प्रोजेक्ट टाइगर ने पुरे किए 50 साल, इंदिरा गाँधी से शुरू होकर प्रधानमंत्री मोदी तक पहुंचा ये अभियान

प्रोजेक्ट टाइगर के अर्धशतक पर मनाया जश्न, बांदीपुर टाइगर रिजर्व को आज दुनिया में एक प्रमुख बाघ आवास के रूप में लोकप्रिय

प्रोजेक्ट टाइगर ने पुरे किए 50 साल, इंदिरा गाँधी से शुरू होकर प्रधानमंत्री मोदी तक पहुंचा ये अभियान

जंगल की बड़ी बिल्लियों यानी बाघ को बचाने और भारत में उनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया। परियोजना ने बाघ की आबादी बढ़ाने और संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने में मदद की है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने के मौके पर बांदीपुर टाइगर रिजर्व जा रहे हैं। रिजर्व को आज दुनिया में प्रमुख बाघ आवास के रूप में मान्यता प्राप्त है।

एक समय टाइगर के अस्तित्व पर उठने लगे थे सवाल

आपको बता दें कि जब प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ था, तो उस समय अवैध शिकार और सुरक्षा की कमी के कारण केवल 12 बाघ ही बचे थे। आज, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के कारण भारत में 126 बाघों को रिकॉर्ड है, जिसमें अकेले बांदीपुर पार्क में 173 हैं। 9 अप्रैल को "प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने का जश्न" कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मोदी 2022 में बाघों के अनुमान के नवीनतम आंकड़े जारी करेंगे।

प्रोजेक्ट टाइगर के लिए महत्वपूर्ण है बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान

गौरतलब है कि 1941 में गठित बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान को 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत लाया गया था। निकटवर्ती आरक्षित वन क्षेत्रों को बाद में जोड़ा गया था। ये रिजर्व अब 912.04 वर्ग किमी में फैला हुआ है। अवैध शिकार विरोधी गश्ती, आवास प्रबंधन और समुदाय आधारित संरक्षण कार्यक्रमों के अच्छे परिणाम मिले हैं, लेकिन स्थानीय समुदायों द्वारा बफर जोन में अतिक्रमण एक चुनौती बना हुआ है।

इस राज्य में शुरू हुआ था ‘प्रोजेक्ट टाइगर’

प्रोजेक्ट टाइगर को लागू करने वाले राज्यों में सबसे पहला राज्य कर्णाटक है, जहां देश में सबसे ज्यादा बाघों की आबादी है। राज्य प्रशासकों ने 1901 में मैसूर खेल और मछली संरक्षण अधिनियम पारित किया, बाघ ब्लॉकों की पहचान की और शूटिंग पर प्रतिबंध लगाए। स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री डी देवराज उर्स ने प्रोजेक्ट टाइगर दिशानिर्देशों को लागू किया और "प्री-पेड लाइसेंस" योजना को समाप्त कर दिया, जिसके तहत लोगों को एक छोटा सा शुल्क देकर जंगलों में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी।