आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में भारत दक्षिण एशियाई देशों में सबसे आगे
थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी ने जारी की वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक
कनैडियाई थिंकटैंक फ्रेज़र इंस्टीट्यूट और भारतीय थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी ने वार्षिक वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक जारी किया
नई दिल्ली, 21 सितंबर (हि.स.)। कनैडियाई थिंकटैंक फ्रेज़र इंस्टीट्यूट और भारतीय थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी ने गुरुवार को वार्षिक वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक जारी कर दिया। इसके अनुसार आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में भारत को विश्व के 167 देशों की सूची में 87वां स्थान प्रदान किया गया है। सूचकांक में शामिल भारत के पड़ोसी व अन्य दक्षिण एशियाई देश नेपाल 103वें, चीन 111वें, पाकिस्तान 126वें, बांग्लादेश 132वें व म्यांमार 150वें क्रम पर हैं। इस प्रकार आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में भारत की स्थिति अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में बेहतर है। यह सूचकांक वर्ष 2021 के आंकड़ों पर आधारित है। गत वर्ष जारी सूचकांक में भारत को 86वां क्रम प्रदान किया गया था और इस प्रकार देश एक स्थान बेहतर स्थिति में था।
वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में सिंगापुर, हांगकांग, स्विट्जरलैंड, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड स्टेट्स, आयरलैंड, डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया, यूके और कनाडा को क्रमशः पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवा, छठा, सातवां, आठवां, नौवां और दसवां स्थान प्राप्त हुआ है। सूची में सबसे निचले (165 वें) पायदान पर वेनेजुएला को रखा गया है। आंकड़ों की अनुपलब्धता के कारण उत्तरी कोरिया और क्यूबा को सूची में स्थान प्रदान नहीं किया गया है। अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में जापान 20वें, जर्मनी 23वें, फ्रांस 47वें और रूस 104वें क्रम पर काबिज हैं।
वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता की माप देशों में सरकार के आकार, विधि प्रणाली और संपत्ति के अधिकार, स्वस्थ धन (साउंड मनी) तक पहुंच, अंतरराष्ट्रीय व्यापार की स्वतंत्रता, ऋण, श्रम और व्यवसाय के नियमन आदि पांच मापदंडों के आधार पर की जाती है। प्राप्त आंकड़ों के आधार पर इस वर्ष के रिपोर्ट को फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेम्स ग्वार्टने और सदर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉबर्ट ए. लॉसन और रेयान मर्फी द्वारा तैयार किया गया है।
इस बारे में बताते हुए सोसाइटी के फाउंडर पार्थ जे शाह कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार की स्वतंत्रता के मामले में भारत 165 देशों में 114वें और नियमन के मामले में 116वें स्थान पर है। इसलिए इन क्षेत्रों में तत्काल ही सुधारात्मक प्रयास करने की आवश्यकता है।