फतेहपुर: महर्षि भृगुऋषि की तपोभूमि बलखंडी में देवता भी करने आये थे परिक्रमा

रामायण में उल्लखित संजीवनी बूटी की खोज महर्षि भृगु ऋषि ने की

फतेहपुर: महर्षि भृगुऋषि की तपोभूमि बलखंडी में देवता भी करने आये थे परिक्रमा

मान्यता यह कि गंगा तट स्थित महर्षि की तपोभूमि में आज तक नहीं डूबा कोई भक्त,  भृगुधाम में दुनिया का सबसे ऊँचा 108 फीट का बन रहा भव्य मंदिर

फतेहपुर, 05 जुलाई (हि.स.)। जिले में उत्तरवाहिनी गंगा तट स्थित भिटौरा घाट जिसे लोग महर्षि भृगु ऋषि की तपोभूमि के रूप में जानते हैं। मान्यता है कि इस पवित्र स्थान के महात्म्य के कारण देवता भी महर्षि भृगु की तपोस्थली की परिक्रमा करने आए थे। यह भी सत्यता है कि इस घाट पर गंगा स्नान करते समय आज तक कोई डूबा नहीं। आज इस भृगुमुनि की तपोभूमि को बलखंडी के नाम से जाना जाता है, जहां माता दर्शनानन्द जी ने एक आश्रम बनवाया है।

यह पवित्र स्थान फतेहपुर मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में उत्तरवाहिनी गंगा तट पर भृगुधाम (भिटौरा) के नाम से स्थित है। इस पवित्र स्थान पर माता दर्शनानन्द जी का बलखंडी आश्रम है। बगल में स्वामी विज्ञानानंद जी का भव्य आश्रम है। जहां हर पूर्णिमा व आमवस्या को हजारों लोग गंगा स्नान करने आते हैं। स्वामी विज्ञानानंद जी के अथक प्रयास से इस स्थान पर दुनिया का सबसे ऊँचा 108 फीट का एक भव्य मंदिर बनाया जा रहा है।

बलखंडी आश्रम की स्वामिनी माता दर्शनानन्द जी ने बताया कि जब भागीरथी तपस्या करके अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा को धरती पर ले जा रहे थे। तभी भिटौरा के बलखंडी घाट में ही भृगुमुनि तपस्या कर रहे थे। भृगुमुनि की तपस्या भंग न हो इसलिए मां गंगा ने उनकी कुटिया के बगल से उत्तरवाहिनी होकर निकल गईं। भृगुमुनि जी की जब तपस्या पूर्ण हुई तो उन्होंने देखा की बहन गंगा उनके बगल से निकल गई हैं। उन्होंने उन्हें प्रणाम किया। भृगुमुनि का मां गंगा से भाई बहन का रिश्ता है। इसका जिक्र बाल्मीकी रामायण में भी किया गया है।

लोककथाओं में यह भी है कि भृगुमुनि हरिद्वार में तप भंग हो जाने पर भ्रमण करते भिटौरा आ गए थे। स्थान अच्छा लगने पर इसी स्थान पर तप करने लगे थे और तपस्या पूर्ण होने पर गुरुकुल प्रणाली में अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे।

उन्होंने बताया कि उत्तर वाहनी गंगा के तट के जिस बलखंडी स्थान पर महर्षि भृगुमुनि ने तपस्या की थी। उसी स्थान पर जीर्णशीर्ण मंदिर के अवशेष हैं। जिसका जीर्णोद्धार कराया जा रहा है। महर्षि भृगुमुनि के यहां आने और तपस्या करने के कारण इस स्थान का नाम पौराणिक गंथों में भृगुठौरा के रूप में उल्लेखित है। बाद में इसे भिटौरा के नाम से जाना जाने लगा। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि भृगु ने यहां लंबे समय तक तपस्या की थी, भृगुठौरा के नाम से उनकी तपोस्थली आज भी लोगों के आस्था का केंद्र बनी है। यह भी मान्यता है कि देवता महर्षि भृगु की तपोस्थली की परिक्रमा करने आए थे। इसके बाद तो यह स्थान ऋषियों व मुनियों की तपोस्थली बन गया।

भिटौरा आश्रम के स्वामी विज्ञानानंद ने बताया कि भागीरथी अपने पूर्वजों को तारने के लिए मां गंगा को धरती पर लाए। भगवान शिव ने मां गंगा की गति को संभाला। भारतीय संस्कृति की चर्चा जहां पर होती है, वहां पर संजीवनी बूटी की बात जरूर आती है। इस बूटी की खोज भृगु ऋषि ने की थी। आज भृगु ऋषि की पावन धरा पर संकल्प सिद्धि धाम की नींव रखी गई है। ये धाम संस्कार के केन्द्र के रूप में उभरेगा और एक मनोरम स्थल बनेगा। हमारी सभ्यता में 108 अंक का बड़ा महत्व है, इसीलिए गंगा तट पर संकल्प सिद्धि धाम नाम से विश्व प्रसिद्ध 108 फीट ऊँचा मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है।
आश्रम में गंगा स्नान करने आये शिवदर्शन तिवारी बताया कि महर्षि की तपोभूमि का यह प्रताप है कि बलखंडी घाट में आज तक जितने लोग गंगा स्नान करने आये। उनमें से किसी के डूबने की बात नहीं सुनी गई है। यहां जिले भर के लोग ही नहीं, बल्कि आसपास के जिले के लोग भी गंगा स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करने आते हैं।






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