वर्ष का पहला चंद्र ग्रहण शुक्रवार को, विज्ञान की नजर में विशेष, ज्योतिष की दृष्टि से है प्रभावहीन

विज्ञान हर ग्रहण की तरह इसे भी विशेष मान रहा है

वर्ष का पहला चंद्र ग्रहण शुक्रवार को, विज्ञान की नजर में विशेष, ज्योतिष की दृष्टि से है प्रभावहीन

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भोपाल, 04 मई (हि.स.)। सूर्य ग्रहण के 15 दिन बाद साल का पहला चंद्रग्रहण शुक्रवार (05 मई) को वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन लगेगा। बुद्ध पूर्णिमा को चंद्रमा उपछाया ग्रहण के साये में होगा। इसमें चांदनी कुछ फीकी होगी। विज्ञान की नजर में जहां इसका विशेष महत्व है, वहीं भारतीय ज्योतिष की दृष्टि से यह प्रभावहीन है। क्योंकि भारतीयों पर इसका कोई असर नहीं होने जा रहा और न ही अन्य ग्रहण के अनुरूप इस पर कोई सूतक प्रभाव हो रहा है, जबकि विज्ञान हर ग्रहण की तरह इसे भी विशेष मान रहा है।

खगोलविज्ञान और ज्योतिष दोनों में ही चंद्रग्रहण एक खास घटना है। इस संबंध में नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका का कहना है कि जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है, तो इस घटना को चंद्र ग्रहण कहते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन इससे पृथ्वी की छाया और उपछाया दोनों बनेगी। इस ग्रहण के समय चंद्रमा उपछाया वाले भाग से होकर निकलेगा जिसके परिणाम स्वरूप चंद्रमा की चमक फीकी पड़ती दिखाई देगी। इस चंद्रग्रहण का कुल समय चार घंटे और 15 मिनट तक का है।

सारिका का कहना है कि पांच मई को चंद्रमा पृथ्वी से लगभग तीन लाख 80 हजार किमी दूर रहेगा। यह उपछाया ग्रहण एशिया समेत दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अटलांटिक, हिंद महासागर और अंटार्कटिका में दिखाई देगा। विश्व की कुल आबादी के लगभग 56 प्रतिशत लोग इस पूरे ग्रहण को देख सकेंगे। साथ ही लगभग 83 प्रतिशत लोग इसका कुछ न कुछ भाग देखेंगे।

खुली आंखों के लिए चंद्र ग्रहण देखना है सुरक्षित

इस चंद्र ग्रहण को लेकर भारत मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भारत सरकार में वैज्ञानिक वेद प्रकाश सिंह का कहना है कि यह एक खूबसूरत आकाशीय दृष्य है। यह सूर्य ग्रहण की तुलना में पूरी तरह से भिन्न है। सूर्य ग्रहण के दौरान सोलर रेडिएशन से आंखों के नाजुक टिशू डैमेज होते हैं, जिससे कि देखने में दिक्कत आने की संभावना बनी रहती है। विज्ञान की भाषा में इसे रेटिनल सनबर्न भी कहते हैं जोकि कुछ समय अथवा फिर हमेशा के लिए भी हो सकती है, लेकिन चंद्र ग्रहण के दौरान ऐसा कुछ नहीं होता। इसलिए इसे खुली आंखों से भी देखा जा सकता है। जोकि आपकी आंखों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है।

आकाश में रात 10:53 पर छा जाएगा पूरी तरह अंधेरा

यह चंद्र ग्रहण रात्रि में आठ बजकर 42 मिनिट और 20 सेकंड पर शुरू होकर दूसरे दिन यानी कि छह मई को रात्रि एक बजकर तीन मिनट 42 सेकंड पर समाप्त होगा। जब ग्रहण शुरू होगा उस समय और जब समाप्त होगा तब ये आधा दिखेगा। साथ ही रात 10:53 पर यह पूरा पृथ्वी से ढक जाएगा और ऐसे में रात पूरी तरह काली अंधेरी के रूप में दिखाई देगी। यानी आसमान पूरा काला रहेगा। इस दृष्य का पूरा आनन्द लेने के लिए टेलीस्कोप की मदद लेनी चाहिए और उसे पूरा जूम कर चंद्रमा अवश्य देखना चाहिए। उन्हें चांद का बहुत ही साफ नजारा दिखाई देगा।

नजदीक से देखने के लिए दूरबीन का करें इस्तेमाल

दूसरी ओर नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) हर ग्रहण को विज्ञान की नजर में खास मानता है। नासा के मुताबिक आप बुद्ध पूर्णिमा के चंद्र ग्रहण को खुली आंखों से देख सकते हैं। किंतु यदि इसके अद्भुत नजारे का आनन्द लेना है तो नासा का सुझाव है कि इसे और नजदीक से देखने के लिए दूरबीन का इस्तेमाल करें। दूरबीन से देखते समय ध्यान रखें कि इसका सेटअप आपको किसी अंधकार वाली जगह पर करना होगा। इसके अलावा चंद्र ग्रहण की लाइव स्ट्रिमिंग नासा की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर देखी जा सकती है। जहां आपको चंद्रमा के अनेक अद्भुत नजारे नजर आएंगे।

सूतक काल मान्य नहीं

ज्योतिष शास्त्र में इसका बहुत अधिक महत्व माना गया है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार सूर्य या चंद्र ग्रहण का नकारात्मक असर न केवल लोगों के जीवन बल्कि संपूर्ण पृथ्वी पर पड़ता है। साल का पहला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए इसका प्रभाव नहीं होगा और न ही सूतक काल मान्य होगा। श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य का कहना है कि उपछाया चंद्रग्रहण शुक्रवार को अवश्य है किंतु इसका कोई प्रभाव नहीं होगा। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार ग्रहण काल से कुछ घंटे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है। सनातन हिन्दू धर्म में सूतक काल को विशेष महत्व देते हुए इस समय में पूजा-पाठ और शुभ कार्यों की मनाही की गई है, लेकिन पांच मई को लगने वाला चंद्रग्रहण भारत में नहीं देखा जाएगा, इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य नहीं किया गया है। इसलिए ये प्रभावहीन है।

चंद्र ग्रहण पर रहेगा भद्रा का साया

आचार्य भरत दुबे का कहना है कि चंद्र ग्रहण को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्व खगोलीय घटना के तौर पर देखा जाता है। इस बार चंद्र ग्रहण तुला राशि और स्वाति नक्षत्र में आरंभ हो रहा है। भद्रा का साया भी रहेगा। ग्रहण के मध्यकाल और मोक्षकाल के समय विशाखा नक्षत्र रहेगा। इसी दिन वैशाख पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा भी है। वैसे तो ग्रहण एक भौगोलिक घटना है, लेकिन फिर भी हम सनातनियों को अवश्य इस समय में विशेष मंत्र साधना करना चाहिए, इसका लाभ ही जीवन में मिलता है।

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