जानिये अदालत को क्यों कहना पड़ा, ‘क्रोधित मनोरोगी पत्नी के साथ रहना किसी यातना से कम नहीं!’

जानिये अदालत को क्यों कहना पड़ा, ‘क्रोधित मनोरोगी पत्नी के साथ रहना किसी यातना से कम नहीं!’

पति जब-जब तलाक के लिये आवेदन करता पत्नी दहेज संबंधी प्राथमिकी दर्ज करा देती

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान एक पति द्वारा दायर तलाक याचिका को मंजूर कर लिया है। कोर्ट ने कहा, 'क्रोधित मनोरोगी पत्नी के साथ रहना जीवन भर के प्रताड़ना के समान है। पत्नी ने पति की ओर से तलाक का मुकदमा दायर करने के तुरंत बाद दहेज के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराई, उसके रवैये को इससे देखा जा सकता है।'

आवेदन में पति ने कहा कि वह अमृतसर का रहने वाला है और उसकी शादी वर्ष 2011 में हुई थी। शादी के कुछ दिनों बाद उसकी पत्नी का गुस्सा दिखने लगा और समय के साथ उसकी पत्नी का गुस्सा बढ़ता ही गया। प्रार्थी ने बताया कि पुत्री के जन्म के बाद उसकी हालत बिगड़ गई।

उसने बताया कि उसकी पत्नी ने पहले घर का काम करने से मना कर दिया। धीरे-धीरे उसने याचिकाकर्ता यानी पति और उसके परिवार को सार्वजनिक रूप से पीटना और अपमान करना शुरू कर दिया। पत्नी की इस हरकत से तंग आकर जब याचिकाकर्ता ने तलाक की अर्जी दी तो पत्नी ने प्राथमिकी दर्ज करायी कि उसने दहेज की मांग की है। इसके बाद दोनों के बीच समझौता हो गया और एफआईआर रद्द कर दी गई। जबकि याचिकाकर्ता के परिवार ने विवाह के समय किसी प्रकार का दहेज नहीं लिया था। 
सुलह के बाद भी उसकी पत्नी के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया और समय के साथ वह और भी क्रूर हो गई। एक दिन वह बिना किसी को बताए घर से निकल गई और अपने मामा के घर चली गई। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने फिर से तलाक की अर्जी दी और उसकी पत्नी ने एक बार फिर दहेज का मामला दर्ज कराया।

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प्रतिकात्मक तस्वीर

 

वहीं पत्नी ने पति द्वारा लगाए गए इन सभी आरोपों का खंडन किया और कहा कि याचिकाकर्ता दहेज के लिए उसे प्रताड़ित कर रहा है। इसके अलावा वह अपने पिता की संपत्ति में हिस्से के लिए भी जोर लगा रहा था।

सुनवाई में हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा, 'दो डॉक्टरों की राय है कि पत्नी का ऐसा करना एक मानसिक बीमारी है जिसका इलाज संभव नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को ऐसे मानसिक और गुस्सैल जीवनसाथी के साथ रहने के लिए मजबूर करना उसे जीवन भर प्रताड़ित करेगा। जज ने कहा, 'अपने पति और ससुराल वालों को सबके सामने अपमानित करना क्रूरता है। दूसरी ओर, तलाक की याचिका दायर करने के तुरंत बाद पत्नी द्वारा दहेज की मांग के लिए प्राथमिकी दर्ज करना उसके दोहरे मापदंड को दर्शाता है।

दहेज कानून का दुरुपयोग बढ़ रहा

देश में हर घंटे औसतन एक महिला की मौत दहेज संबंधी कारणों से होती है और 2007 से 2011 के बीच ऐसे मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। महिलाओं और खासकर युवाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा, दुल्हन को जलाने की बढ़ती घटनाएं सभी के लिए चिंता का विषय बन गईं। आईपीसी के सामान्य प्रावधान महिलाओं के खिलाफ अत्याचार से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसीलिए आईपीसी में धारा 498ए को शामिल किया गया। ऐसे में इस कानून को दहेज के लिए प्रताड़ित होने वाली बेटियों के लिए सुरक्षा कवच माना गया। लेकिन इस कानून का दुरुपयोग भी शुरू होता दिख रहा है। यह दूल्हे पक्ष को डराने के हथियार के रूप में काम करने लगा है। ऐसे में समय-समय पर इस कानून में बदलाव किया जाता रहा है।

एक वरिष्ठ वकील के मुताबिक, धारा 498ए के तहत अपराध को गंभीर माना जाता है। दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की सजा का प्रावधान है।

एक वरिष्ठ वकील का कहना है कि इस कानून का दुरुपयोग भी होने लगा है। ऐसे में साल 2014 में अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में 498ए की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसके 'दुरुपयोग' पर चिंता जताते हुए अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने तब कहा था कि महिलाएं अनुच्छेद 498ए का गलत इस्तेमाल कर रही हैं। अधिनियम को कुछ विस्तार से बताते हुए कहा गया कि यदि कोई महिला धारा 498 ए के तहत पुलिस या मजिस्ट्रेट से शिकायत करती है तो उसकी शिकायत परिवार कल्याण समिति को भेजी जाती है, जिसके बाद प्रताड़ित महिला की शिकायत की जांच सबसे पहले की जाती है। पहले पुलिस शिकायत के आधार पर परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करती थी, लेकिन अब कहा जाता है कि जब तक जांच नहीं हो जाती और ससुराल वाले दोषी नहीं पाए जाते, तब तक पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है।