व्यापार : बीते तीन महीने में फ़रवरी में हुआ सबसे कम ई-वे बिल का उपयोग

जनवरी और दिसंबर में यह 8.24 करोड़ और 8.41 करोड़ से ज्यादा के ई-वे बिल के सामने फरवरी में हुआ 8.18 करोड़ रुपये का ई-वे बिल जेनरेशन

व्यापार : बीते तीन महीने में फ़रवरी में हुआ सबसे कम ई-वे बिल का उपयोग

फरवरी में 8.18 करोड़ रुपये के ई-वे बिल जेनरेशन के साथ तीन महीने के निचले स्तर पर आ गया। जनवरी और दिसंबर में यह 8.24 करोड़ और 8.41 करोड़ से ज्यादा थी। तकनीकी रूप से, फरवरी का डेटा 28 दिनों का होता है जबकि पिछले दो महीनों (जनवरी और दिसंबर) में कुल 31 दिन होते हैं। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान दिसंबर में उत्पन्न ई-वे बिल की संख्या 7.16 करोड़ थी जो जनवरी में घटकर 6.88 करोड़ हो गई लेकिन फरवरी में बढ़कर 6.91 करोड़ हो गई थी।

ई-वे बिल और जीएसटी का संबंध

आपको बता दें कि एक महीने का ई-वे बिल जेनरेशन अगले महीने जीएसटी संग्रह का संकेत देता है। इसका मतलब है कि फरवरी में ई-वे बिलों की कम संख्या कम जीएसटी संग्रह का संकेत हो सकती है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ई-वे बिल जनरेशन सीधे रेवेन्यू कलेक्शन से जुड़ा नहीं है। 

क्यों जरुरी है ई-वे बिल

एक ई-वे बिल एक दस्तावेज है जिसे जीएसटी शासन के तहत सरकार द्वारा अनिवार्य के रूप में पचास हजार रुपये से अधिक मूल्य के माल की किसी भी खेप को ले जाने वाले वाहन के प्रभारी व्यक्ति द्वारा साथ लेकर जाना आवश्यक है। सीजीएसटी नियम, 2017 के नियम 138 के अनुसार, 50,000 रुपये से अधिक मूल्य के माल (जो आपूर्ति के कारण आवश्यक नहीं हो सकता है) की आवाजाही करने वाले प्रत्येक पंजीकृत व्यक्ति को ई-वे बिल जनरेट करना आवश्यक है। अगर माल को ट्रांसपोर्टर के माध्यम से भेजा जा रहा है तो फिर माल को ट्रांसपोर्टर को सौंपने से पहले ही उसके सप्लायर या रिसीवर ई-वे बिल जारी कर सकेंगे।अगर किसी स्थिति में सप्लायर या रिसीवर ने इस बिल को नहीं बनाया है तो माल भेजने से पहले ही ट्रांसपोर्टर को खुद ई-वे बिल जारी करना अनिवार्य है।

क्या हैं जीएसटी का आंकड़ा

जीएसटी संग्रह की बात करें तो मार्च 2022 से फरवरी 2023 तक 12 महीने की अवधि के दौरान यह संग्रह प्रति माह 1.40 लाख करोड़ रुपये या उससे अधिक रहा। वहीं अप्रैल 2022 में ये संग्रह सर्वकालिक उच्च 1.68 लाख करोड़ रुपये का था, जबकि दूसरा उच्चतम संग्रह इस साल जनवरी में 1.56 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। अब, सरकार को आने वाले महीनों में 1.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक की उम्मीद है।