पुलिस और प्रशासन को गुप्त जानकारी देने के लिए बहुत जोखिम उठाते हैं मुखबिर, उन्हें उचित मुआवजा देना अत्यावश्यक : उच्च न्यायालय

पुलिस और प्रशासन को गुप्त जानकारी देने के लिए बहुत जोखिम उठाते हैं मुखबिर, उन्हें उचित मुआवजा देना अत्यावश्यक : उच्च न्यायालय

अदालत का मानना है कि सरकार का दृष्टिकोण ऐसा नहीं होना चाहिए, जिससे मुखबिर हतोत्साहित हो जाएं

एक मामले में सुनवाई करते हुए मुंबई की  उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि अधिकारियों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने में मुखबिर बड़ा जोखिम उठाते हैं और अधिकारियों को सरकार की नीति के अनुसार उन्हें उचित मुआवजा देना चाहिए। सरकार का दृष्टिकोण ऐसा नहीं होना चाहिए, जिससे मुखबिर हतोत्साहित हो जाएं। इस मामले में कोर्ट ने कस्टम अथॉरिटी को 2015 की पॉलिसी के मुताबिक खबरी की विधवा को मुआवजा देने का आदेश दिया था। खबरी ने 1991 में जानकारी दी थी कि एक जौहरी 90 लाख के हीरे की तस्करी कर रहा है। 

एक मुखबिर की विधवा पत्नी की याचिका पर हो रही थी सुनवाई

आपको बता दें कि पीठ चंद्रकांत धावरे की विधवा जयश्री धावरे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सरकार की नीति के अनुसार मुखबिरों को इनाम देने की मांग की गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि सीमा शुल्क विभाग ने वर्ष 1991 में चंद्रकांत द्वारा साझा की गई जानकारी के आधार पर तस्करी किए गए हीरों को जब्त कर लिया था। मुखबिर को अगले कुछ वर्षों में तीन लाख रुपये का अंतरिम भुगतान किया गया था, लेकिन कई बार अनुरोध किये जाने के बावजूद अंतिम राशि का भुगतान नहीं किया गया था। 

कानून के अनुसार सही नहीं पर खबरियों को हतोत्साहित करना गलत

इस मामले में अदालत ने कहा कि ,माना कि कानून और नीति के अनुसार इनाम की मांग करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, लेकिन इसे अस्वीकृति भी एक तरह से मनमानी है और ये नहीं होनी चाहिए। ऐसे अतिसंवेदनशील मामलों में सर्कार का दृष्टिकोण ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा करना मुखबिरों को हतोत्साहित करना हुआ। अदालत ने कहा, ‘‘मुखबिर सूचना प्रदान करने में भारी जोखिम उठाते हैं। दुर्भाग्य से, इस मामले में, मामले की विशिष्ट परिस्थितियों और याचिकाकर्ता की कठिनाई को ध्यान में रखते हुए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था। विभाग को इस मामले को समझदारी से हैंडल करना चाहिए था।

शुरुआत में मिली थी मुवावजे की राशि फिर विभाग करने लगा आनाकानी

ध्यान देने वाली बात ये है कि मुखबिर की पत्नी ने बताया कि 2010 में मौत से पहले उनके पति ने इनाम के लिए संबंधित विभाग के चक्कर काटे थे। उनके पति को प्रशासन से शुरुआत में तीन लाख रुपये की राशि मिली थी। दुर्भाग्य से 1992 में एक दुर्घटना में उनके पति की आंखों की रोशनी चली गई थी, जिस वजह से वह बकाया राशि के लिए प्रशासन से नियमित तौर पर संपर्क नहीं कर सके। उन्होंने कमिश्नर से अपील भी की थी कि वह 1992 में एक दुर्घटना में अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं, ऐसे में जल्द से जल्द उनकी मदद की जाए। लेकिन 25 अगस्त 2010 को उनकी मौत हो गई।इसके बाद उसकी पत्नी ने अंतिम राशि जारी करने के लिए अनुरोध किया। विभाग से संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर जयश्री ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इस मामले में कार्यवाही करते हुए अदालत ने यह माना कि याचिकाकर्ता के मुखबिर को शुरुआती इनामी राशि दी गई थी तो इससे यह सिद्ध हो गया कि उनकी पत्नी ही बाकी धनराशि पाने की असली हकदार हैं।