हिन्दू संस्कृति में चारधामों का है विशेष महत्व, अन्य दर्शनीय स्थलों के भी हैं खास मायने

22 अप्रैल से होगा यात्रा का आगाज, शासन-प्रशासन ने की पूरी तैयारी

हिन्दू संस्कृति में चारधामों का है विशेष महत्व, अन्य दर्शनीय स्थलों के भी हैं खास मायने

ऋषिकेश, 13 अप्रैल (हि.स.)। हिन्दू संस्कृति में चारधाम यात्रा का विशेष महत्व है। उत्तराखंड की विश्वविख्यात चारधाम यात्रा, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ सिखों के पवित्र धाम श्री हेमकुंड की यात्रा का भी अपना अलग ही महत्व है। चारधाम का आगाज 22 अप्रैल से प्रारंभ हो रहा है।

केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल को तो बदरीनाथ के 27 अप्रैल को खुलेंगे जबकि परंपरा के अनुसार 22 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलेंगे। शासन-प्रशासन ने यात्रियों की अतिथि देवो भव की तर्ज पर पूरी तैयारी कर ली है। यात्रा को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विशेष नजर बनाए रखे हुए हैं। यात्रा को सुखद और सरल यात्रा बनाने के लिए मुख्यमंत्री लगातार और समीक्षा बैठक कर आवश्यक निर्देश दे रहे हैं हैं।

प्रशासन का मानना है कि पिछले 2 वर्ष में कोरोना के चलते कम हुई यात्रियों की संख्या के बाद इस वर्ष काफी संख्या में यात्रियों के आने की संभावना है, जिसे लेकर केंद्र सरकार के मेगा प्रोजेक्ट फोर लाइन का कार्य तेजी के साथ किया जा रहा है। केदारनाथ पुरी को आधुनिक तरीके से सभी सुविधायुक्त बना दिया गया है, तो सिखों के पवित्र धाम श्री हेमकुंड साहिब में भी गोविंद घाट से लेकर हेमकुंड साहिब तक रोपवे का निर्माण कार्य किया जा रहा है। इससे यात्रियों को पहले की अपेक्षा काफी सुविधा हो जाएगी।

हिन्दू संस्कृति में चारधामों का विशेष महत्व

चारधाम यात्रा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगोत्री, यमुनोत्री को जहां धरती पर ईश्वरीय साक्ष्य के रूप में मानते हैं तो केदारनाथ को भगवान शिव और बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना गया है। इसलिए इसे यात्रा नहीं अपितु जीवन दर्शन कहा जाता है। श्री बद्रीनाथ को बैकुंठ धाम, मां गंगोत्री को फलदायिनी, मां यमुनोत्री को सूर्य पुत्री और केदारनाथ को शिव के धाम के रूप में मान्यता दी गई है।

यमुनोत्री धाम

यमुना में पवित्र यमुना नदी का उद्गम स्थल है ,यहां पर यमुना देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। कहा जाता है कि यमुना को यमराज की जुड़वा बहन और सूर्य की बेटी माना गया है। यमुनोत्री जाने के लिए जानकीचट्टी तक मोटर मार्ग और यहां से 5 से 6 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करना पड़ता है, जो समुद्र तल से लगभग 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर के समीप गर्म पानी का कुंड है ,जिसे सूर्यकुंड के नाम से भी जाना जाता है। यात्री इसमें कपड़े में चावल और आलू पकाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

गंगोत्री धाम

गंगोत्री धाम में मां गंगा मंदिर है जो कि 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ,जिसका निर्माण 18वीं सदी में किया गया था। सफेद रंग की संगमरमर से बने इस मंदिर की ऊंचाई 25 फीट है, जहां गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर भी है ,जो गंगोत्री से 18 किलोमीटर पैदल मार्ग की दूरी पर है। गंगोत्री को राजा भगीरथ की तपस्थली भी कहा गया है। इसके संबंध में कहा गया है कि भागीरथी नदी को अपने उद्गमस्थल से निकल कर देवप्रयाग में अलकनंदा में मिलीं, जहां से दोनों बहनों के मिलन के बाद उसे ही मां गंगा का नाम दिया गया जो कलकत्ता तक गई हैं। गंगोत्री मंदिर के निकट अन्य पूजा स्थल सूर्यकुंड ,विष्णु कुंड ,ब्रह्मकुंड भी है, जहां श्रद्धालु पूरी आस्था और पूर्वक जाते हैं।

श्री केदारनाथ धाम

श्री केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के किनारे समुद्र तल से लगभग 3584 मीटर की ऊंचाई पर है। यह मंदिर शिव धाम के नाम से विख्यात है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक इस महा धाम में गंगोत्री से लाए जल से यात्री महादेव का जलाभिषेक करते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य ने इस पावन भूमि पर भगवान शिव को स्थापित किया। पौराणिक कथा अनुसार भगवान शिव ने इस स्थान पर पांडवों को कौरवों की हत्या के पाप से मुक्त किया था। केदारनाथ में अनेक कुंड विद्यमान हैं, जिनका अपना आध्यात्मिक महत्व है। केदारनाथ धाम के लिए सोनप्रयाग तक बड़े वाहन के माध्यम से सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर गौरीकुंड तक छोटे वाहनों तक और अन्य वाहनों से यात्री सुविधा पूर्वक पहुंच सकते हैं। यात्रियों को पहुंचने के लिए 16 किलोमीटर पैदल यात्रा के अतिरिक्त घोड़े, खच्चर, डांडी, कंडी आदि से भी पहुंचा जा सकता है।

बद्रीनाथ मंदिर

बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के दाहिने तट पर 3133 मीटर की ऊंचाई पर नर -नारायण पर्वत की गोद में स्थित है। श्री बद्रीनाथ धाम में जहां काले पत्थर की ध्यान मग्न पद्मासन भगवान विष्णु की मूर्ति है वहीं इस मंदिर को सबसे पुराने तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। बताया जाता है कि आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की थी। भगवान बद्रीनाथ के पुजारी दक्षिण भारत के नम्बूदरी पाद ब्राह्मण होते हैं, जिन्हें रावल भी कहते हैं वे ही मंदिर की पूजा करते हैं, जहां श्री बद्रीनाथ मंदिर के अलावा तप्त कुंड ,नारद कुंड, शेष नेत्र नीलकंठ शिखर, उर्वशी मंदिर, ब्रह्म कपाल ,माता मूर्ति मंदिर के अलावा देश का अंतिम गांव माणा और भीम पुल के अलावा वसुधारा जलप्रपात स्थल भी दर्शनीय है।

श्री हेमकुंड साहिब

श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा समुद्र तल से अलकनंदा और पुष्पावती नदी के संगम पर 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गुरु गोविन्द साहिब के संबंध में मान्यता है कि इस स्थान पर सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी। इसलिए सिख समाज में हेमकुंड साहिब को गुरु गोविंद सिंह की तपस्थली के रूप में जाना जाता है। इसके कपाट मई माह में दर्शनार्थियों के लिए खोले जाते हैं।

पांचों धामों के अतिरिक्त पंच बद्री योगध्यान, वृद्धबद्री मंदिर, आदि बद्री मंदिर, पंच केदार आदि मंदिरों की भी यात्रा प्रारंभ हो जाती है। जहां हजारों की संख्या में यात्री दर्शनों के लिए जाते हैं। इन सभी स्थानों पर जाने के लिए यात्रियों को ऋषिकेश आना पड़ता है, जहां से उन्हें इन यात्रा मार्गों पर जाने के लिए सभी प्रकार के वाहन उपलब्ध रहते हैं।