नहीं था। फकीरों ने बाबर को संदेश भेजा कि काम बंद नहीं हो सकता बादशाह खुद ही अयोध्या तशरीफ लाएं। फकीरों की दुआ से बाबर पहले ही काफी प्रभावित था वह उनका आदेश टाल नहीं पाया। उसने संदेश मिलते ही अयोध्या की तरफ रुख कर लिया।

साधु-संतों से पूछा दीवार कैसे गिर जाती है

अयोध्या आकर उसने साधु, संत-महात्माओं से राय विमर्श किया कि आप लोग बताएं कैसे मस्जिद की दीवार गिर जाती है। कैसे यहां पर मस्जिद बन सकती है। फकीर जलालशाह अपनी हठ नहीं छोड़ रहे हैं। साधु-संतों ने कहा कि आप बादशाह हैं लेकिन हनुमान जी से बड़ा कोई योद्धा नहीं है, वह मस्जिद के नाम पर इसे बनने नहीं देंगे। यदि आप यहां पर मस्जिद ही बनवाना चाहते हैं तो परिवर्तन करना होगा। इसके लिए इसे मस्जिद का रुप न दिया जाए और सीता पाक स्थल लिखा जाए तो यह बन सकता है। इसके बाद बाबर ने हिंदू संतों की सारी बातें मान ली और इसमें बनाई जाने वाली मीनारों को गिराने का आदेश दे दिया। दरवाजे में एक चंदन की लकड़ी लगा दी गई। बीचों बीच दो गोलाकार चिन्ह लगाकर उसपर मुडिय़ा और फारसी भाषा में श्रीसीता पाक स्थल लिखा गया। उत्तर की ओर स्थित कौशल्या के छठी पूजन स्थान को जिसे तोड़ दिया गया था उसे फिर से बना दिया गया। चारों तरफ परिक्रमा मार्ग जो पहले बना था उसे वैसे ही छोड़ दिया गया।

हिंदू जब चाहे पूजा कर सकते हैं बाबर का आदेश

बाबर ने आदेश दिया कि इस परिक्रमा में हिंदू जब चाहे पूजा पाठ या भजन कर सकते हैं। इसके साथ ही मुसलमानों के लिए जुमे की नमाज पढऩे के लिए सिर्फ दो घंटे का समय निर्धारित कर दिया गया। इसप्रकार की कूटनीति करते हुए बाबर ने मंदिर को गिराकर ढांचा खड़ा कर दिया जो बाद में इतिहास का पीड़ादायक अध्याय बन गया।

आजादी के बाद क्या हुआ

देश की आजादी के बाद प्रभासपट्टम के श्रीसोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर उसे भव्य स्वरुप दे दिया गया। जबकि प्रभास पट्टम के सोमनाथ मंदिर विध्वंस का मलबा सदियों तक वैसे ही समुद्र के किनारे पड़ा रहा। लेकिन सरदार बल्लभ भाई पटेल और प्रथम राष्ट्रपति महामहीम डॉ राजेंद्र प्रसाद के सत्प्रयासों से विदेशी आक्रांताओं की भूल का सुधार हुआ। लेकिन अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि पर संघर्ष का सिलसिला इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक तक चलता रहा है।

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