आरएसएस प्रमुख और प्रेमानंद जी महाराज के बीच समाज को राह दिखाने वाली हुई वार्ता

हम भारत के लोगों को परम सुखी तभी कर सकते हैं जब उनका बौद्धिक स्तर सुधरेगा : प्रेमानंद महाराज

आरएसएस प्रमुख और प्रेमानंद जी महाराज के बीच समाज को राह दिखाने वाली हुई वार्ता

मथुरा, 29 नवम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ.मोहनराव भागवत वृंदावन में आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंदजी महाराज से बुधवार सुबह मिलने पहुंचे। उन्होंने प्रेमानंदजी महाराज को माला पहनाकर और पीला दुपट्टा ओढ़ाकर स्वागत किया। इस दौरान उनसे उन्होंने आध्यात्मिक चर्चा भी की। इनके बीच की चर्चा इतनी प्रेरक है कि लोग इस वीडियाे को सोशल मीडिया पर तेजी से बढ़ा रहे हैं।

बुधवार की सुबह वृंदावन में आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंदजी महाराज के आश्रम पहुंचे, जहां संघ प्रमुख ने प्रेमानंद महाराज का स्वागत करते हुए कहा कि आपकी बातें वीडियो में सुनी थी, तो लगा कि एक बार दर्शन कर लेना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, 'चाह गई, चिंता मिटी' मनवा बेपरवाह' आप जैसे लोग कम देखने को मिलते हैं।

इसके बाद अपने आशीर्वचन में प्रेमानंदजी महाराज ने कहा कि अपने लोगों का जन्म सिर्फ सेवा के लिए हुआ है। इसके दो पक्ष हैं। व्यवहारिकी और आध्यात्म की सेवा। यह दोनों सेवाएं अति अनिवार्य हैं। उन्होंने कहा कि हम भारत के लोगों को परम सुखी करना चाहते हैं, तो सिर्फ वस्तु और व्यवस्था से नहीं कर सकते हैं, उनका बौद्धिक स्तर सुधरना चाहिए।

प्रेमानंदजी महाराज ने कहा आज हमारे समाज का बौद्धिक स्तर गिरता चला जा रहा है, यह बहुत चिंता का विषय है। हम सुविधाएं दे देंगे, विविध प्रकार की भोग सामग्रियां दे देंगे, पर उनके हृदय की जो मलीनता है, हिंसात्मक प्रवृत्ति है, जो अपवित्र बुद्धि है, ये जब तक ठीक नहीं होगी, तब तक चीजें नहीं बदलेंगी।

उन्होंने कहा कि हमारा देश धार्मिक देश है। यहां धर्म की प्रधानता है। इसी बात को लेकर बार-बार निवेदन करता हूं। हमारी नई पीढ़ी से ही हमारे राष्ट्र की रक्षा करने वाले प्रगट होते हैं। जो विद्यार्थीजन हैं, उसी में से कोई एमएलए बनेगा, कोई सांसद बनेगा, कोई मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति बनेगा, हमलोग भी उसी में से हैं।

उन्होंने शिक्षा की आधुनिक स्वरूप पर चिंता जताते हुए कहा कि उसके कारण व्यभिचार, व्यसन व हिंसा प्रवृत्ति वर्तमान पीढ़ी में बहुत देखने को मिल रही है। इससे हृदय में असंतोष होता है। कितनी भी शरीर में पीड़ा हो, हम प्रयास करते हैं कि हमारे सामने जितने भी भगवतजन आते हैं, उनसे कहता हूं पहले बुद्धि शुद्ध होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अविनाशी जीव कभी भोग-विलास में तृप्त हो ही नहीं सकता। राष्ट्र का विशेष सेवा के लिए हमारे धर्म का परिचय और हमारे धर्म का क्या स्वरूप है, हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है, इसे जानने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमें जितना रामजी प्रिय हैं, कृष्णजी प्रिय हैं और उतना ही भारत देश हमारे लिए प्रिय है। जैसे रामभक्त, कृष्णभक्त, वैसे ही हमारे भारत का जन-जन आदरणीय व पूजनीय है।

उन्होंने कहा कि परन्तु अब जो मानसिकता बन रही है, वह हमारे धर्म व देश के लिए लाभदायक नहीं है। व्यसन, व्यभिचार व हिंसा का इतना बढ़ता स्वरूप, यह बहुत ही विपत्तिजनक है। अगर ये बढ़ता रहा तो विविध प्रकार की सुख-सुविधा देने के बावजुद भी अपने देशवासियों को सुखी नहीं कर पायेंगे।

उन्होंने कहा कि सुख का स्वरूप विचार से होता है। सुख और दुख की स्थिति सही नहीं है। वर्तमान में हमारा विचार गंदा हो रहा है। हमारा उद्धेश्य यही है कि हमारे देशवासियों का विचार शुद्ध होना चाहिए। अगर विचार शुद्ध है तो राष्ट्रप्रियता, जनसेवा, समाजसेवा, यह सब स्वाभाविक होने लगेगा। विचार अशुद्ध है तो सभी सुविधाओं को दुरुपयोग होने लगेगा। जिन्हें भी ईश्वर ने धरती पर भेजा है, उनसे बार-बार निवेदन है कि वह अध्यात्म को समझें। बिना अध्यात्म को समझे दुख-सुख की समानता वगैर किए, परमसुख का अनुभव हो ही नहीं सकता।

उन्होंने कहा कि लौकिक भोगों को पूजन सामग्री बना करके और साध्य सच्चिदानन्द प्रभु को रखा जाय तो आनन्द की अनुभूति हो जायेगी। बहुत मानव जीवन का स्वरूप है। इसे दुर्लभ कहा गया है। हम सच्चिदानन्द स्वरूप को भूले हुए हैं, इसे समझें।

उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि छोटे-छोटे बच्चे व्यसन कर रहे हैं। आज स्कूली विद्यार्थी जिन्हें ब्रह्मचर्य से पुष्ट होना चाहिए। वह अपना ब्रह्मचर्य नष्ट कर रहे हैं, यह चिंता का विषय है। हमारे देश के लिए जो जवान चाहिए, जो भक्ति चाहिए, उसमें बुद्धि और शरीर बल दोनों होना चाहिए। शरीर बल क्षीण हो रहा है, क्योंकि व्यभिचार प्रबृत्ति में बहुत की कमजोर अवस्था में बच्चे लिप्त हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि 20 वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य नष्ट कर दिया जाय तो वह गृहस्थ के योग्य भी नहीं रह सकता, राष्ट्रसेवा की बात क्या करेगा। राष्ट्रसेवा के लिए विशाल हृदय की आवश्यकता है। हमारे शरीर को बहुत स्वस्थ्य रखने की आवश्यकता है। तभी हम समाज सेवा व राष्ट्रसेवा कर सकते हैं। शरीर और मन दोनों का स्वस्थ्य होना बहुत ही जरूरी है। उन्होंने कहा कि शरीर को तो नष्ट किया जा रहा विषय भोगों में। लोग समझने लगे हैं कि मांस खाने से हम स्वस्थ्य होंगे, हम बलवान बनेंगे। अध्यात्म बल नहीं तो शरीर की चर्बी बढ़ा ले तो न काम पर विजय प्राप्त कर सकता है और न क्रोध, न लोभ, न बल और न हिंसा पर तो फिर क्या जीवन ?

उन्होंने कहा कि इस समय आवश्यकता है कि विचार, आहार और आचरण शुद्ध करने की है। हमारे देश ने चरित्र की पूजा की है। रावण विद्वान व बलवान में कम नहीं था लेकिन उसके आचरण ने उसे राक्षस बना दिया। आज हम चरित्र पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। हम अपना चरित्र बेच रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे अपना चरित्र बेच रहे हैं। अगर हमारे बच्चे व्यवस्थित नहीं होंगे तो हमारा राष्ट्र संकट में पड़ जायेगा। उनका बुद्धि ठीक नहीं रहा और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहा तो बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा। अपनी नई पीढ़ी को सुधारा जाय। उनकी मानसिकता और उनका बौद्धिक स्तर सुधरे क्योंकि भगवान ने हमें सेवा के लिए भेजा है। चाहे जितना कोई भी गुफा में एकान्त में साधना करे, अगर उसकी उपयोगिता समाजसेवा के लिए नहीं है तो कोई मतलब नहीं है। अपना उद्धार कर लेना, कोई खास बात नहीं है। खास बात है कि अपने जीवन को सत्य और तप में तपा करके समाज को प्रदान कर देना।

उन्होंने कहा कि मनुष्य साधारण नहीं हैं, वह अविनाशी है। मनुष्य, जो चाहे वह कर सकता है लेकिन उसकी चाह ठीक होनी चाहिए। अगर चाह ठीक नहीं है तो उसका भविष्य संकट में पड़ जायेगा। व्यसन छोड़ो, व्यभिचार छोड़ो, राष्ट्रसेवा व समाजसेवा में लगो। वर्तमान पीढ़ी मां व पिता को घर से निकाल दे रही है। क्या, यही ज्ञान है। मनुष्य, मनुष्यता को छोड़ते जा रहे हैं, यह चिंता का विषय है।

सरसंघचालक के एक जिज्ञासा और चिंता पर उन्होंने कहा कि जगद्गुरु श्रीकृष्ण पर हम भरोसा करें। हमें जो खास बात पकड़नी है। परममंगल होगा। कदम पीछे नहीं। हम अध्यात्मबल को जानते हैं। हम अपने स्वरूप को जानते हैं। एक सृजन, एक पालन और एक संहार। जिस समय जैसा उनका आदेश होगा, वही होगा। आपको चिंता नहीं करनी है आगे क्या होगा। हमारे साथ श्रीकृष्ण हैं। अब संशय नहीं करना है। परम मंगल होगा। बस निराशा व हताशा किसी भी समय कोई शोक नहीं, कोई भय नहीं, किसी भी परिस्थिति में। अविनाशी हूं जो सेवा मिली दहाड़ता रहूंगा। हमारा तिरंगा, हमारा राष्ट्र भगवान है। आप तप के द्वारा भजन के द्वारा एक भजनानंदी लाखों का उद्धार कर सकता है। तुम भजन करो। अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करो। भोगी बनकर नहीं योगी बनकर रहो। आचरण से, संकल्प से और वाणी से राष्ट्र की सेवा करनी है।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले संघ प्रमुख डाॅ. मोहन भागवत मंगलवार की दोपहर फरह कस्बे के परखम में दीनदयाल गो विज्ञान अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र का लोकार्पण किया था, जिसके बाद मंगलवार शाम संघ प्रमुख वृंदावन केशवधाम आश्रम पहुंचे, जहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया।

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