पितृ दोष क्या और क्यों होता है?

पितृ दोष क्या और क्यों होता है?

प्रत्येक कुल की परिस्थितियों में विभिन्नता रहती है । हमारे पूर्वजों द्वारा समाज के प्रति जाने-अनजाने में कुछ दुःख दाईं घटनाएं घटित हो जाती हैं या यूं कहिए कि लोग अपने कुपित वचनों से अभिशप्त कर देते हैं। यही शाप पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है तब तक कि इसका निराकरण न कर लिया जाए। दुर्घटनाओं का भी पितृदोष में समावेश किया गया है। यह मातृ एवं पितृपक्ष दोनों से संभव हो सकता है। संभवतः परिवार सज्जनता एवं सरलता से युक्त रहता है। परन्तु दोषों के कारण हर काम में कुछ न कुछ रूकावट आ ही जाती है। बड़ों द्वारा की गई गलतियों को सभी को सहना पड़ता है। 

अपने पिता कि इज्जत न करने, उनका कहना न मानना, बुढ़ापे में उनकी उचित संभाल न करना, उनको तरसाना, उनको वृद्धाश्रम में छोड़ कर आना, उनकी बद-दुआ लेने से पितृ दोष लगता है | पिता की दुआएं हमारी रक्षा करती हैं, हमें सफलता दिलाती हैं। जबकि उनकी बद-दुआ हमें भविष्य में दुःख व अप्राप्ति की अनुभूति कराएगी। अतः मरने के बाद क्रिया कर्म व अंतेष्टि में दिखावा करने से बेहतर है कि जीते जी उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार रखें। 

यदि कुंडली में सूर्य पीड़ित है तो इसका मतलब है कि व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित है। पितृदोष तीन जन्मों के लिए किसी की कुंडली में रहता है।
 पितृ दोष का क्या असर होता है। पितृदोष के बारे में मार्कंडेय पुराण में विस्तार से बताया गया है कि जिस मानव युगल स्त्री पुरुष को पितृदोष लग जाता है उनके जीवन की गति प्रगति उत्तम गति सभी तरह से रुक जाती है । इसमें मेरा निजी अनुभव है। मैं स्वयं पितृदोष से प्रभावित हूं। पितृदोष की विशेषता यह है कि यह जिस पर लग जाता है, वंश बेल रुक जाती है। शादी संबंध के बनने का प्रश्न ही नहीं होता अर्थात उत्तम पुत्र तो क्या अधम पुत्र और अधम पत्नी की प्राप्ती नहीं होती है। पुत्र पत्नी की भी प्राप्ति पितर कृपा से ही संभव है। यदि पितर रुष्ट हो जाय तो संतान शोक देखना पड़ता है। जीवन में राज सत्ता सुख, रोजगार, परिवार को अन्न व्यवस्था, खेती-बाड़ी, पशु धन सभी पितरों के प्रभाव से, पितर कृपा से प्राप्त होता है। जैसी जिस पर पितर कृपा होती है उसकी सुख-समृद्धि पितर जनों की कृपा दृष्टि पर निर्भर करती है।

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यदि पितरों की कृपा हो जाय तो असंभव कार्य भी संभव हो सकता है। पितर कृपा के होते बलवान शत्रु का निर्बल मनुष्य पर वश नहीं चलता है। एक परिचित  शत्रुओं से घिर गए तभी पित्रों ने सर्प रूप, सांड रूप, कुत्ता रूप से उनकी रक्षा की। सामान्य जीवन में उनको पितरों ने कौआ, काक, कुत्ता रूप से शकुन देकर बचाया। इंद्र पद केवल पितरों की पूजा के प्रभाव से मिलता है। युवा अवस्था में यदि पितर रुष्ट हो जाय तो आजीवन कुंआरा रहना पड़ता है। शादी के बाद पितृदोष लग जाय तो संतान शोक झेलना पड़ता है। पहले तो संतान नहीं होती है और यदि पैदा हो गई तो मरती जाती है। 15 वर्ष की आयु से पहले शैशवावस्था, बाल्यावस्था में संतान पूरी तरह से पितरों बड़ों के नियंत्रण में होती है। जीवित पितर माता-पिता, दादी-दादा, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, मामा-मामी, नाना-नानी कहे जाते हैं तथा इनसे पूर्व के इनके पूर्वज जो मर गए हैं लेकिन उनको अभी तक दूसरा जन्म और शरीर नहीं मिला है। 

बलात्कार, मैथुन निषेध तिथि पर मैथुन करने से भी, पूर्व जन्म के बैर के कारण भी और भ्रूणहत्या करने-कराने पर पितृदोष लगने की गारंटी है। इसमें मेरा निजी अनुभव है, जो स्त्रियां अधिकतर गर्भपात कराती हैं, जो आने वाले बच्चे का तिरस्कार करतीं हैं वे अपनी संतान की हत्यारी स्त्रियां न तो अपने पति की प्रिया बन पाती हैं और न ही श्रैष्ठ संतान की माता बनने का सपना पूरा कर पाती हैं। चोरी करने वाले लोगों को पितृदोष लग जाता है। माता का धन, बहिन, पुत्री का धन चोरी करने वाला, इनको धन देना कहने के बाद भी धन न देने पर पितृदोष लग जाता है। पितर दोष का अर्थ है पूर्वज श्रेणी के लोग जैसे माता, पिता, गुरु, चाचा, ताऊ, मामा, फूफा, मौसा आदि। पितृदोष का मतलब है पितर माता, पिता, गुरु के द्वारा रुष्ट होने पर या गलत व्यवहार करने पर अपने पुत्र, पुत्री, शिष्य को पितृ शाप मिलता है। वहीं आशीर्वाद से हम प्रगति करते हैं । 

जब पितृ दोष हो तब जीवन अतृप्त ही रहता है। एक बार किसी ने अपने गुरु पर हाथ उठाया था तब उनके गुरु ने रोते हुए रुष्ट होकर कहा था : बच्चे अब तुम जितना मैं तुमको ये शाप देता हूं अब तुम आगे पढ़ नहीं सकोगे और हुआ भी ऐसा ही। मेरे पहचान के व्यक्ति समृद्ध होने पर भी नवमी कक्षा पास नहीं कर सके थे और गुरु जनों के शाप देने से बचते हैं। मेरे दोस्त के ताऊजी ने उनके चाचा को शापित कर दिया था। धोखाधड़ी से 40 बीघा जमीन हड़पने पर नतीजा आज भी उनके चाचा अपमानित जीवन जी रहे हैं। 40 बीघा जमीन का दान करने के बाद भी उनका कुल में सम्मान नहीं है। पितृ दोष होने से परिवार में निर्धनता, गरीबी, साधन हीनता आने लगती है।  वह अपनी सोच व व्यवहार को सही बनाएं। मनुष्यों की पितर क्षमताओं को नष्ट कर देते हैं जिससे स्त्री हो या पुरुष हो पितृदोष लग जाने पर  (संतान हीन) नपुंसक होने लगते हैं । पुरुष में शुक्र फर्टिलाइजेशन के योग्य नहीं रहता है, स्त्रिओं में अन्य जनन विकार उत्पन्न हो जाते हैं। पितरों से संरक्षित न होने पर संतान गर्भ में स्थापित नहीं होती, स्थापित हो गयी तो प्रसव पूर्व या प्रसव पश्चात नहीं बचती है ।

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