इन विशेष तकनीकों के सहारे हो रहा है अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण

इन विशेष तकनीकों के सहारे हो रहा है अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण

बिना किसी लोहे या सीमेंट से जोड़े जा रहे हैं पत्थर, पत्थरों पर हो रही है नक्काशी

अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य जोरशोर से हो रहा है। मंदिर निर्माण यह इस तरह की तकनीक से किया जा रहा है कि हजारों साल तक मंदिर को कुछ नहीं होगा। जिसमें राम मंदिर निर्माण के लिए ये शिलाएं राजस्थान से लाए गए पत्थरों से बनाई गई हैं। सुंदर नक्काशी वाले स्तम्भों को बनाने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों का प्रयोग किया जा रहा है। कलात्मक स्तम्भों को बनाने में पाँच से छः पत्थरों का प्रयोग किया जाता है। और इन पत्थरों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है।

बिना किसी सीमेंट या लोहे से फिट किया जा रहा हैं ये पत्थर

आपको बता दें कि भगवान श्रीराम के इस भव्य मंदिर के निर्माण में सबसे बड़ी बात यह है कि इन पत्थरों को फिट करने के लिए न तो सीमेंट का प्रयोग किया गया है और न ही किसी लोहे का। इन पत्थरों को फिट करने के लिए एक खास तरह की तकनीक अपनाई गई है। इसके लिए पत्थरों में कुछ छेद किए जाते हैं।

आपको आश्चर्य हो सकता है कि पत्थर के शीर्ष पर छेद क्यों दिखाई दे रहा है। इस छेद को एक पाइप में भरकर उठाकर दूसरे पत्थर पर बने छेद पर रखा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि ये पत्थर आपस में चिपक जाएं। और इस पाइप की मदद से इसे इस तरह से व्यवस्थित किया जाता है कि एक पत्थर दूसरे पत्थर से बंद हो जाता है। इसलिए उनके एक पत्थर को ताला कहा जाता है जबकि दूसरे पत्थर को चाबी कहा जाता है।

क्या है पत्थर पर आइकनोग्राफी?

गौरतलब है कि राम मंदिर के निर्माण में जिस पत्थर से पिलर तैयार किए जा रहे हैं, उस पर अभी आइकॉनोग्राफी का काम बाकी है। आप सोच रहे होंगे कि ये आइकॉनोग्राफी क्या है? तो हम आपको बता दें कि पत्थरों या दीवारों पर मूर्तियों को तराशने के काम को आइकॉनोग्राफी कहा जाता है। एक शीला में एक ओर तीन रिक्त स्थान होते हैं अर्थात उसमें से केवल तीन मूर्तियाँ तराशी जाएँगी और चारों ओर से कुल बारह मूर्तियाँ तैयार की जाएँगी। जब पाइल्स पूरी तरह से बन कर तैयार हो जाये। उसके बाद दीवारों या खंभों पर मूर्तियों को तराशने का काम किया जाता है।

Tags: Ayodhya