सदियों में होते हैं मधु लिमये जैसे जन नेता पैदा

उनके ज्ञान और सादगी से आप बिन प्रभावित हुए नहीं रह सकते थे

आर.के. सिन्हा
स्मृति शेष हो चुके मधु लिमये उन नेताओं में हैं जिनसे मतभेद होने पर भी आप उनका सम्मान करना नहीं छोड़ पाते। उनके ज्ञान और सादगी से आप बिन प्रभावित हुए नहीं रह सकते थे। वे उद्भट् विद्वान, चिंतक, देश-विदेश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, ज्वलंत समस्याओं और उसके निदान पर विपुल साहित्य के रचनाकार थे। उनकी बुद्धिमत्ता, प्रखरता, ध्येयनिष्ठा और समर्पण के कारण 25 वर्ष के मधु लिमये को जयप्रकाश नारायण और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने एशियन सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस का सचिव बनाकर रंगून भेजा। 1947 में एंटवर्प मे सोशलिस्ट इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में के रूप में मधु लिमये ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।

01 मई 1922 को जन्मे मधु लिमये मूल रूप से पुणे के थे। एक मराठी व्यक्ति का बिहार से चार बार चुनाव जीतना अपने आप में अनोखा है। राज्यसभा में ऐसे कई दूसरे नेता हुए हैं, लेकिन लोकसभा में ऐसे उदाहरण कम ही देखे गए हैं। लिमये का बचपन महाराष्ट्र में बीता। उनकी पूरी पढ़ाई भी वहीं से हुई। वो महाराष्ट्र की राजनीति में भी सक्रिय थे। लिमये समाजवादी विचारधारा से आते थे और गोवा लिबरेशन जैसे अनेक आंदोलनों का भी हिस्सा बने थे। लेकिन जब राष्ट्रीय राजनीति में उन्होंने कदम रखा तो चुनाव लड़ने के लिए बिहार को ही चुना। पहली बार वो 1964 में मुंगेर से उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। 1964 में सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ और यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी बनी। मधु लिमये पहली बार यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा गए थे। इस जीत के बाद, वह यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी बने।

मधु लिमये के दिल में बसता था बिहार, जहां से लोकसभा में पहुंचे थे। उन्हें बिहार के समाज और संस्कृति की गहरी समझ थी। मधु लिमये ने एक बार बताया था कि गर्मियों में बिहारियों को लगातार मीठे आम मिल जाएं तो वह तृप्त हो जाते हैं। इसी क्रम में वे जर्दालु आम के स्वाद पर बोले। उन्होंने बताया था कि जर्दालु आम का स्वाद और खुशबू अद्वितीय होती है।

स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा, तीन विदेशी साम्राज्यों ब्रिटिश, पुर्तगाली, नेपाली हुकूमत की बर्बरता के खिलाफ लड़कपन से ही जूझने वाले मधु लिमये सच्चे गांधीवादी थे। उन्हें 1940 में विश्व युद्ध के समय 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ भाषण देने के कारण एक साल के सश्रम कारावास की सजा मिली।

भारत छोड़ो आंदोलन में 1943 में गिरफ्तार होने पर 1945 में जेल से छूटे। 1955 में गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लेने के कारण 12 वर्ष की सजा सुनाई गई। 1958 में सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष बने। उन्होंने नागरिक आजादी के हक में, गैर बराबरी, जुल्म, अन्याय, जातिवाद, सांप्रदायिकता के खिलाफ तथा समाजवादी व्यवस्था की स्थापना में अपनी जिंदगी खपा दी। जन सवालों के लिए संघर्ष करने के कारण 1959 में हिसार (पंजाब) पहुंचे और 1968 में लखीसराय (बिहार) तथा 1970 में मुंगेर, बिहार।

भारतीय संसद के इतिहास में मधु जी ने एक और ऐतिहासिक कार्य 1975 में आपातकाल लागू होने के बाद संसद की अवधि 5 साल के स्थान पर 6 साल करने को असंवैधानिक घोषित करते हुए, संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, त्याग, सादगी मितव्ययिता के उच्च मानदंड, के प्रतीक भी हैं। उन्होंने समाजवादी दर्शन, सिद्धांत, विचारों, नीतियों को न केवल गढ़ा उसको अमलीजामा देने, हजारों कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने और उस मार्ग पर चलने के लिए तमाम उम्र अलख भी जगाई।

मधु जी की जीवनसंगिनी आदरणीय चंपा लिमये के योगदान और त्याग को भी हम कभी भुला नहीं सकते। मधु लिमये के राजधानी के नार्थ एवेन्यू, वेस्टर्न कोर्ट और पंडारा रोड के घरों में शाम को अवश्य ही बैठकी जमती। उसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी तथा जेएनएयू के अध्यापक, विद्यार्थी, संपादक और उनके अन्य मित्र हुआ करते थे। उनके घर में आने वाले अतिथियों को चाय चंपा जी ही बनाकर पिलाया करती थीं। गर्मियों में सुराही का पानी पीकर लोग अपनी प्यास बुझाते थे। सन 1995 में मधु जी की मृत्यु के बाद पंडारा रोड का घर खाली कर दिया गया। चंपा जी मुंबई चली गईं अपने बेटे के पास। इस बीच, पंडारा रोड में रहने वाले लिमये जी के नाम पर एक सड़क का नामकरण चाणक्यपुरी इलाके में हुआ। यह बात समझ से परे है। मधु जी के नाम पर जनपथ, पंडारा रोड या लोधी रोड के आसपास ही किसी सड़क का नाम रखा जा सकता था।

मधु लिमये चार बार लोकसभा सदस्य रहे पर स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व सांसद की पेंशन कभी नहीं ली। लेखन कार्य के मेहनताने से ही जिंदगी चलाते थे। सिद्धांत से कभी समझौता नहीं किया। दो बार विदेश मंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकराया। लोकसभा चुनाव हारने पर राज्यसभा में जाने से इंकार किया। मधु जी को सत्ता का मोह विचलित नहीं कर सका। वे महात्मा गांधी, आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, युसूफ मेहर अली की परंपरा के वारिस की भूमिका को भी आपने बखूबी निभाया। उन्होंने अपने जीवन में "न्यूनतम लिया अधिकतम दिया और श्रेष्ठतम जिया"।

मधु जी के सरकारी निवास में भारत के प्रधानमंत्री बने नेता चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह और चंद्रशेखर अक्सर सलाह मशविरा करने के लिए आते थे। मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, संसद सदस्यों, एमएलए की तो कोई गिनती ही नहीं थी। मधु जी को कला और संगीत की भी गहरी समझ थी। उनके पास भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व, मलिकार्जुन मंसूर, डागर बंधु, जितेंद्र अभिषेकी, गंगूबाई हंगल, यामिनी कृष्णमूर्ति , सोनल मानसिंह, उमा शर्मा जैसे अनेकों कलाकार संगीत की बारीकियों पर चर्चा करने के लिए आया करते थे।

मधु जी के घर में सरकारी बैंत का फर्नीचर बिछा रहता था। उनके पास एक पुराने किस्म का एक टेप रिकॉर्डर था। आनंद की हिलोरें लेने के लिए वे अपने मनपसंद कैसेट को लगाकर शास्त्रीय संगीत सुनते थे। कई बार उनके मित्र, अनुयायी उनसे शिकायत करते कि मधु जी बड़ी गर्मी है। हम आपके लिए एयर कंडीशन ला देते हैं। फ्रिज भिजवा देते हैं। परंतु मधु लिमये की प्यास और चाहत कुछ अलग ही थी।

उन्होंने लिखा है- "शेक्सपियर की सभी रचनाओं, महाभारत और ग्रीक दुखांत रचनाओं के साथ मुझे एकांत आजीवन कारावास भुगतने में खुशी होगी। और अगर जीवन के अंत तक मुझे यह अवसर नहीं मिला तो संत ज्ञानेश्वर की रचनाओं को पढ़ने की मेरी प्यास अतृप्त रहेगी। बहरहाल, मधु जी के संघ की सोच से कुछ बिन्दुओं पर मतभेद थे। संघ की भी उनसे कुछ विषयों पर असहमति थी। लोकतंत्र में यह सब सामान्य है और इसका स्वागत होना चाहिए। पर मधु लिमये भारत की राजनीति को अपनी ईमानदारी, ज्ञान और सादगी से प्रभावित करते रहेंगे। (लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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