आम जीवन के चितचोर हैं बासु चटर्जी : अजय कुमार शर्मा

वे अपनी फिल्मों की पटकथा और संवाद स्वयं लिखते थे, कोई फाइनेंसर नहीं मिलता तो खुद उधार लेकर फिल्म बनाते

आम जीवन के चितचोर हैं बासु चटर्जी : अजय कुमार शर्मा

बासु चटर्जी, बिमल रॉय और ऋषिकेश मुखर्जी की परंपरा के ऐसे योग्य वाहक थे, जिन्होंने सिनेमा को समाज से जोड़े रखा और उसमें आम जिंदगी के हल्के-फुलके, छोटे-बड़े और खट्टे-मीठे पलों को बड़ी संजीदगी से दर्शकों के सामने रखा। वह साहित्य को सिनेमा में पिरोने वाले निर्देशक भी थे। सारा आकाश, रजनीगंधा, चितचोर, छोटी सी बात, स्वामी, खट्टा-मीठा, बातों-बातों में, शौकीन और चमेली की शादी जैसी सफल, सार्थक फिल्मों के निर्माता निर्देशक बासु चटर्जी पूरी तरह से फिल्मों के लिए समर्पित थे। वे अपनी फिल्मों की पटकथा और संवाद स्वयं लिखते थे। कोई फाइनेंसर नहीं मिलता तो खुद उधार लेकर फिल्म बनाते। फिल्म हमारे जीवन के नजदीक रहे और ज्यादा खर्चीली न हो के लिए वह अधिकतर आउटडोर शूटिंग करते। ईमानदार इतने की कलाकारों को अपनी जेब से पैसे दे देते।

बासु चटर्जी के बारे में इस तरह की कई रोचक और सच्ची जानकारियां हमें हाल ही में वरिष्ठ फिल्म पत्रकार एवं लेखिका अनिता पाध्ये की बासु चटर्जी पर लिखी पुस्तक 'बातों-बातें में ' से प्राप्त होती है। अमन प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित इस पुस्तक को लेखिका ने इसे बासु चटर्जी की विश्वसनीय जीवनी, उन्हीं की जुबानी बताया है जो कि बिल्कुल सही ठहरता है। साठ के दशक के अंत से और सत्तर-अस्सी के दशक तक बासु चटर्जी ने हिंदी सिनेमा के दर्शकों के लिए एक से एक शानदार फिल्में दीं। जब टीवी ने घर-घर में पैठ बनाई तो उन्होंने रजनी, दर्पण और कक्काजी कहिन जैसे श्रेष्ठ धारावाहिक भी प्रस्तुत कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। 10 जनवरी 1930 को अजमेर में जन्मे बासु चटर्जी के पिता भारतीय रेलवे में काम करते थे। इसलिए उनका बचपन बंबई, आबूरोड और मथुरा में बीता । मथुरा की स्मृति उन्हें रही। वहीं उन्हें फिल्म देखने का चस्का लगा।

1950 में उन्हें बंबई (अब मुंबई) के चर्चगेट स्थित एक विद्यालय में लाइब्रेरियन की नौकरी मिली और वे मुंबई आ पहुंचे । बासु को बचपन से ही चित्रकला में रुचि थी और वह कार्टून बहुत अच्छे बनाया करते थे तो करंट समाचार पत्र में फ्रीलांस कार्टूनिस्ट के रूप में कार्य करने लगे। इसी बीच चर्चित साप्ताहिक पत्र बिल्ट्ज में भी वे फ्रीलांस कार्टून बनाने लगे।

तभी उन्हें जानकारी मिली की गीतकार शैलेंद्र जो कि मथुरा के ही रहने वाले थे, तीसरी कसम नाम से फिल्म बना रहे है तो वे उनके पास जा पहुंचे फिल्म में सहायक निर्देशक का काम मांगने। इस फिल्म के निर्देशक उनके ही नामाराशि बासु भट्टाचार्य थे और उनकी भी यह पहली ही फिल्म थी। बासु चटर्जी चीफ असिस्टेंट नियुक्त हुए। उनके साथ बीआर इशारा भी सहायक निर्देशक के रूप में थे। फिल्म निर्देशन सीखने के लिए उनका पहला पाठ ही फिल्मी दुनिया के कई दिग्गजों के साथ था। सहायक निर्देशक के रूप में उनकी दूसरी फिल्म थी सरस्वतीचंद्र। अब तक वे सिनेमा से संबंधित सभी तकनीकी जानकारियां प्राप्त कर चुके थे। अत: उन्होंने स्वयं फिल्म बनाने का निर्णय लिया। उनके परिचित अरुण कौल ने उसी समय हिंदी के चर्चित कहानीकार राजेंद्र यादव के उपन्यास सारा आकाश के अधिकार 21 रुपये में खरीदे थे ।

बासु चटर्जी को भी इसकी कहानी पसंद आई और फिल्म बननी शुरू हो गई। इसके लिए उन्होंने फिल्म वेलफेयर कार्पोरेशन से कर्ज लिया। राकेश पांडेय, नंदिता ठाकुर, एके हंगल, दीना पाठक, मणि ठाकुर आदि कलाकारों का चयन हुआ। फिल्म की तारीफ तो हुई लेकिन इतनी कमाई नहीं हुई कि कर्ज उतारा जा सके। हां, उन्हें पटकथा लेखन के लिए इस वर्ष का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला और राजश्री, जिन्होंने उनकी इस फिल्म का वितरण किया था द्वारा फिल्म पिया का घर बनाने का प्रस्ताव दिया गया। यह फिल्म सफल रही और उनसे बड़े-बड़े लोग फिल्म निर्देशित करने के लिए संपर्क करने लगे। बासु चटर्जी की अगली फिल्म थी राजेंद्र यादव की पत्नी मन्नू भंडारी की कहानी यही सच है के आधार पर बनी रजनीगंधा। यह फिल्म भी बेहद सफल रही। हालांकि पहले इसे कोई वितरक लेने को तैयार नहीं था क्योंकि फिल्म के नायक-नायिका बिल्कुल सीधे साधे थे जबकि उस समय हीरो-हीरोइन के चरित्र लार्जर दैन लाइफ हुआ करते थे। इसी समय उन्हें बीआर चोपड़ा की फिल्म छोटी सी बात और राजश्री की फिल्म चितचोर मिली । यह दोनों फिल्में भी दर्शकों द्वारा खूब पसंद की गईं। पहली बार मध्यमवर्गीय समाज सिनेमा का केंद्र बिंदु बना। कम बजट में बनाई गई इन फिल्मों का एक आकर्षण कर्णप्रिय संगीत तो था ही नए प्रतिभाशाली कलाकार भी थे, जिनमें आम लोगों ने अपनी जिंदगी के अक्स पाए।

बासु चटर्जी की सृजनात्मक यात्रा चलती रही। स्वामी, प्रियतमा, खट्टा मीठा, दिल्लगी, बातों-बातों में, हमारी बहु अलका, शौकीन, लाखों की बात, चमेली की शादी और किरायेदार आदि । 1985 में उन्होंने दूरदर्शन के लिए रजनी और दर्पण जैसे सीरियल बनाए और फिर 1988 में कक्काजी कहिन। यह बहुत पसंद किए गए । अपने जीवनकाल में बासु चटर्जी ने 35 फिल्में की और पटकथा लेखन और निर्देशन के लिए कई फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त किए। 1997 की फिल्म गुदगुदी जिसमें अनुपम खेर और प्रतिभा सिन्हा थे उनके द्वारा निर्देशित अंतिम फिल्म थी। उन्होंने पांच बांग्ला फिल्में भी निर्देशित कीं। चार जून 2020 को वे हमारे बीच नहीं रहे। 

चलते-चलते

पिया का घर फिल्म में बासु चटर्जी नायक के रूप में अमोल पालेकर को लेना चाहते थे लेकिन राजश्री के राजकुमार बड़जात्या ने कहा कि उनका साधारण चेहरा हीरो के रूप में नहीं चलेगा तब अनिल धवन का चुनाव किया गया। इस फिल्म के एक गीत-बंबई शहर की सैर करा दूं... की शूटिंग मुंबई के प्रमुख स्थानों पर की गई थी। इस गाने के अंतिम अंतरे में अमिताभ बच्चन वेटर की भूमिका में ,जया भादुड़ी और अनिल धवन को कोकाकोला देते हुए दिखाई देते हैं। यह इसलिए मुमकिन हुआ था क्योंकि इस दौरान अमिताभ बच्चन राजश्री की फिल्म सौदागर में काम कर रहे थे और दूसरी तरफ उनकी जया से भी अच्छी दोस्ती हो गई थी। पिया के घर का संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने दिया था। जब उन्होंने फिल्म का फाइनल ट्रायल शो देखा तो बहुत नाराज हो गए, क्योंकि फिल्म के सभी गाने हीरो-हीरोइन पर बैकग्राउंड में रखे गए थे। इससे वे इतने नाराज हुए कि उन्होंने फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक देने से इंकार कर दिया और बाद में राजश्री के लिए कभी काम नहीं किया। (लेखक, वरिष्ठ साहित्य और कला समीक्षक हैं।)

Tags: Feature