ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी के पूर्वजों ने बाबासाहेब को पढ़ाई के लिए भेजा था विदेश

ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी के पूर्वजों ने बाबासाहेब को पढ़ाई के लिए भेजा था विदेश

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

ग्वालियर के सिंधिया परिवार की इतिहास के हवाले से यह कहकर आलोचना की जाती रही है कि उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में महारानी लक्ष्मी बाई का साथ नहीं दिया था, यदि दिया होता तो इतिहास कुछ और होता। हालांकि इतिहास में ही लिखी इस बात को कोई नहीं बताना चाहता था, उस समय जब झांसी की रानी अंग्रेजों से लोहा लेती हुईं ग्वालियर पहुंचीं और ग्वालियर किले पर उन्होंने अपना ध्वज लहराया, उस समय रानी लक्ष्मीबाई का किले पर किसी ने कोई गहरा विरोध नहीं किया था, बल्कि ग्वालियर के राजा जयाजीराव सिंधिया के कोषाध्यक्ष अमरचंद बांठिया ने ग्वालियर का शाही खजाना रानी के लिए खोल दिया था।

इतिहास इस बात पर भी मौन दिखता है कि तत्कालीन राजा जयाजीराव सिंधिया यानी की आज के ज्योतिरादित्य सिंधिया के पूर्वज की उम्र उस समय कितनी रही होगी, जब 1857 का भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा जा रहा था। ग्वालियर गजेटियर के अनुसार राजा की उम्र उस समय 23 साल की थी। जयाजीराव सिंधिया को 1843 में जनकोजीराव सिंधिया की विधवा ताराबाई ने गोद लिया, तब वे आठ वर्ष के थे और 1857 में जब विद्रोह हुआ तब वे 23 वर्ष के थे (ग्वालियर गजेटियर पृष्ठ 34-35)। उस विषम परिस्थिति में ग्वालियर के दीवान दिनकर राव को अपने महाराजा को जिंदा बनाए रखना अहम लगा और वे उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तुरंत ही उन्हें लेकर आगरा चले गए थे। ऐसे में राजा, राज्य और ग्वालियर की जनता तीनों सुरक्षित रहीं। हजारों लोगों की जान तत्कालीन राजा ने यह कहकर बचा ली कि वे स्वयं ग्वालियर में मौजूद नहीं थे। इतिहास के झरोखे से उठे प्रश्नों एवं तथ्यों को आज की पीढ़ी किस तरह देखती है, यह उसका अपना दृष्टिकोण है, किंतु आज जयाजीराव सिंधिया की पीढ़ी को इस बात का गर्व अवश्य है कि वो डॉ. आम्बेडकर की जयंती धूमधाम से मनाता है, जिन्होंने देश को एक परिपक्व संविधान देने का काम किया और जिनके कारण देश में वंचितों, पिछड़ों और गरीबों को न्याय मिल सका।

ग्वालियर में रविवार को 'आम्बेडकर महाकुंभ' में यह बात निकलकर फिर एक बार सामने आई कि मराठाओं के सहयोग से ही डॉ. आम्बेडकर विदेश में अध्ययन के लिए जा सके थे और उस उच्च अध्ययन का ही परिणाम है कि देश को श्रेष्ठ संविधान के रूप में मिला। ग्वालियर में 'आम्बेडकर महाकुंभ' में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि उनकी पत्नी के पूर्वज जयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने बाबासाहेब को पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था। सिंधिया का कहना है कि एक मराठा होने के नाते बाबासाहेब के आगे शीष झुकाने पर उन्हें गर्व महसूस होता है। इसके पीछे का जो एक बड़ा कारण उन्होंने बताया, उसके अनुसार डॉ. आम्बेडकर महार समाज से आते थे और छत्रपति शिवाजी के हिंदवी स्वराज को पूर्णता प्रदान करने में इस समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनकी सेना में अधिकांश वीर सैन्य पदाधिकारी एवं सेना के सामान्य सैनिक भी अधिकांश महार समाज के होते थे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया का आरोप है कि स्वाधीनता के 75 साल तक बाबासाहेब को सम्मान के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ा। कांग्रेस ने कभी डॉ. आम्बेडकर का सम्मान नहीं दिया। आज देश में जो नेता चुनाव के समय बाबासाहेब को याद करते हैं। दलितों के लिए न्याय की बातें करते हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि वे पिछले 75 वर्ष कहां रहे? उन्होंने क्या अच्छा कार्य किया? इतिहास सब जानता है।

ज्योतिरादित्य का कहना है कि कांग्रेस ने 1950 में कांग्रेस ने बाबासाहेब के विरुद्ध लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारा था। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रही बल्कि स्वयं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. आम्बेडकर के विरुद्ध प्रचार किया था। वास्वत में मेरा परिवार (भाजपा) के अटलजी ने उन्हें 'भारत रत्न' दिलाने में अहम रोल निभाया था। यहां बता दें कि डॉ. आम्बेडकर को भारत रत्न की उपाधि 1990 में दी गई। उस समय केंद्र में प्रधानमंत्री वीपी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार थी। भाजपा ने वीपी सिंह सरकार को बाहर से समर्थन दिया था।

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं और हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)