कावेरी नदी पर 140 वर्ष से संग्राम, सवाल-कब लगेगा विराम

कावेरी के किनारे बसा तिरुचिरापल्ली शहर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है

कावेरी नदी पर 140 वर्ष से संग्राम, सवाल-कब लगेगा विराम

मुकुंद

दक्षिण की 'गंगा' कही जाने वाली सदानीरा कावेरी नदी के जल पर कर्नाटक और तमिलनाडु का 140 साल पुराना विवाद देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले के बावजूद सुलझ नहीं पाया है। छोटे-बड़े कानून के मंदिरों और दोनों राज्यों और केंद्र के राजनीति के गलियारों में हलचल मचाने वाला यह जल विवाद बयानों की आंच में सुलग रहा है। आज राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कावेरी जल विनियमन समिति की बैठक से पहले ही बयानवीर कूद पड़े। कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने संकेत दिया कि अब जो पानी बचा है, उसको वह पीने के लिए जमा करेंगे। लगे हाथ उन्होंने भाजपा और जनता दल (एस) पर राजनीति करने का आरोप भी जड़ दिया। कर्नाटक के कानून और संसदीय कार्यमंत्री एचके पाटिल ने तो यहां तक कह दिया कि तमिलनाडु के पास पर्याप्त मात्रा में पानी है। इसलिए उसे इस समय और पानी की मांग नहीं करनी चाहिए।

इस विवाद के लंबे सफर में यह जानना निहायत जरूरी है कि कावेरी नदी कर्नाटक और उत्तरी तमिलनाडु की धरती की प्यास बुझाती है। पश्चिमी घाट का ब्रह्मगिरी पर्वत इसका उद्गम है। यह 760 किलोमीटर का सफर पूरा कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी के किनारे बसा तिरुचिरापल्ली शहर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। कावेरी नदी के डेल्टा पर अच्छी खेती होती है। कावेरी नदी पर तमिलनाडु में होगेनक्कल जलप्रपात और कर्नाटक भारचुक्की और बालमुरी जलप्रपात हैं। प्राचीन तमिल साहित्य में इसका जिक्र पोन्नी के रूप में होता है। दक्षिण भारत में कावेरी का महत्व गंगा जैसा है।

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। तमिलनाडु ने गुहार लगाई कि 10 दिन के लिए 24 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा जाए । कर्नाटक ने इसी छह सितंबर को जवाब दाखिल कर तीन हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का वादा किया। कर्नाटक ने तर्क दिया कि कृष्णा और कावेरी नदियों में पानी की भारी कमी है। इस वजह से कर्नाटक पर भारी बोझ पड़ रहा है। 12 सितंबर के बाद तमिलनाडु को और पानी नहीं दिया जा सकता। इससे पहले 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की याचिका पर कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि उसके पास इस मुद्दे पर कोई विशेषज्ञता नहीं है। कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण से रिपोर्ट मांगी गई है।

बहरहाल कावेरी नदी के 140 साल पुराने विवाद से तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कलह बढ़ गई है। वैसे दो दोनों राज्यों के बीच कावेरी जल का झगड़ा आजादी से पहले का है। दोनों राज्य सिंचाई के पानी की जरूरत के लिए दशकों आमने-सामने हैं। 1881 में यह विवाद तब शुरू हुआ, जब तत्कालीन मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) ने कावेरी पर बांध बनाने का फैसला किया। इस पर मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) ने आपत्ति जताई। लंबे समय तक ऐसे ही विवाद चलता रहा। 1924 में अंग्रेजों की मदद से समझौता हुआ कि कर्नाटक को कावेरी नदी का 177 टीएमसी और तमिलनाडु को 556 टीएमसी पानी मिलेगा। एक टीएमसी की गणना हजार मिलियन क्यूबिक फीट के तौर पर होती है। बावजूद इसके यह विवाद पूरी तरह नहीं सुलझ सका।

स्वतंत्रता के बाद 1972 में केंद्र ने एक कमेटी बनाई। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कावेरी नदी के जल के दावेदारों के बीच 1976 में समझौता हुआ। अफसोस इस समझौते का पालन नहीं हुआ और विवाद सिर उठाये रहा। नब्बे के दशक में विवाद की लपटें बढ़ीं तो दो जून, 1990 को कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया गया गया। इस ट्रिब्यूनल ने साल 2007 में अपना फैसला दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि कर्नाटक को सालाना 270 टीएमसी और तमिलनाडु को 419 टीएमसी, केरल को 30 टीएमसी और पुडुचेरी को सात टीएमसी पानी दिया जाएगा। यह फैसला तमिलनाडु को नागवार गुजरा। उसने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। बाद में कर्नाटक सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। लंबी सुनवाई के बाद 16 फरवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। फैसले में कर्नाटक का हिस्सा बढ़ा और तमिलनाडु का घटा दिया गया। केरल और पुडुचेरी के जल बंटवारे में कोई बदलाव नहीं किया गया। ...और अब 2023 है। सदानीरा कावेरी फिर बंटवारे के विवाद से सुर्खियों में है। कावेरी विवाद में हिंसा की यादें तो और भी कड़वी हैं। इस विवाद का कोई न कोई सर्वमान्य स्थाई हल निकलना ही चाहिए।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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