जानिये अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में स्थापित होने वाली रामलला की प्रतिमा के लिये चुने गये पत्थर की रोचक कहानी

जानिये अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में स्थापित होने वाली रामलला की प्रतिमा के लिये चुने गये पत्थर की रोचक कहानी

नेपाल स्थित जनकपुर धाम से लाई जा रही ऐतिहासिक महत्व की शामिग्राम शिला

अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माणकार्य शुरु हो गया है। इस प्रस्तावित मंदिर में रामलला के बाल स्वरुप की मूर्ति स्थापित की जायेगी। यह मूर्ति जिस पत्थर से बनाई जाने वाली है, उसकी रोचक कहानी आज हम आपको बताते हैं। 

जी हां, बात करीब सात महीने पहले की है। नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री बिमलेन्द्र निधि ने राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के समक्ष एक प्रस्ताव रखा था। प्रस्ताव में कहा गया कि जब अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बन ही रहा है, तो क्यों न इसमें जनकपुरधाम और नेपाल की ओर से भी कुछ योगदान हो।

इसके पीछे यह पौराणिक तथ्य प्रस्तुत किया गया कि मिथिला में बे‌टियों को शादी के समय ही नहीं, अपितु शादी के बाद भी बेटी के घर में जब  कभी कोई शुभ कार्य हो रहा हो, तो मायसे से कुछ शुभ चीज़ देने की परंपरा है। चुंकि माता सीता का मायका जनकपुरधाम, नेपाल में है, और राम जन्मभूमि अयोध्या धाम में शुभ कार्य होने जा रहा है, तो इसी परंपरा के तहत प्रस्तावित राम मंदिर में जनकपुर और नेपाल का कोई अंश रहे, ऐसी इच्छा प्रकट की गई।

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अयोध्या में भगवान श्रीराम के प्रस्तावित भव्य मंदिर की झांकी

 

भारत सरकार और राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिलते ही तय किया गया कि रामलला की मूर्ति ऐसे किसी पत्थर से बनाई जाए जिसका धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व हो। इसी क्रम में नेपाल सरकार ने कैबिनेट बैठक में पवित्र काली गण्डकी नदी के किनारे मिलने वाले शालीग्राम के पथर को अयोध्या भेजने की स्वीकृति दी। 

नेपाल सरकार ने ऐसे पौराणिक महत्व के पत्थर को ढूंढने के लिये जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल सहित वॉटर कल्चर को समझने वाले विशेषाज्ञें की टीम भेजी। आपको बता दें कि जिस पत्थर को अयोध्या भेजा जा रहा है, वह साढ़े 6 करोड़ वर्ष पुराना है और इसकी आयु अभी भी एक लाख वर्ष तक रहने की बात कही गई है। 

जहां तक इस पत्थर की महत्ता की बात है, तो जान लीजिये कि यह पत्थर नेपाल की पवित्र माने जानी वाली काली गण्डकी नदी से लिया गया है। यह नदी भारत में गंगा नदी में मिलती है। इसी नदी के किनारे शालिग्राम के पत्थर पाए जाते हैं। भगवान विष्‍णु के रूप में शालिग्राम पत्थरों की पूजा की जाती है। इसी कारण इन पत्थरों को देवशिला भी कहा जाता है। 

रामलला की मूर्ति के लिये नेपाल के मयाग्दी जिले के बेनी में पहले शास्त्र सम्मत क्षमा पूजा की गई और फिर जियोलॉजिकल एवं ‌आर्किलॉजिकल विशेषज्ञों की देखरेख में पत्थर की खुदाई की गई। फिर पत्थर को क्रेन की मदद से ट्रक पर लादा गया। इनमें से एक पत्थर का वजन 27 टन और दूसरे पत्थर का वजन 14 टन बताया गया है। 

पोखरा में गण्डकी प्रदेश की सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री खगराज अधिकारी ने इन शालिग्राम पत्थर का जलाभिषेक कर उसे जनकपुरधाम के जानकी मंदिर के महन्त को विधिपूर्वक हस्तांतरित किया। पत्थर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ लाया जा रहा है। जहां-जहां से यह शिला यात्रा गुजर रही है, पूरे रास्ते भर भक्तजन और श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन और पूजा की जा रही है।

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