आधुनिक मशीने तेज़ी से ले रही हैं हल-बैल की जगह

कुछ ही समय के बाद हजारों साल से जारी पारंपरिक ढंग की यह खेती बीतों दिनों की बात हो जाएगी

आधुनिक मशीने तेज़ी से ले रही हैं हल-बैल की जगह

खूंटी, 27 जून (हि.स.)। खेती-किसानी की बात आते ही हमारे मन में हल-बैल से खेतों की जुताई करते किसानों का चेहरा सामने आ जाता है। हालांकि अब भी कहीं-कहीं अब भी कुछ किसान दो बैलों की जोड़ी और हल से खेतों की जुताई करते हैं, पर कुछ ही समय के बाद हजारों साल से जारी पारंपरिक ढंग की यह खेती बीतों दिनों की बात हो जाएगी।

अन्नदाताओं की यह परंपरा शायद अंतिम दौर में है। नई पीढ़ी के किसान अब बैल और हल से काम करना नहीं चाहते। हल-बैल की जगह ट्रैक्टर, रोटावेटर, कल्टीवेटर, हैरो, टिलर सहित अन्य मशीनें ले रही हैं। चारागाहों की कमी, बैलों की बढ़ती कीमत और उन्हे पालने की जोखिम, मजदूरो की कमी और समय की बचत के कारण किसान खेतों की जुताई में हल-बैल की जगह मशीनों से काम ले रहे हैं।

तोरपा प्रखंड के एरमेरे गांव के किसान विजय आईंद और राजेंश आईद कहते हैं कि वे भी हल से खेतों की जुताई करते थे, पर इसमें समय काफी लग जाता है, जबकि मशीन से जुताई करने पर लागत कम आती है। उन्होंने कहा कि दो दिन पहले ही उन्होंने 55 हजार रुपये की लागत से छोटी रोटोवेटर मशीन(रिगा इटाली) खरीदी है। हल से खेत जोत रहे किसान बिरसा आईंद ने कहा कि जितनी अच्छी जुताई हल से होती है, उतनी अच्छी जुताई मशीन सें नहीं हो पाती। इससे खेतों की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। इसलिए वह अब भी परंपरागत ढंग से ही खेतों की जुताई करते हैं।

कर्रा प्रखंड के निधिया गांव के किसान राहिल महतो बताते हैं कि बैलों का पालना काफी खर्चीला होता जा रहा है, जहां गांव के मवेशी चरते थे, वे खेत अब बिक चुके हैं। चारागाह की कमी के साथ ही गांव में खेत जोतने वाले मजदूरों की कमी होती जा रही है। इसके कारण किसान अब मशीनों की सहायता ले रहे हैं।

तकनीक ने खेती के स्वरूप को बदल दिया: डॉ चौधरी

कृषि विज्ञान केंद्र खूंटी के मौसम कृषि वैज्ञानिक डॉ राजन चौधरी कहते हैं कि कृषि प्रौद्योगिकीकरण ने खेती की परंपरा का बदल दिया है। मशीनों के बढ़ते प्रयोग ने किसानों को एडवांस बना दिया है। अब जुताई रोपाई, कटाई से लेकर अनाज साफ करने तक में किसान मशीनों का प्रयोग कर रहे हैं। डॉ चौधरी ने कहा कि नई कृषि प्रौद्योगिकी ने बीज, उर्वरक,पौधा संरक्षण और सिंचाई सहित खेती की अन्य गतिविधियों में किसानों को अधिक सक्षम बना दिया है। किसान अब व्यवसायिक रूप से खेती कर आत्मनिर्भ्रर बन रहे हैं और गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

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