त्यौहार : जानिए क्यों मनाया जाता है उत्तरायण पर्व? क्या है इसका महत्व
सूर्य जिस दिन मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है
मध्य जनवरी के साथ ही देशभर में त्यौहारों की सीजन शुरू होने वाली है। गुजरात समेत पश्चिम-उत्तर भारत में उतरायण, दक्षिण भारत में पोंगल, पंजाब समेत उत्तर भारत के अन्य राज्यों में लोहड़ी और असम समेत पूर्वी भारत में बिहू मनाया जायेगा। मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी 2023 दिन रविवार को मनाया जाएगा।
सूर्य जिस दिन मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी 2023 को है। इसे सूर्य उत्तरायण पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इसे लेकर धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन से सूर्य उत्तरायण होता है। मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से देश के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है। कर्नाटक में इसे संक्रांति, तमिलनाडु और केरल में पोंगल, पंजाब और हरियाणा में माघी, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण, उत्तराखंड में उत्तरायणी, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी आदि जैसे नामों से भी जाना जाता है।
उत्तरायण और दक्षिणायन क्या है?
सूर्य की दो स्थितियां उत्तरायण और दक्षिणायण हैं। दोनों की अवधि छह-छह महीने की होती है। सूर्यदेव छह माह उत्तरायण (मकर से मिथुन राशि तक) और छह माह दक्षिणायन (कर्क से धनु राशि तक) रहते हैं। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो वक्री होता है। इसी प्रकार जब यह कर्क राशि में प्रवेश करता है तो दक्षिण दिशा में होता है। बहुत कम समय होता है जब सूर्य पूर्व में उदय होता है और दक्षिण से होकर पश्चिम में अस्त होता है।
प्रकाश का समय है उत्तरायण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, उत्तरायण के समय सूर्य उत्तर की ओर झुकाव के साथ चलता है, जबकि दक्षिणायन के समय सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ चलता है। इसलिए इसे उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं। उत्तरायण को प्रकाश का समय कहा गया है और इसलिए शास्त्रों में इसे शुभ माना गया है। सूर्य के उत्तरायण होने से दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती है। इस दौरान दान-पुण्य, यज्ञ और शुभ-मांगलिक कार्य करना शुभ होता है। उत्तरायण के समय दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं जबकि दक्षिणायन के समय रातें बड़ी और दिन छोटे होने लगते हैं।
क्या है इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
देवताओं का दिन मकर संक्रांति से शुरू होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। दक्षिणायन की अवधि को देवताओं की रात्रि माना जाता है। अर्थात देवताओं का एक दिन और एक रात मनुष्य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक मास पूर्वजों का एक दिन होता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। उत्तरायण तीर्थ यात्रा और उत्सव का समय है और दक्षिणायन उपवास और ध्यान का समय है। उत्तरायण के 6 माह में गृहप्रवेश, यज्ञ, व्रत, कर्मकांड, विवाह, मुंडन आदि नव कार्य करना शुभ माना जाता है। दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस दौरान व्रत रखना और किसी भी तरह की सात्विक या तांत्रिक साधना करना भी फलदायी होता है। इस दौरान सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
गीता में भी हैं इस दिन का उल्लेख
उत्तरायण का महत्व बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में यह भी कहा है कि उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी पर प्रकाश रहता है, तब इस प्रकाश में शरीर छोड़ने से मनुष्य की मृत्यु नहीं होती है। व्यक्ति का पुनर्जन्म, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त करते हैं। उत्तरायण के दिन को बहुत ही शुभ माना गया है। यह दिन दान-दक्षिणा और पूजा-पाठ के लिए ही अत्यंत ही शुभ होता है। मान्यता है कि इस दिन प्राण त्यागने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण कि, भीष्म पितामह अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे।