दिल्ली : उच्च न्यायालय में दायर हुई 'राइट टू बी फॉरगॉटन एक्ट’ के तहत याचिका, कर्ता ने की इंटरनेट से उससे जुड़ी जानकारियों को हटाने की मांग

दिल्ली : उच्च न्यायालय में दायर हुई 'राइट टू बी फॉरगॉटन एक्ट’ के तहत याचिका, कर्ता ने की इंटरनेट से उससे जुड़ी जानकारियों को हटाने की मांग

जानिए क्या हैं ये 'राइट टू बी फॉरगॉटन एक्ट’ और क्या है ये पूरा मामला

दिल्ली उच्च न्यायालय में एक डॉक्टर ने 1999 में उनके खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी और उनकी गलत गिरफ्तारी के संबंध में 'राइट टू बी फॉरगॉटन' के तहत एक याचिका दायर की है. इस याचिका के सहारे डॉक्टर द्वारा विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर प्रकाशित समाचार और जर्नल लेखों को हटाने की मांग की गई है। फिलहाल न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की अनुपलब्धता के कारण मामले की सुनवाई 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी गई। 

कौन है ये याचिकाकर्ता और क्या लगा था इन पर आरोप 

मामले के बारे में आपको बता दें कि यह याचिकाकर्ता ईश्वर गिलाडा पर कथित रूप से विदेशों से अवैध रूप से दवाएं खरीदकर भारत में एचआईवी रोगियों को देने का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता के बारे में बता दें कि 1985 में डॉक्टर गिलाडा भारत में एड्स के खिलाफ चेतावनी देने वाले पहले व्यक्ति हैं और सरकार द्वारा मुंबई में संचालित जेजे अस्पताल में भारत का पहला एड्स क्लिनिक (1986) शुरू करने वाले डॉक्टर हैं।

पहले ही अपने आरोपों से बरी हैं डॉक्टर पर फिर भी आर्टिकल इंटरनेट पर उपलब्ध

याचिकाकर्ता के वकील रोहित अनिल राठी ने गिलाडा के मामले में एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए आदेश, जिसमें कहा गया है कि "याचिकाकर्ता के किसी भी गैरकानूनी काम में शामिल होने का कोई सबूत नहीं है", का जिक्र करते हुए कहा कि गिलाडा को पहले ही 1999 में उनके खिलाफदर्ज की गई प्राथमिकी में आरोप मुक्त किया जा चुका है लेकिन इसके बावजूद उनके खिलाफ प्रकशित हुए आर्टिकल्स और खबरों को गूगल पर खोजा जा सकता है। ये लेख प्रकाशकों, ब्रिटिश मेडिकल जर्नल, द लैंसेट, एनसीबीआई और इंडियन पीडियाट्रिक्स के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं.

अदालत ने याचिकाकर्ता को दी थी प्रकाशकों से बात करने की सलाह

इस मामले में अदालत ने 17 फरवरी को याचिकाकर्ता से इस याचिका की प्रति के साथ ईमेल के माध्यम से ऑनलाइन प्रकाशकों के साथ संवाद करने के लिए कहा था, ताकि उक्त प्रकाशकों को वर्तमान याचिका दायर करने के बारे में सूचित किया जा सके। अदालत ने कहा था, "अगर वे - ब्रिटिश मेडिकल जर्नल, द लैंसेट, एनसीबीआई और इंडियन पीडियाट्रिक्स - सुनवाई की अगली तारीख पर कार्यवाही में शामिल होना चुनते हैं, तो उन्हें अनुमति दी जाती है।"

क्या है 'राइट टू बी फॉरगॉटन' 

गौरतलब है कि 'राइट टू बी फॉरगॉटन' एक व्यक्ति को अपने जीवन की उन पिछली घटनाओं को छिपाने, हटाने या शांत कराने में सक्षम बनाता है जो अब घटित नहीं हो रही हैं। यह इंटरनेट, सर्च , डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को उस स्थिति में हटाने का अधिकार है जब यह व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है। इस प्रकार यह व्यक्तियों को कुछ इंटरनेट रिकॉर्ड से अपने बारे में जानकारी, वीडियो या तस्वीरें हटाने का अधिकार देता है ताकि लोग उन्हें न खोज सके और न ही उसका दुरुपयोग कर सकें।