चार पीढ़ियां हैं एक साथ, 32 सदस्यों का भरा पूरा परिवार

 श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान हैं 'संयुक्त परिवार',  तनाव, कुंठा को जन्म देते हैं 'एकल परिवार'

रायबरेली, 11मई (हि.स.)। समाज को जीवंत बनाने में 'परिवार' सबसे महत्वपूर्ण इकाई होती है। आदमयुग से लेकर आजतक मानव अपने को सबसे ज्यादा सुरक्षित परिवार में पाता है। बावजूद इसके परिवार लागातार सिकुड़ रहे हैं और 'संयुक्त परिवार' बीते जमाने की बात हो गई। बदलती जीवन शैली और कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है। हालांकि इन सबके बीच कई ऐसे परिवार अब भी एक उम्मीद जरूर जगा रहे हैं। हिन्दुस्थान समाचार ने ऐसे परिवारों को ढूंढ निकाला है और उनके सदस्यों से विस्तार से बात की।

रायबरेली में ऊंचाहार के नजनपुर गांव के रहने वाले रातिपाल शुक्ल 85 वर्ष के हैं और इनकी चार पीढ़ियां एक साथ ही एक घर में रहती है। 32 सदस्यों में छोटे-बड़े सभी हैं और अपने-अपने काम के बाद इकट्ठा एक साथ रहते हैं। बुजुर्ग रातिपाल शुक्ल के पांच बेटे व एक बेटी है। बड़े बेटे अमरेश शुक्ल की उम्र करीब 65 वर्ष की है, जबकि बेटी 63 साल की है जो विवाहित हैं। अन्य बेटों में राजेश(61) जो सेना से सेवानिवृत्त हैं। राकेश(58) व्यवसायी,रमेश(53) लेखक और जितेंद्र(50) व्यवसायी हैं। इन सभी भाइयों का भरा पूरा परिवार है।

अमरेश के तीन बेटे और दो बेटियां हैं। जिनमें तीन की शादी हो चुकी है,इस परिवार में चौथी पीढ़ी के प्रशांत, बिट्टू और सूर्यांश भी इसी परिवार में साथ रहते हैं। दूसरे बेटे राजेश के दो बेटे और एक बेटी है, जिनमें दो विवाहित हैं। राकेश के चार बेटे हैं जिनमें एक की शादी हो चुकी है। रमेश के पांच बेटियां हैं,सबसे छोटे भाई जितेंद्र के दो बेटियां और एक बेटा है। सभी सदस्यों को मिलाकर 32 सदस्य एक साथ रहते हैं।

इस परिवार के मुखिया रातिपाल शुक्ल कहते हैं 'पूरे परिवार का एक साथ होने से उन्हें बहुत खुशी है,सबके काम अलग-अलग हैं, लेकिन एक साथ रहने से सभी एक दूसरे के सुख दुःख के भागीदार हैं।'

शास्त्रों में संयुक्त परिवार की महत्ता

संयुक्त परिवारों को लेकर धर्मशास्त्रों में भी विस्तृत व्याख्या की गई है। पंडित जितेंद्र द्विवेदी के अनुसार 'संयुक्त परिवार को शास्त्रों में श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान कहा गया है। जो घर संयुक्त परिवार का पोषक नहीं है उसकी शांति और समृद्धि केवल एक भ्रम है।'आचार्य रामसुंदर गर्ग के अनुसार शास्त्रों में परिवार को लेकर स्पष्ट विचार हैं और सनातन परम्परा के सभी विधि विधान परिवार से ही शुरू होते हैं, जिसमें सभी का जन्म होता है जो कर्तव्य, अधिकार और दायित्वों के सहारे सुख, शांति और समृद्धि के द्वार खोलती है।'

मनोचिकित्सकों की राय में संयुक्त परिवार

बढ़ती प्रतिस्पर्धा और कथित स्वतन्त्रता के कारण एकल परिवार बढ़ रहे हैं। मनोचिकित्सक आत्महत्या की बढ़ती प्रवत्ति के पीछे भी संयुक्त परिवारों का टूटना बताते हैं। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ रत्नेश का कहना है 'संयुक्त परिवार में जिम्मेदारियों का बंटवारा हो जाता है, जिससे मानसिक, आर्थिक बोझ कम होता है। इसके अलावा कई बातें हैं जिनके लिए मानसिक सहारे की जरूरत पड़ती है जो कि एकल परिवार में बिल्कुल संभव नहीं है। इससे तनाव,कुंठा आदि का जन्म होता है।'