सेवा संगम : सवाई घास कर रही है आजीविका को सवाया

सेवा संगम : सवाई घास कर रही है आजीविका को सवाया

जयपुर, 10 अप्रैल (हि.स.)। अलग-अलग तरह की घास और तिनकों का उपयोग अब सजावटी सामान बनाने में बखूबी होने लगा है। ऐसी ही एक घास पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम जिले के जनजाति समाज के लिए आजीविका का मजबूत साधन बनी हुई है। सवाई नाम की यह घास उनकी आजीविका को सवाया कर रही है। सवाई घास से बने सजावटी व उपयोगी सामान जयपुर में केशव विद्यापीठ जामडोली में हुए सेवा संगम में भी लोगों को खूब पसंद आए।

पश्चिम बंगाल में समाज सेवा भारती से जुड़े झाड़ग्राम सेवा केन्द्र के संजय बारिक बताते हैं कि कोलकाता से करीब 170 किलोमीटर दूर झाड़ग्राम जिले के जंगलों में सवाई नाम की घास उगती है। इस क्षेत्र में 90 प्रतिशत जनजाति समाज से हैं जिनमें मुंडा, लोदा, महतो आदि के साथ जंगल के बीचोंबीच रहने वाली सबर जनजाति भी शामिल है जो कमर के ऊपर के हिस्से को कपड़ों से ढंकना पसंद नहीं करती। इस आदिवासी समाज के युवा जब नजदीक में लगने वाले हाट बाजार में खरीदारी करने जाते हैं तो केवल जिंस पसंद करते हैं।

बारिक बताते हैं कि सवाई घास का 10 किलो का पूला 250 रुपये में उपलब्ध हो जाता है। पहले जनजाति समाज के लोग इसे धोकर परिष्कृत करके 750 रुपये में दूसरों को बेच देते थे। अब सेवा केन्द्र से जुड़कर वे लोग इस घास से छोटी टोकरियां, पर्स, सजावटी कलाकृतियां आदि बनाने लगे हैं। सेवा केन्द्र के कार्यकर्ता इन सामानों की बिक्री में उनकी मदद करते हैं। उन्होंने बताया कि यदि एक अनुमान लगाया जाए तो 250 रुपये की 10 किलो सवाई घास से इतना सामान तैयार हो जाता है कि जब वह पूरा बिक जाए तो करीब 20 हजार रुपये प्राप्त होते हैं। बनाने में लगने वाली मेहनत के यथोचित मेहनताने, कार्यकर्ताओं के मानदेय आदि सहित बचत भी हो जाती है जो लाभांश के रूप में उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सहयोगी बन रही है। बारिक बताते हैं कि यह सामान ऑनलाइन भी बेचा जा रहा है। कई लोग सामान उनसे एक साथ खरीदते हैं और शहरों में जाकर भी बेचते हैं।