मध्य प्रदेश : चार साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके हत्या करने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने की ‘नाबालिग’ आरोपी की फांसी की सजा माफ़
आरोपी के नाबालिग होने के कारण निचली अदालत द्वारा दी गयी सजा को उच्चतम अदालत ने किया माफ़
मध्य प्रदेश के धार जिले में 4 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में अदालत द्वारा एक व्यक्ति को मौत की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद अब पता चला है कि आरोपी शख्स नाबालिग है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा को खारिज कर दिया है क्योंकि वह घटना के वक्त नाबालिग था। इतना ही नहीं साथ ही अदालत ने उसे रिहा करने को भी कहा है।
निचली अदालत ने सुनाई थी फांसी की सजा
आपको बता दें कि घटना ऐसी है कि निचली अदालत ने दुष्कर्म और हत्या के मामले में आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मामले में सुनवाई करते हुए निचली अदालत की मौत की सजा को बरकरार रखा था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जब सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित थी तो याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि वह घटना के समय नाबालिग था, ऐसे में उसे किशोर न्याय अधिनियम का लाभ मिलना चाहिए।
जानिए क्या है मामला
मामले के बारे में बताते चलें कि 15 दिसंबर 2017 को धार जिले में अपने दोस्तों के साथ घर के बाहर खेल रही चार साल की बच्ची लापता हो गई थी। उसके माता-पिता ने गुमशुदगी दर्ज कराई लेकिन अगली सुबह लड़की का क्षत-विक्षत शव उसके घर से कुछ मीटर की दूरी पर मिला। पुलिस ने बताया कि उसे पत्थर से कुचल दिया गया। इस मामले में पुलिस ने युवक को गिरफ्तार कर लिया और 17 मई 2018 को निचली अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई।
क्यों मिली आरोपी को रिहाई
जेजे एक्ट के प्रावधानों के तहत, अगर किसी किशोर को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो उसे सुधार गृह में अधिकतम 3 साल तक कैद रखा जाता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट से जेजे एक्ट के तहत आरोपी के नाबालिग होने के दावे की जांच करने को कहा। निचली अदालत ने सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी थी। यह भी कहा गया कि आरोपी का जन्म 25 जुलाई 2002 को हुआ था। ऐसे में घटना के दिन यानी 15 दिसंबर 2017 को मात्र 15 साल का था।
सुप्रीम कोर्ट ने किया फैसले में संशोधन
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के 15 नवंबर 2018 के आदेश में संशोधन किया। इंदौर खंडपीठ ने अपने आदेश से युवक की दोषसिद्धि और फांसी की सजा को बरकरार रखा। निचली अदालत ने युवक के नाबालिग होने के दावे पर जांच के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने रिपोर्ट और साक्ष्य में प्रस्तुत सामग्री का भी अवलोकन किया है, जिसके आधार पर निचली अदालत अपने निष्कर्ष पर पहुंची है।