दिल्ली : बड़े निजी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ दो चिकित्सकों की योग्यता पर उठे सवाल पर उच्च न्यायालय ने दिया डिग्रियों की जांच कराने का निर्देश

दिल्ली : बड़े निजी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ दो चिकित्सकों की योग्यता पर उठे सवाल पर उच्च न्यायालय ने दिया डिग्रियों की जांच कराने का निर्देश

पांच वर्षीय देवर्श की ओर से एक मां की याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ ने दोनों डॉक्टरों विवेक जैन और अखिलेश सिंह से भी इस मामले में जवाब मांगा

दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग यानी एनएमसी, दिल्ली चिकित्सा परिषद यानी डीएमसी और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय यानी डीजीएचएस को राष्ट्रीय राजधानी के एक नामचीन निजी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ के तौर पर काम कर रहे दो वरिष्ठ चिकित्सकों की स्नातकोत्तर डिग्रियों की जांच करने का निर्देश दिया है। पांच वर्षीय देवर्श की ओर से एक मां की याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ ने दोनों डॉक्टरों विवेक जैन और अखिलेश सिंह से भी इस मामले में जवाब मांगा। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दो चिकित्सकों की ‘लापरवाही’ के कारण उनके बेटे देवर्श जैन की जान खतरे में पड़ गई। याचिका में कहा गया है कि इन चिकित्सकों को विशेषज्ञ व परम विशेषज्ञ बताया जाता है, लेकिन उनके पास आवश्यक योग्यता नहीं है। अदालत ने मामले में इन दोनों को 19 अप्रैल की अगली सुनवाई में हाजिर रहने के लिए तलब किया है।  डॉक्टर विवेक जैन और अखिलेश सिंह फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग में गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं के इलाज के लिए गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) का संचालन करते हैं।

जानिए क्या है मामला

आपको बता दें कि इस मामले में आरोप है कि फोर्टिस में 12 अगस्त 2017 को जन्म के दौरान बच्चे के दिमाग को नुकसान पहुंचा था। कई महीने बाद बच्चे के मस्तिष्क में आईं चोट के बारे में पता चला। उन्होंने 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि अस्पताल ने उनके बच्चे का 12 दिन तक आईसीयू में इलाज किया और ‘गलत मेडिकल समरी’ के आधार पर उसे सामान्य बताते हुए छुट्टी दे दी। अदालत को सूचित किया गया कि सी-सेक्शन के माध्यम से प्रसव के ठीक बाद बच्चे को शुरू में अस्वस्थ घोषित किया गया था और फिर अस्पताल द्वारा नवजात आईसीयू में उपरोक्त डॉक्टरों की देखरेख में स्थानांतरित कर दिया गया था। याचिका के अनुसार, 12 दिनों तक गहन देखभाल के बाद डॉक्टरों ने बच्ची को छुट्टी दे दी।
 
डॉक्टर के पास नहीं है योग्यता 

साथ ही याचिका में यह बताया गया था कि याचिकाकर्ता को हाल ही में पता चला है कि जैन और सिंह के पास अपेक्षित योग्यता नहीं है और वे नियोनेटोलॉजिस्ट या बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में अभ्यास करने के हकदार नहीं हैं। याचिका में कहा गया है, "आगे यह पता चला कि, आज भी वे नवजात आईसीयू के पूर्ण नियंत्रण में फोर्टिस अस्पताल में नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में अभ्यास कर रहे हैं, जिससे गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं का जीवन खतरे में पड़ गया है।" सपना जैन ने अपनी याचिका में दूसरे डॉक्टर अखिलेश सिंह के बारे में आरोप लगाया है कि सिंह भी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ वरिष्ठ सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं और वह आईसीयू में गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं के इलाज के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, उनके चिकित्सा शिक्षा प्रमाण पत्र से पता चलता है कि उन्होंने 1996 में एमबीबीएस और भारतीय मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कॉलेज (आईसीएमसीएच) से बाल स्वास्थ्य में डिप्लोमा प्राप्त किया था।

बच्चे का गलत रिपोर्ट बनाया गया

बच्चे की चोट को माता-पिता से छुपाने के लिए, यह भी आरोप लगाया गया कि अस्पताल ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के मकसद से बच्चे का झूठा मेडिकल रिकॉर्ड तैयार किया। परिणामस्वरूप, बच्चा किसी भी चिकित्सा उपचार से वंचित रहा और घर पर 7 महीने से अधिक समय तक शिशु ऐंठन / दौरे से पीड़ित रहा, जब तक कि उसका मस्तिष्क पूरी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं हो गया। आज वह तीव्र मिर्गी और सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित है और 'वेस्ट सिंड्रोम' नामक एक दुर्लभ चिकित्सा स्थिति से जूझ रहा है। इसने बच्चे को मानसिक और शारीरिक रूप से स्थायी रूप से विकलांग बना दिया है।

अदालत ने तीन सप्ताह में माँगा जवाब
 
याचिका पर सुनवाई करते हुए 23 फरवरी को दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने कहा कि आगे की कार्यवाही करने से पहले विभिन्न चिकित्सा नियामक निकायों के साथ-साथ आरोपी डॉक्टरों से जवाब मांगना उचित होगा। अदालत ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), दिल्ली चिकित्सा परिषद (डीएमसी) और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) से तीन सप्ताह में जवाब मांगते हुए मामले की सुनवाई 19 अप्रैल तक स्थगित कर दी।