झाबुआ: मेहनत और आत्मविश्वास से पराजित हुई विकलांगता

झाबुआ: मेहनत और आत्मविश्वास से पराजित हुई विकलांगता

झाबुआ, 17 अप्रैल (हि.स.)। जीवन में आत्मविश्वास का धन मौजूद है, कार्य करने की ललक है, मन में उत्साह है तो विकलांगता का निश्चित रूप से कोई भी मूल्य हो ही नहीं सकता। अपनी सामर्थ्य और आत्मविश्वास के बल पर व्यक्ति विकलांगता को आसानी से पराजित कर जीवन में सफलताओं की सीढ़ियां चढ़ सकता है।

विकलांगता को पराजित कर सफलता की गढ़ी नई कहानी

इसी मेहनत, उत्साह और आत्मविश्वास के द्वारा जीवन में सफलता प्राप्त करने की कहानी को बयां करती है, जिले के थान्दला जनपद के ग्राम सुत्रेटी की निवासी मंजु बामनिया (35वर्ष)। जिसने विकलांगता को पराजित कर सफलता की एक नई कहानी लिखी है। मंजु ने दोनों पैरों से विकलांग होते हुए भी पढ़ाई करते हुए ग्रेजुएशन किया किंतु ग्रेजुएट होने के बाद भी जब उसे कोई काम न मिला, तो निराशाएं आकार लेने लगी, तभी मंजु ने निश्चय किया कि वह जीवन में कभी भी, चाहे कैसी भी परिस्थिति पैदा हो जाए, वह हार नहीं मान सकती। विपरीत हालातों के चलते उसने सफलता की ऐसी कहानी लिख दी, जिससे प्रेरणा लेकर निराशाओं को आशाओं में तब्दील किया जा सकता है।

सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने का संकल्प ने पूरा किया सपना

सफलता की कहानी लिखने वाली कर्मशील रचनाकार मंजु बामनिया ने हिन्दुस्थान समाचार को अपने कठिनाइयों से भरे और चुनौती पूर्ण जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि जब मैं पांच वर्ष की थी, तभी मैं एक पैर से विकलांग हो गई। बीमार होने पर जब इंजेक्शन लगाया गया तो, पैर बेकार हो गया, जब समझ आई तो यह सोचकर कि मेरा दूसरा पैर तो ठीक है, मैंने हिम्मत नहीं हारी, ओर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया। स्नातक और फिर समाजशास्त्र में एम.ए. किया। किंतु अब भी दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था, अभी तीन वर्ष पहले जब सड़क से गुजर रही थी, तभी एक बाईक वाले ने मुझे टक्कर मार दी। मैं कुछ देर के लिए बेहोश हो गई, और जब होश आया तो मेरा दूसरा पैर भी बेकार हो चुका था। अब मैं पूरी तरह दोनों पैरों से विकलांग हो चुकी थी। अब जीवन का क्या औचित्य? मन में विचार आया, किंतु दूसरे ही क्षण मन में फिर विचार कौंध गया कि पैरों से विकलांग हुई तो क्या हुआ? मेरे दोनों हाथ तो सही सलामत हैं। मैं जीवन से हार नहीं मान सकती। एक संकल्प उठा कि अब आगे के जीवन में, मैं अपने कार्य को सर्वश्रेष्ठ आकार दूंगी। मेरे पास कोई काम नहीं था, अपने स्वयं के छोटे-छोटे खर्चों के लिए परिवार पर निर्भर रहती थी। परिवार के आर्थिक हालात भी खराब थे। जॉब के लिए बहुत आवेदन किये पर कुछ नहीं हुआ, तो फिर अपने परिवार के साथ खेत पर काम करने लगी, पर परिवार के आर्थिक हालात बिगड़ते ही जा रहे थे, ऐसी स्थिति में मैंने पास के ही चैनपुरा गांव के छात्रावास में बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। मेरा भाई मुझे रोजाना वहां छोड़ने और लेने आता था। कुछ वक्त यह अध्यापन कार्य किया, तभी मुझे आजीविका मिशन के बारे में मालूम हुआ, तो आजीविका मिशन द्वारा बनाए जा रहे स्वयं सहायता समूह से जुड़ गई, बस यहीं से मेरे जीवन ने एक नया मोड़ लिया, और मेरा जीवन पूरी तरह बदल गया। अब मेरी मेहनत से मेरे पग आत्मनिर्भरता और स्वरोजगार की और बढ़ चुके थे।

कियोस्क सेंटर ने बदल दी जिंदगी

मंजु बताती हैं, कि स्वयं सहायता समूह के माध्यम से उसे कियोस्क बैंकिंग आई.डी. के बारे में जानकारी मिली, फिर उन्होंने मध्य प्रदेश ग्रामीण बैंक कियोस्क आई.डी. के लिए आवेदन किया व उन्हें कुछ समय बाद मध्य प्रदेश ग्रामीण बैंक कियोस्क आई.डी. मिली। कियोस्क आई.डी. मिलने के बाद मैंने बैंक से ऋण लेकर थान्दला नगर के मेन बाजार में अपना खुद का कियोस्क सेंटर स्थापित कर दिया।

बैंक ऋण से पिता के लिए खरीदी जमीन, मिला रोजगार

अपनी मेहनत के बल पर सबसे ज्यादा ट्रांजेक्शन किये जाने पर मुझे वर्ष 2022 में बेस्ट बीसी का अवार्ड प्राप्त हुआ। मुझे संतुष्टी है कि अब मैं महीने के 15-20 हजार रुपये कमा लेती हूं, किंतु मेरे पिता के पास अब तक न तो कोई धंधा था, और न ही खेती के लिए जमीन ही थी, सो मैंने दूसरी बार फिर से बैंक ऋण लिया। इस बार बैंक से दो लाख का ऋण लेकर पिता के लिए जमीन खरीदी, इस तरह परिवार को भी रोजगार मिल गया। अब मेरी और मेरे परिवार की स्थिति सुधर गई है, किंतु मेरे ऐसे प्रयास होंगे कि मेरे गांव के लोग भी सुखी और संपन्न हों।

मंजु ने परिवार को ही नहीं गांव के लोगों को भी बनाया समृद्ध

ऐसा सोचते हुए मंजु ने न केवल अपने और अपने परिवार का ही हित साधन किया, बल्कि अपने गांव के अन्य जरूरत मंद लोगों की भी सहायता की। मंजु ने बताया कि अपने गाँव के दो लोगों को, जिनके पास कोई काम न था, ओर आर्थिक विपन्नता की स्थिति थी, मैंने उन्हें बैंक से ऋण दिलाया, जिससे उन्होंने अपना स्वयं का व्यवसाय शुरु कर दिया, अब वे आत्मनिर्भर हैं, और अपनी तथा अपने परिवार की आजीविका अच्छी तरह से चला रहे हैं।

मंजु, दिव्यांग महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा पुंज

मंजु बामनिया नामक रोग से पीड़ित होने के बाद भी दिव्यांग महिला सशक्तिकरण की ज्वलंत उदाहरण हैं। वह सबके लिए प्रेरणा पुंज हैं। जो विषम परिस्थितियों में पराजित नहीं हुई, और जिसके द्वारा सार्थक प्रयासों के बल पर विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बनाकर समय के सीने पर सफलता की कहानी लिख दी गई।