सूरत : अवध शंगरिला में दो आध्यात्मिक महापुरुषों का ऐतिहासिक मिलन

सद्भावना, ज्ञान व परस्पर स्नेह की त्रिवेणी में सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने लगाए गोते  

सूरत : अवध शंगरिला में दो आध्यात्मिक महापुरुषों का ऐतिहासिक मिलन

सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी मानव कल्याणकारी संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी स्वयं सद्भावना आदि की जागृत मिशाल भी प्रस्तुत करते रहे हैं। इसका एक और उदाहरण प्रस्तुत करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार की सन्ध्या को प्रस्तुत किया। शनिवार को चिलचिलाती धूप में लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पलसाना में पधारे। वहां से लगभग चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थानकवासी श्रमण संघ के आचार्यश्री 
शिवमुनिजी के प्रवास की जानकारी हुई। हालांकि वहां आचार्यश्री को अगले दिवस जाना था, किन्तु सद्भावना को धरातल पर साकार करने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सान्ध्यकालीन विहार करना स्वीकार किया और लगभग पांच किलोमीटर का विहार कर अवध शंगरिला में पधारे। आचार्यश्री के शंगरिला पहुंचते-पहुंचते सूर्यास्त हो गया था तो दोनों आम्नायों के संत को अर्हत् वंदना आदि सान्ध्यकालीन प्रार्थना में रत हो गए। रात्रि लगभग आठ बजे दोनों आम्नायों के दो आध्यात्मिक महापुरुषों का मिलन हुआ। 

आपसी सद्भाव, प्रेम और एकत्व की भावना मानों जन-जन को एक व्यापक संदेश दे रही थी। कई देर तक वार्तालाप के उपरान्त दोनों आचार्यश्री अपने-अपने प्रवास स्थल में पधार गए। रविवार को प्रातः दोनों आचार्यों की मंगल सन्निधि में अवध शंगरिला में एक अनायोजित कार्यक्रम हुआ, जिसमें दोनों आम्नायों के सैंकड़ों लोग उपस्थित हो गए। इस आध्यात्मिक मिलन से अवध शंगरिला परिसर अनोखे आध्यात्मिक रंग में रंगा नजर आ रहा था। तेरापंथ धर्मसंघ की ओर से मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने प्रस्तुति दी तो स्थानकवासी श्रमण संघ की ओर से मुनि शुभम म.सा. ने अपने विचार व्यक्त किए।

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भगवान महावीर से जुड़े हुए जैन धर्म में हम सभी साधनारत हैं। जैन शासन की छत्रछाया में अनेक संप्रदाय भी हैं। अमूर्तिपूजक स्थानकवासी परंपरा से ही तेरापंथ धर्मसंघ भी निकला हुआ है। हमारा परस्पर सौहार्द और मिलन की भावना है। आचार्यश्री शिवमुनिजी का तेरापंथ धर्मसंघ से पुरा संपर्क है। हमें आज के दिन यहां आना था, लेकिन हम कल ही शाम को यहां आ गए। आचार्यश्री का वात्सल्य भाव और सौम्य मुद्रा हमें पहले ही खींच लाई। कई वर्षों बाद मिलना हुआ है। सभी को धार्मिक-आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त होती रहे। 

    आचार्यश्री शिवमुनिजी ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे यहां ऐसे महान आचार्य का पदार्पण हुआ है, जिन्होंने लगभग 18 हजार किलोमीटर की पदयात्रा के दौरान भारत के 20 राज्यों व नेपाल-भूटान की यात्रा कर जन-जन को जागने का काम और जैन ध्वज को फहराने का कार्य किया है। सबसे बड़ी बात है कि आचार्यश्री महाश्रमण बहुत उदारमना हैं। इतनी बड़ी उदारता की हमारी एक बार संवत्सरी एकता की बात हुई आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने कार्यक्रम में संवत्सरी एकता की घोषणा कर दी। हम दोनों एक ही वृक्ष की शाखाएं हैं। आपके यहां आगमन से पहले बात हो रही है कि आपका यहां बहुत कम समय मिलेगा तो मैंने कहा था, पहले आगमन तो होने दो। जहां आंतरिक भावों का जोर और स्नेह होता है, वहां समय की कोई सीमा नहीं होती। दोनों आचार्यों के मध्य संवत्सरी एकता को पूरे भारत में एक करने भी चर्चा हुई। ऐसे सद्भावना का संदेश देने वाले कार्यक्रम के पश्चात जन कल्याण के लिए सतत गतिमान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लगभग नौ बजे अवध शंगरिला से मंगल प्रस्थान किया। 


तीव्र धूप की परवाह किए बिना महातपस्वी महाश्रमणजी आज के निर्धारित गंतव्य की ओर बढ़ चले। अपने आराध्य की ऊर्जा से ओतप्रोत श्रद्धालु भी धूप और गर्मी का परवाह किए बिना उनके चरणों का अनुगमन करने लगे। आचार्यश्री लगभग पांच किलोमीटर का विहार चलथान में पधारे तो चलथानवासियों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत किया। विलम्ब होने के कारण आचार्यश्री सीधे कार्यक्रम स्थल की ओर पधार गए। 

आचार्यश्री ने वहां समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए जीवन में ईमानदारी रखने की, चोरी, झूठ से बचते रहने की प्रेरणा दी।पूज्य प्रवर ने धार्मिक-आध्यात्मिक चेतना को बनाए रखने का मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। समणी हर्षप्रज्ञाजी की संसारपक्षीया नानी के चल रहे संथारे के संदर्भ में भी आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखाजी ने जनता को उद्बोधित किया। गत चतुर्मास चलथान में करने वाली साध्वी मलयप्रभाजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। तेरापंथी सभा-चलथान के अध्यक्ष सुरेश पितलिया, तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने अपने-अपने गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य की अभिवंदना की। तेरापंथ कन्या मण्डल की कन्याओं ने भी अपनी प्रस्तुति के द्वारा अपने आराध्य की अभिवंदना की।

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