उप्र: जैनधर्म के केवली वृक्षों का सहारा लेकर पौधरोपण के लिए जागरूक करेगा वन विभाग

सभी 24 तीर्थंकरों को किसी न किसी वृक्ष के नीचे ही प्राप्त हुआ था ज्ञान, 18 तीर्थंकरों का जन्म हुआ है उत्तर प्रदेश में

लखनऊ, 05 जून (हि.स.)। सनातन धर्म में वृक्षों का महत्व तो है ही, जैन धर्म में भी वृक्षों का बहुत महत्व है। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के केवली वृक्ष (जहां पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई) हैं। उन वृक्षों का बहुत महत्व है। सबसे बड़ी बात है कि 24 तीर्थंकरों में 18 तीर्थंकरों का जन्म स्थान उत्तर प्रदेश में ही रहा है। वन विभाग अब इसको भी प्रचारित कर जागरूकता फैलाने की तैयारी कर रहा है।

जैन तीर्थकरों में प्रथम तीर्थकंर ऋषभनाथ का केवली वृक्ष वट वृक्ष है। उसी तरह से दूसरे तीर्थंकर अजीतनाथ का चितवन, तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ का शाल वृक्ष, चौथे तीर्थंकर अभिनंदन का चीड़, पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ का पियंगु, छठवें तीर्थंकर पदमनाथ का भी पियंगु ही केवली वृक्ष रहा है। सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का सिरस, आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभनाथ का नागकेसर, नौवें तीर्थंकर पुष्पदत्त का बहेड़ा, 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ का तेंदू, वासुपुज्य का कदम, 13वें तीर्थंकर विमलनाथ का जामुन, 14वें तीर्थंकर अनंतनाथ का पीपल, 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ का कैथा, 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ का तून, 17वें तीर्थंकर कुंथुनाथ का तिलक, 18वें तीर्थंकर अरहनाथ का आम, 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ का अशोक, 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का चम्पा, 21वें तीर्थंकर नमीनाथ का मौलश्री, 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ का बांस, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का देवदार, 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का साल केवली वृक्ष रहा है।

इन 24 तीर्थकरों में 18 का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ है। इसमें अयोध्या में ही प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ, चौथे तीर्थंकर अभिनंदन, पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ, 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ का जन्म हुआ था। चार तीर्थंकर चंद्रप्रभनाथ, सुपार्श्वनाथ, श्रेयांसनाथ, पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ है। वहीं संभवनाथ का जन्म श्रावस्ती में, पुष्पदंत का जन्म देवरिया में, विमलनाथ का जन्म फर्रुखाबाद में, कुंथुनाथ, अरहनाथ, शांतिनाथ का जन्म हस्तिनापुर में, पदमनाथ का जन्म कौशाम्बी में हुआ है।

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने कहा था, 'बहुत सारे लोग पेड़ों को काटकर बीमार पड़ जाते हैं, उन्हें पता नहीं चलता है कि यह बीमारी उन्हें क्यों आयी है।' इस तरह से जैन धर्म में वृक्षों का बहुत महत्व है। सभी तीर्थंकरों ने वृक्षों की रक्षा के लिए कुछ न कुछ संदेश दिया है। वन विभाग इसका प्रचार करने के लिए एक हैंडबिल भी बनवाया है। इसके माध्यम से वृक्षों को बचाने और पौधरोपण करने का संदेश दिया जाएगा।

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